पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७२ उद्भिद विद्या तमसा बहुरूपेण वैष्टिता कहेतुना! ३ लता और ४ गुल्म। कुछ वौज, कुछ काण्ड और अन्त:स'ज्ञा भवन्ते ते सुखदुःखसमन्विताः" (मनु ११४५-४६) कुछ कन्दसे जन्म लेते हैं। वण और ओषधि नामक समुदय उद्भिद ही स्थावर (जीव) हैं। उनमें वृणान्तर सकल पृथक् जाति जैसे देखाये गये हैं। कितने ही बीज़ और कितने ही रोपित काण्डसे क्योंकि पादप जातिके साथ उनका जन्म मरणादि उपजते हैं। जो बहु पुष्ययुक्त रहते और फल पकने नहीं मिलता। जिनमें पुष्य नहीं खिलता अथच से मरते, उनका नाम ओषधि रखते हैं (जैसे धान फल लगता. उनका नाम वनस्पति है। पुष्य और यव प्रभृति)। जो फल न देते हो फल जाते, वे वन फल उभय देनेवाले द्रुम हैं। प्रसारित और प्रतानित स्पति कहलाते हैं। फलने या फलनेवाले दोनोका लता कहलाते हैं। जो स्तम्बयुक्त रहते अर्थात् बड़ी बड़ी नाम वृक्ष है। गुच्छ (मल्लिकादि) और गुल्म शाखा नहीं रखते, उन्हें गुल्म कहते हैं। जम्ब , चम्पक, (शादि) नानाप्रकारके होते हैं। तृणजाति भी पुनाग, नागकेशर, चिञ्चिनी, कपित्थ, बदरी, विल्व, विविध हैं। प्रतान (लौकी, कुम्हड़ा वर्ग रह) और कुलथी, प्रियङ्ग, पनस, आम्र, मधुक और करमर्द वल्ली (गुडच्यादि) नानाविध हैं। यह बहुरूप कर्मके प्रभृति वीजज हैं। पान, सिन्धुवार और तगर फलपर तमोगुणसे आच्छन्न हैं। इनके अन्तर चैतन्य प्रभृति काण्डज होते हैं। पाटला, दाडिम, प्लक्ष, रहता है। इन्हें सुख और दुःख भो समझ पड़ता है। करवौर, वट, मल्लिका, उदुम्बर तथा कुन्द प्रभृति शार्ङ्गधरने इसप्रकार उद्भिविद्याका परिचय उभयज अर्थात् वौज पार काण्ड दोनोसे उत्पन्न दिया है- हैं। कुङ्कम, पाद्र, रसोन और आलू प्रभृति कन्दज “वनस्पतिद्रुमलतागुल्याः पादपजातयः । हैं। एलापत्र और उत्पलादि वीज एवं कन्द उभयसे वीजात् काखातथा कन्दात् तज्जन्म विविध' विदुः । जन्म लेते हैं। वृशान्यौषधयशव पृथक् जाति: प्रदिश्यते । कृषिशास्त्रके अनुसार उद्भिद् इन कई श्रेणी में बंटे जन्मादिभेदात्तेषां वै पार्थक्यमनुमौयते ॥ हैं-१ अग्रवीज अर्थात् अग्रभाग कलमकर लगाये ते वनस्पतयः प्रोक्ता विना पुष्प : फलन्ति ये । जानेवाले (अपर नाम काण्डज भी रख सकते हैं), ' द्रुमाशान्ये निगदिता: पुण्य : सह फलन्ति ये॥ २ मूलज अर्थात् मूल गाड़नेसे उपजनेवाले (कन्दज), प्रसरन्ति प्रतानैर्यान्ता लता: परिकीर्तिताः । ३ पूर्वयोनि अर्थात् ग्रन्थि गाड़नसे जन्म लेनेवाले (यह वहुस्तन्वाऽविटपिनो ये ते गुखाः प्रकीर्तिताः। काण्डज जातिके अन्तर्गत हैं), ४ स्कन्धज अर्थात् अन्य जम्बु चम्पकपुन्नागनागकेशर चिचिनी। वृक्षके तनेसे निकलनेवाले, ५ वीजरुह अर्थात् वीज कपित्यवदरीवित्वकुम्भकारी प्रियङ्गवः ॥ डालनेसे पनपनेवाले और ६ सन्म छज अर्थात् क्षिति, पनसायमधुकाद्या: करमच वीजजाः । जल, वायु एवं तेजःके परस्पर समवहित आने और ताम्ब लौ सिन्धुवाराश्च तगराद्याश्च काण्डजाः ॥ मृत्तिका पकानसे प्रकाशित होनेवाले। पाटला दाडिमो प्रचकरवीरवटादयः । मनिकोदम्वरौ कुन्दो वौजकाण्डोद्भवा मताः । भारतवर्षीय ऋषिगणने उद्भिदकी जाति, वेणी, कुछ मादरसो नालकाद्याः कन्दसमुद्भवाः । संज्ञा और लक्षणा उक्त संक्षिप्त शब्द द्वारा ही कही एखापवीत्पलादिनी वौजकन्दोद्भवानि हि ॥" है। उन्हें वीज, अङ्कर, मूलादिकी उत्पत्तिका विषय (वृहत्शान धरत पादपविवचा-प्रकरण) पादपजाति* चार प्रकार है-१ वनस्पति, २ द्रुम, शाल्यादयो वौजरहा: सन्म कंजास्त यादयः । स्युनिस्पतिकायस्व घड़ेता मूलनातयः ।" (हेम ।२६६-२६७) ..* “कुरुष्वाद्या भगवौजा मूलजास्त त्पलादयः । भर-'अधिकेन व्यवदेशा भवन्ति । तथाहि लोके चितिजलपवन- पायीनय रखाद्याः स्कन्धनासलकौमुखाः । समवधानजन्माप्या : चित्यपुर इत्यु चति ।' (बाचस्पतिमिय)