पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२७६

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उद्र-उद्दर्तित २७५ उद्र (सं० पु. ) उन्द क्लो दने रक् । १ जलचर, पानामें उद्दमन (स. क्लो०) उत्-वम्-ल्य ट्। उहिरण, रहनेवाला जानवर। २ उद्दिडाल, ऊदबिलाव। वान्ति, उलटी, कै.। उद्रक, उद्रङ्ग देखो। उदयम् (वैत्रि०) उगतं क्यो यस्मात, प्रादि बहुव्री० । उद्रङ्ग (सं० पु.) १ नगर प्रतिमार्ग, शहर जानेको अन्नोत्पादक, बलवर्धक, अनाज या ताकत पैदा राह। २ हरिश्चन्द्रपुर। (विकाहशेष १।२।२४) करनवाला। 'उगतं वयोऽन्न यच्मात् वायोः स उद्दया: वायुः वायुनैव उद्रथ ( स० पु०) उहतो रथो यस्मात् । १ रथकोल, हि धान्यानि निष्पाद्यन्ते ।' ( वाजसनेयभाष्ये महीधर ) गाड़ीको कोल। २ तासचड़ पक्षी, मुर्गा। ३ वृक्ष- उहते (सं० पु.) उत्-वृत-घत्र । १ अतिरिक्त • विशेष, कुकुरमुत्ता। द्रव्य, बची हुई चीज़। २ आधिक्य, बढ़ती। (त्रि.) उद्रपारक ( स० पु०) नागविशेष। (भारत-आदि ५७ अ०) ३ अधिक, ज्यादा। ४ उद्दत्त, बचा हा। उद्राव (स'. पु०) उत्-रु-घत्र । १ उच्चध्वनि, उहतक (सं० त्रि०)१ उत्थान-कारक, बढ़ानेवाला। बुलन्द शोर। २ पलायन, भागाभागो! २ शरीर शुद्ध करनेवाला,जो जिस्मको मलता या धोता उद्रात ( स० पु०) रक्तचित्रक, लाल चौत। हो। (पु.) ३ गणिताङ्क विशेष, हिसाबको एक उद्रिक्त (स० त्रि०) उत्-रिच-क्क। १ स्फट, फटा। अदद। जो अङ्ख क्रियाके अर्थ रखा, वही उहर्तक हुआ। २ स्पष्ट, साफ़। ३ चिह्नित, निशान्दार। कहा जाता है। उट्रिक्तचित्तता (स. स्त्री.)१ पानात्ययरोग, शराब- उहतेन (सं० लो०) . उत-वृत-णिच करण ल्यट। खोरीकी बीमारी। २ मत्तता, मदहोशी । १ उत्पतन, चढ़ाव। २ घर्षण, मलाई। ३ विलेपन, उद्रिन् (संत्रि.) जलयुक्त, पानीसे भरा। चुपड़ाई। उहतेन वात, कफ, मेद एवं अनिलको , उद्रुज (सं० त्रि.) भङ्ग, तोड़ ताड़। २. उन्म लन, उखाड़। हटाकर अङ्गको ठहराता और त्वको प्रसाद पहुं- उद्रक ( स० पु० ) उत्-रिच घञ् । १ वृद्धि, चाता है। हरिद्रादिसे उद्वर्तन करने पर कण्ड, वैवण्ये बढ़ती। २ अतिशय, ज़ियादती। ३. उपक्रम, शुरू। ओर रौक्ष्य दूर होता है। इसी प्रकार तिल हारा ४ काव्यालङ्कारविशेष । इसमें कई वस्तु एकके सम्मुख उद्दतन कण्ड, रोच्य और त्वक्के दोषका नाशन तुच्छ देखाये जाते हैं। ५ रजोगुण । ६ महानिब।। है। ( राजनिघण्ट) ५ शरीर निर्मलीकरण गन्ध उद्र कभङ्ग (स० पु.) आदिमें ही किसी ट्रव्यका ट्रव्यादि, जिस्म साफ करनेवाली खुशबूदार चौज, विषमीकरण, शुरूसे ही किसी चीज का रङ्ग मार देना। उबटन । ६ ट्रव्य दारा नेहादि अपहारक कार्य, उद्रका (सं० स्त्री०) महानिम्ब। चीजसे तेल वगैरह छोड़ानेका काम। उऐकिन् (सं० त्रि.) अधिक, ज्यादा, भरा हुआ। “यवाश्वगन्धायट्याङ्क तिलचोहर्तनं हितम् । उदोधन (स. को०) उदय, उतपत्ति, निकास, शतावयं श्वगन्धाभ्यां पयस्वैरहजीवनः।" ( सुचत) पैदायश। ७ उल्ल ण्ठन, बातका बनाव। ८ सेवन, इस्तमाल। उद्देशीय (सं० लो०) सामभेद। (ताड्यमहाब्राह्मण ) ८ अङ्गुरोत्पत्ति, किल्लोका फूटना । १० धातुका उहत् (सं० स्त्री० ) उच्चता, पर्वत, ऊंचाई, पहाड़। आकर्षण, तारकशो। ११ पेषण, कुटाई पिसाई । उद्दत्सर (सं० पु.) १ वत्सर, साल। २ उदा. १२ असवृत्त, बुरा चालचलन। वत्सर। उद्दनीय' (सं० त्रि.) उहर्तन-छ। मार्जनीय, “उद्दपन (सलो०) उत्-वप-ल्य ट। १ दान, बख लगाने लायक। शिश। २ उत्तोलन, उठाव । ३ उत्पाटन, उखाड़। उहर्तित (स० वि०) १ उव्रत, जंचा किया हुआ। २ उत्- उहमत (सं० त्रि.) वमन करते हुआ, जो उगल पत्र, पाकर्षित, जो निकला या खिंचा हो। ३ सुगन्धी- . रहा हो। .. कृत, मुक्त्तर किया हुआ, जो महकाया गया हो। तरा