पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२५०

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उदवाह-उदान २४३ पेयं वासवाइनधिषु च। पा ६।३।५८। व्रतके पालनार्थ जलमें । चन्द्रपन्त अमात्यने गिञ्जीके घेरे जानेपर शासक वास। बनाया था। ये शाहुके सैन्यमें भरती हो कितनेही उदवाह (वै० पु०) जलवाहक, पानी ढोने वाला। अश्वारोहियोंके अधिनायक रहे। इन्होंने गुजरात (ऋक् ५।४८३) (हिं.) उद्दाह देखो। और मालवेपर आक्रमण मारा था। लनावाड़ तक उदवेग (हिं.) उहे ग देखो। गुजरात लटा गया, किन्तु गिरधर बहादुर मालवेके उदशराव (वै • पु०) जलपूर्ण शराव, पानीसे भरा रक्षक बनने पर इन्हें धारका किला छोड़ पीछे हटना प्याला। (छान्दोग्य उपनिषत् ८८१) . पड़ा। १६८६ ई० को उदाजी पंवारने मांड़ का किला उदश्रु (सं० त्रि०) उहतमथु यस्य, प्रादि० बहुव्री। छोना था। १७३१ ई० को १ ली अपरेलको बड़ोदेके निर्गताच, आंसू बहाने वाला। निकट भोलापुर में जो युद्ध हुआ, उसमें इन्होंने निजाम् उदखित् (स'. लो. ) उदके नश्वयति वर्धते, उल-मुल्कको फौजके हाथ आत्मसमर्पण किया। उद-खि-क्विप -तुक्। अर्धजल तक्र, आधा पानी और उदात्त (सं० पु०) उत्-आ-दा-क्त । उचैरुदात्तः । आधा मठा। यह तृष्णा, दाह तथा मुखके शोष और | पा रास। “तावादिषु सभागेषु स्थानेष व भागे निष्यनोऽजुदात्तः।" चुपड़ने से कुष्ठको दूर करता है। (राजवल्लभ) (सिद्धांतकौमुदी) १ मुखमें तालु प्रभृति अर्व भागसे उदसन (सं० लो०) उतक्षेपण, फेंक फांक, उठाव । उच्चारित होने वाली खर, तेज़ लहज, तीखा सुर। उदसना (हिं. क्रि०) उठ जाना, उखड़ना, बर- अनुदात्त देखो। २ वाद्य विशेष, एक बाजा। ३ दान, बाद होना। बख शिश। ४ काव्यालङ्कार विशेष। ५ सुदीर्घ भेरी, उदस्त (स• त्रि०) उत्-अस-त। १ उत्क्षिप्त, बड़ा ढोल। ६ कार्य, काम। (क्लो०) ७ आभूषण- फेंका हुआ। २ वहिष्क त, निकाला हुआ। विशेष, एक गहना। (त्रि.) कर्तरि त । ८ महत्, उदस्य (सं० अव्य.) १ उदसन करके, फेंक कर। बड़ा। ८ समर्थ, काबिल । १० दाता, देने वाला। २ वहिष्कार करके, निकालकर। ३ चेष्टा करके. ११ उच्च, ऊंचा। १२ उच्च स्वरयुक्ता, तीखे स्वरवाला। कोशिश लगाकर। १३ सुन्दर, खूबसूरत। १४ प्रिय, प्यारा। उदहरण (सं० पु.) उदकं लियते अनेन, उत्-ह उदात्तमय (सं० वि०) उदात्तसदृश, तीखे खरसे करणे ल्युट । कुम्भ, घड़ा। मिलता-जुलता। उदहार (स'त्रि.) उदकं हरति, हृ-अप उदादेशः। उदात्तवत् (सं० त्रि०) उदात्तस्वरसे उच्चारण किया १ जलहारक, पानी लानेवाला। (पु.) भावे घज । जाने वाला, जो तीखी आवाजसे बोला जाता हो। २ जलहरण, पानी लानेका काम। उदात्तत्रुति, उदात्तवत् देखो। उदाज (स० पु०) उद-अज-घत्र, कवर्गादेशो न उदात्तश्रुतिता (सं० स्त्री०) उदात्त स्वरसे उच्चारण स्यात्। अजिब्रज्योभ्यश्च । पा १३६ “उदाज: चवियाणाम् (प्रेरणम्)।" | करनेका भाव, जिस हालतमें तीखी आवाज से बोलें। (सिद्धान्तकौमुदी) प्रेरण, पहुंचाने या भेजनेका काम। उदाताह (सं० पु०) जलकाक, पानीको एक चिड़िया। उदाजी चौहान-दाक्षिणात्यवाले रामचन्द्रपन्तके एक उदाद्यन्त (सं० त्रि०) अन्तमें उदात्त स्वर रखने- सैनिक। इन्होंने शाहराजके समय पूनाको वारना| वाला, जिसके पीछे तीखी आवाज़ लगे। उपत्यकामें बत्तीस शिरालका किला जीत लिया था। उदान (सं० पु०) उदूर्वन आनिति अनेन, उत्- किन्तु शाइने इन्हें शिराल और कराड़का चौथ दे | पा-पन्-घञ् । कण्ठवायुविशेष, गलेसे निकलने अपना मित्र बनाया था। और सरपे चढ़ने वाली हवा । “उदान: १ कण्ठस्थानीयः ऊर्ध्व- उदाजी पवार-दाक्षिणात्यवाले शाहु नृपतिके एक गमनवामुत्क्रमप्यवायुः।” (वेदान्तसार) वेदान्तके मतसे यह अश्वारोही सेनापति। पहले इनके पिताको राम- अर्ध्वगमनशील कण्ठस्थायी उत्क्रमण वायु है। . Vol III. 63