उन्मादगजाङ्क श-उन्मिषत् २६३ "सन्मोहनोन्मादनी च शोषणस्तापनस्तथा।। द्रावसे सूतका ऊर्ध्वपातन करे। फिर उसके बराबर स्तम्भन ति कामच पञ्चवाणाः प्रकीर्तिताः। कनकवीज, अचक, गन्धक एवं विष डाल सबको . (विकाणशेषः १।१।४०) तीन दिन घोटे। इस रसका वनमावा प्रयोग करना उन्मादगजाश (सं० पु.) उन्मादाधिकारका एक | चाहिये। (भेषन्य रनावली) रस, पागलपनकी एक दवा। कितना ही पारा ले उन्मादिन (संत्रि.) उन्मत्त, मतवाला, नशेबाज। धतूरे, ब्रह्मयष्टि और कुचिलेके रससे ऊवं पातन करे। उन्मादिनी (सं० स्त्री०) विजया, भांग। फिर उसमें बराबर गन्धक मिला बन्धनार्थे तानचक्रि- उन्मादक (वै० त्रि.) मादक द्रव्यका प्रेमी, जिसे कामें रख अल्प पुट देना चाहिये। फिर उसको सम नशा पोनेका शौक हो। भाग धुस्त रवीज, अन, गन्धक एवं विषसे मिला तौन उन्मान (सं. क्लो०) उत्-मा भावे स्य.ट। १ परि- दिन घौटनेपर यह रस बनता है। (रसेन्द्रसारसग्रह) माण..बज़न। (त्रि.)२ चित्तमें विश्वम उत्पन्न करनेवाला, जो "कर्जमान किलोत्थान परिमाणन्तु सर्वतः । पागल बना देता हो। आयामस्तु प्रमाशं स्वात् सख्या वाघा तु सर्वतः ॥” (वार्तिककारिका) उद्मादपर्ययरसः (सं० पु०) उन्मादके अधिकारका करणे ल्युट । २ द्रोण परिमाण, ३२ सेरको एक पुरानी एक रस, पागलपनकी एक दवा। कालेधतूरे के पांच तौल। ३ मूल्य, कीमत । वीज मिलाकर क्षेत्रपटौरस खिलानेसे उन्माद रोग उन्मार्ग (स• त्रि०) उत्क्रान्तो मार्गात्। १ कुपथ- दूर होता है। (रसेन्द्रसारसग्रह) गामी, बुरौ राह जानवाला। २ बुरी राह । उन्मादभच्चनरस (सं० पु.) उन्मादके अधिकारका ३ गर्हित आचरण, खराब चलन। एक रस। त्रिकट, त्रिफला, गजपिप्पली, विडङ्ग, देव- उम्मार्गगमन (स० ली.) असत् पथावलम्बन, दारु, किरात, कटुकी, कण्टकारी, यष्टि, इन्द्रयव, | बुरी राहका जाना। चित्रक, बला, पिप्पली एव वीरणका मूल, शोभाञ्जः | उन्मार्गगामिन् (स'० त्रि०) उन्मार्ग-गम-णिनि । मका वोज, त्रिवृता, इन्द्रवारुणी, वङ्ग, रूप्य, अनक असदाचारी, बदचलन, जो बुरा काम करता हो। तथा प्रबालको समभाग मिलाने और सबके वराबर उन्मागेजलवाहिन् (स.वि.) अपना पानी वेराह लौह डालकर जलमें घोंटनेसे यह रस तैयार होता है। ले जानेवाला । (रसेन्द्र सारस'ग्रह) उन्मार्गवर्तिन्, उन्मार्गगामिन् देखो। उन्मादञ्जिनौ (सं० स्त्री०) उन्मादके अधिकारका उन्मार्गिन्, (सं० त्रि०) कुपथ पकड़नेवाला, जो एक रस। शुद्ध मनःशिलाका चूर्ण, सैन्धव, कटुकी, | वेराह जाता हो। वचा, शिरीषवौज, हिङ्ग, श्खेतसषेप, करजवीज, उन्मार्गी (सं० पु.) पञ्चविधमें अन्चतम भगन्दर त्रिकट और पारावतका मल बराबर बराबर कूटपीस | | रोग। यह ववासोरके साथ होता है। . गोमूत्र में कुटजवीज जैसी वटिका बना छाया में सुखा उन्माजन (सं० क्लो०) घर्षण, रगड़। ले। इसे सवेरे, शाम और रातको रगड़कर आंखमें उन्मित (संत्रि०) परिमित, नापा-जोखा। लगानेसे उन्मादरोग दूर होता है। इस रसको मधुरा- उन्मिति (सं० स्त्री० ) उत्-मद-क्तिन् । परिमाण, . दिके रस और जलमें रगड़ना चाहिये। (रसेन्द्र सारस'यह) | नाप-जोख । उन्मादवत (सं. त्रि) उन्माद-मतुप मस्य वः। उन्मिष (सं० पु०) उत्-मिष-क। १ प्रकाश, जहर, उन्मत्त, मतवाला, पागल । ' चमक। २ विकाश, खुलना। उन्मादाङ्कशरस (सं० पु.) औषधविशेष। तीन दिन | उन्मिषत् (सं. त्रि०) चक्षु उदघाटन करता हुआ, धुस्त रवीजके ट्राव, जलपिप्पलीके रस और कुचेलकके ' जो आंख खोल रहा हो। Vol IIT. 74
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