इतिहास उपाख्यान प्रभृतिके साथ बहुत अवान्तर विषय । अर्थात इतिहास पुराणको भी पौरुषेय समझकर प्रविष्ट हो जानसे आज महाभारतको कितने ही लोग | प्रमाणान्तरमूलता वा वेदके बाद गौणप्रमाण मानना इतिहास माननेसे हिचकते हैं। किन्तु जिन युरोपीय पड़ेगा कैसे स्वीकार करेंगे। उत्तर में शङ्कराचार्य ने ऐतिहासिकोंके आदर्शपर हम वर्तमान कालके इति- कहा है,- हासका उपादान मानते, वह जानते हैं,- "इतिहासपुराणमपि व्याख्यातेन मागेण सम्भवन् मन्त्रार्थवादमूलत्वात् "*** * It is evident that Freeman's definition of | प्रभवति देवताविग्रहादि प्रपञ्चयितुम् । प्रत्यक्ष मूलमपि सम्भवति। भवति history as 'past politics' is miserably inadequate. Politi हि अनाकमप्रत्यच्चमपि चिरन्तनानां प्रत्यक्षम्। तथा च व्यासादयो देव- cal erents are mere externals. History enters into every | ताभिः प्रत्यक्ष व्यवहरन्तीति पर्वते।" phase of activity, and the economic forces which urge society along are as much its subject as the political ! अर्थात् इतिहास और पुराण जिस भावसे व्याख्यात result. In short the historical spirit of the age has हुआ, मन्त्र और अर्थवाद होनेसे वह देवता विग्र- inraded every field." Encyclopedia Britannica, 11th. Ed. ( 1911), Vol. IIII, p. 527. हादिके प्रपञ्चनिर्णयमें समर्थ है। इसका प्रत्यक्ष- __'फौमनकी यह परिभाषा अतिशय अपर्याप्त पातो, मूलक होना भी सम्भवपर है। हमारे पक्ष अप्रत्यक्ष कि इतिहासकी गणना 'गत राजनीति में जाती है। रहते भी प्राचीनोंके लिये यह प्रत्यक्ष हुआ। इसीसे राजनीतिक काण्ड केवल बहिरङ्ग होते हैं। इतिहास स्मृतिमें कहा, कि व्यासप्रभृतिने देवताओंके साथ व्यापारके प्रत्येक अंशको छता है। निर्वाहसम्बन्धी प्रत्यक्षरूपसे व्यवहार किया था। बल राजनीतिक फलको भांति इतिहासका विषय बन भारतका प्राचीन ऋषिगण समझते, जो प्रत्यक्ष जाता है। संक्षेपमें कहनेसे सामयिक इतिहासको मूलक वा समसामयिक लोगोके रचित रहता और शक्तिन प्रत्येक क्षेत्रपर अपना प्रभाव डाला है। जिसको मौलिकताके सम्बन्धपर कुछ सन्देह उठने न सुतरां पाश्चात्य वर्तमान ऐतिहासिकोंके मतसे पाता वही प्रक्कत इतिहास कहाता था। महाभारतको भी इतिहास मानने में कोई आपत्ति न हमारे महाभारतीय इतिहासको मौलिकता और पड़ेगी। हमारे आदि इतिहासके सार महाभारतमें प्रामाणिकता आजकलको अवस्था देख विचारनेसे ब्रह्माण्डको उत्पत्तिसे स्थावर-जङ्गम सकल प्रकार सृष्टि- नहीं बनता। उसे भगवान् शङ्कराचार्य ही अच्छो- तत्त्व, देव ऋषि पिट प्रभृति जीवका संक्षिप्त परिचय, तरह देखा गये हैं। समसामयिकी घटना सम- भारतके प्राचीन राजवंशका विवरण, दुर्ग नगर तीर्थ- सामयिक मनीषौ द्वारा लिपिबद्ध हुयी थी। पुरा. क्षेत्र प्रभृति समुदाय जीवस्थान, धर्मरहस्य, कामरहस्य, कालको सकल विक्षिप्त कथाको जिसने परवर्ती वेदचतुष्टय, योगशास्त्र, विज्ञान शास्त्र, धर्मार्थ काम- कालमें एकत्र सङ्कलन किया, उसोने व्यासदेव वा विषयक नाना शास्त्र और लोकयात्राविषयक आयु- संग्रहकार नाम कमा लिया। हमारे प्राचीन इति- वेद धनुर्वेद आलोचित है। कहनेसे क्या! वर्तमान हासका अधिकांश विलुप्त वा विकृत पड़ जाना अत्यन्त पाश्चात्य इतिहासविद् इतिहासका जैसा व्यापकत्व दुःखका विषय है। अतिप्राचीन भारतका विशुद्ध और विषयनिर्धारण ठहरात, महाभारतरूप भारतके | इतिहास ढूंढ निकालना एकप्रकार दुःसाध्य व्यापार प्राचीन इतिहास में, वैसा ही आयोजन पाते भी हैं। । हो गया है। इसीसे वर्तमान ऐतिहासिक 'महा- जो विषय ध्र व सत्य रहता और प्रत्यक्ष वा परोक्ष | भारत'को इतिहास नहीं समझते। तथापि कितनी प्रमाण द्वारा प्रतिष्ठित होता, वही इतिहास बजता है।। ही मिलावट रहते और प्रक्षिप्त उपकरण बढ़ते भी इसीसे भगवान् शङ्कराचार्यने इतिहासका प्रामाण्य भारतवर्षीय पण्डित समाजमें महाभारत इतिहास मान बता दिया है,-"इतिहासपुराणमपि पौरुषेयत्वात् प्रमाणा हो कहाता है। न्तरमूलतामाकाचते।" (शारीरकभाष्य शश३२) महाभारतीय युगके बाद भी लगातार इतिहास
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