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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३०१

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उपचरण-उपचित हुआ। उपचरण (स लो०) निकटमें गमन, नजदीकका जाना।। १० लक्षण द्वारा अर्थबोध, प्रासार देखकर मतलबका उपचरित (स. त्रि.) उप-चर-त। १ आराधित, समझना। ११ छल, धोका। १२ सम्मान, इज्जत । मनाया या हाजिरी बजाया हुआ। २ लक्षण द्वारा १३ सज्जा, सजावट । १४ व्याकरणानुसार-विसर्गके बोधित, आसारसे समझा हुआ। स्थानमें सकार वा रकारका आदेश। १५ सामवेदका उपचम (सं. व्य.) उप-चर-मन् अव्ययीभावात् | परिशिष्ट विशेष। . टच। नपुंसकादन्यवरखाम्। पा ५।४।१०६) १ चमके समीप, उपचारक, उपचारपर देखो। चमडेके पास। (वि.) चौपगत, चमड़े में लगा| उपचारकरण (सं० लो०) १ उपढौकनदान, भेटका चढ़ाव। यह प्रधानतः गन्धपुष्पादि द्वारा किया जाता उपचय (सं० त्रि०) उप-चर कर्मणि यत्। १ सेव- है। २ ध्यान, ख्याल । मौय, खिदमत किये जाने काबिल । उपचारकर्मन, उपचारकरण देखो। "उपच: स्त्रिया साध्या सतत देववत् पति: ।” (मनु ५।१५४) उपचारक्रिया (सं० स्त्री०) उपचारकरण देखो। (अव्य०)२ उपस्थित हो या पहुंचकर। ३ घोड़ोंको उपचारच्छल (सं० ली. ) न्यायमतमें-अयथार्थ दलमलके। प्रयोगसे अर्थका निराकरण, गलत इस्तेमालसे उपचर्या (स० स्त्री०) उप-चर-क्यप-टाप। १ चिकित्सा, मानीका न मानना। इलाज। २ परिचर्या, खिदमत। “धर्मविकल्पनिर्देशेऽर्थसहावप्रतिषेधः उपचारच्छलम् । (गोतमम् . ११५५) उपचायिन (सत्रि .) उपचिनोति, उप-चि-णिनि। उपचारना (हिं० क्रि०) उपचार करना, बरतना। वृद्धिकारक, बढ़ानेवाला, जो अच्छी हालतमें हो। | उपचारपर (सं० त्रि०) दृढ़ सेवक, पूरी खिदमत । उपचाय्य (सं० पु०) उप-चीयतेऽग्निरत्र, उप-चि करनेवाला। निपातने ण्यत् । नौ परिचार्योपचार्यसमूहयाः । पाहा॥१३१ । उपचारपरिभ्रष्ट ( सं० वि०) कठोर, बेरहम, जो १ यज्ञाग्नि। २ वेदी। सभ्य या शायस्ता न हो। उपचार (सं० पु.) उप-चर-घज । १चिकित्सा , उपचारिन् (सं० त्रि.) सेवक, खिदमतगार। इलाज। २ सेवा, खिदमत। ३ व्यवहार, चालचलन। उपचार्य (सं० पु०) उप-चर भावे ण्यत् । १ चिकि- ४ उत्कोच, रिशवत। ५ परको तुष्टिके लिये मिथ्यात्सा , इलाज। २ सेवा, खिदमत। (त्रि.) ३ सेव- कथन, दूसरेको राजी रखनेके लिये भठ बोलना। नीय, खिदमत किये जाने लायक। २ चिकित्सनीय, "उपचारपद न चैदिद वामनरः कथमचता रतिः।” (कुमार ४६) जो इलाज किये जाने काबिल हो। ६ धर्मानुष्ठान, मजहबी काम। ७ पूजाके उपयोगी उपचिकोर्षा (सं. स्त्री०) उप-क-सन्-श्र। धातोः ट्रव्यका भेद। यह अट्ठारह प्रकारका होता है- कर्मच: समानकर्ट कादिच्छायां वा। शश। अप्रत्ययात् । पा ६।३।१०२ । १ आसन, २ स्वागतप्रश्न, ३ पाद्य, ४ अय, ५ आच- उपकार करनेकी इच्छा, दूसरेकी तकलीफ मिटानेको . मनीय, मान, ७ वस्त्र एवं उपवीत, ८ भूषणगीद, खाहिश। । गन्ध, १० पुष्प, ११ धूप, १२ दीप, १३ अब, उपचित् (वै० स्त्री०) देहवर्धकरोग विशेष, सूजन । १४ तर्पण, १५ माला, १६ अनुलेपन, १७ नमस्कार 'उपचित: अयथ गड बीपदादयः। (वाजसनेवभाष्ये महीधर १२७) पौर १८ विसर्जन। तन्त्रसारके मतसे ६४ प्रकारका उपचित (स• त्रि०) उप-चि-त। १ समृद्ध, बढ़ा उपचार ठहरता है। .. . हुआ। २ लिप्त, लगा हुधा । ३ लेपनादि द्वारा वर्धित, न्याय मतसे-सहचरणादिके निमित्त उसौ जो लेपन वगैरहसे बढ़ गया हो। समाहित भावमें वैसा ही अभिधान। (वात्स्वा० ॥२५५)ज्ञान, इकट्टा किया हुआ। ५ सञ्चित, जोड़ा हुआ। समझ। (गीतमाचि १२७) . ६ रचित, बनाया हुआ। ७ दग्ध, जला हुपा।।