पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३०२

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उपचितरस-उपजाप ३०१ उपचितरस (सं० त्रि०) रागमें वृद्धिप्राप्त, जोशमें शङ्कराचार्य ) (पु०)२ स्तोमादि वृद्धि । (आश्च० श्रौत० ८।१।१५) बढ़ा हुआ। ३ उत्पत्ति, पैदायश। ४ अक्षर, हफ। उपचिति (स. स्त्री०) उप-चि-क्तिन् । १ वृद्धि, बढ़ती। उपजना (हिं० क्रि०) उत्पन्न होना, निकलना। २ उन्नति, तरक्को। ३ संग्रह, ढेर। उपजप्य (संत्रि.) उप-जप कर्मणि प्रार्थं यत् । उपचित्तचिन्त ( स० पु० ) पापीयःके एक पुत्रका नाम। भेदाह, काना-फसी करने लायक, जो चुपके कहनेसे उपचित्र (सं० क्लो० ) १ समवृत्तवर्ण छन्दोवृत्तभेद। अपनी ओर आ सकता हो। "उपचिवमिद सससाझगौ ।”(इत्तरबा०) २ अर्ध-समवर्ण वृत्तमेद। “उपजप्यानुजपेदबुध्येतैव च तत्कृतम् ।” ( मनु ७१९७) "विषमे यदि सौसलगा दले भौ युजि भादगमकावुपचित्रम्।” (उत्तरवा०) उपजाम (स.अव्य) वृद्धावस्थाम, बुढ़ापे के वक्त । ३ धृतराष्ट्र के एक पुत्र । ४ पृशिपोवृक्ष, चकौड़िया। उपजला (सं० स्त्री०) यमुनापाव स्थ एक नदी। ५ दन्तीवृक्ष, दांतो। ६ पाखुकों , चहाकानी। (भारत वन १३ १०) ७ वृहदन्ती, बड़ी दांतो।। उपजल्पित (सली ) वार्ता, बातचीत । उपचित्रका (सं० स्त्री०) हस्बदन्ती, छोटी दांतो।। उपजल्पिन् (स.त्रि.) उप-जल्प-णिनि । उपदेशक, उपचिता (स. स्त्री०) १ मूषिकपर्णी, चहाकानी। समझानेवाला। (भारत-पादि० ) २ स्वाति। ३ हस्तानक्षत्र । ४ दन्तिवृक्ष, दांतो। उपजा (स. स्त्री०) दरस्थ वंश, जो खान्दान् नज- ५ षोडशमात्रात्मक मात्रावृत्तभेद। "द्विगुणितवमुलघुरचल- घरचल दौको न हो। कृतिरिह वाणाष्टवस यदि लथिवा उपचित्रा नवमै परयुक्ते ।” (हत्तरनाकर) उपजाऊ (हि.वि.) उर्वर. जरखे ज, जिससे ज्यादा उपचिल्ली (सं० स्त्री०) खेत चिल्लो शाक । उपजे । उपचीयमान (सं० त्रि०) संग्रह किया जानेवाला। उपजात (सं.वि.) उत्पन्न किया हुआ, जो उप- उपचलन (सं० लो०) सापन, गर्म करनेका काम।। जाया गया हो। उपचेय (स. त्रि.) उप-चि कर्मणि यत्। चयनीय, उपजातकोप, उपजातक्रोध देखो। इकट्ठा किये जाने काबिल। उपजातक्रोध (स० त्रि०) क्रुद्ध किया हुआ, जो छेड़ा उपच्छन्दन (स० क्ली. ) उप-कृदि-णि भावे लुप्रट्। गया हो। १ प्रार्थना, अज । २ उपमन्त्रण, फुसलाहट। ३ अनु- उपजातविश्वास (स. त्रि०) विश्वास करनेवाला, जिसे रोध, कहना। एतबार रहे। उपच्छन्न (स त्रि०) गुप्त, पोशीदा, ढंका हुआ। उपजाति (सं० स्त्रो०) छन्दोविशेष। यह इन्द्रवजा उपच्यव (सं० पु. ) उप-च्युङ भावे अच । टहसे तथा उपेन्द्रवजा और वंशस्थ एवं इन्द्रवंशके योगसे निर्गत, धरसे निकला हुआ। चौदह-चौदह प्रकारको होती है। इउ उ उ। उपज (स.त्रि.) १ वर्धिष्णु, बढ़नेवाला। (पु.) उइ उ उ। इइ उ उ उ उ उ। इ उ इउ। २ देवविशेष। (हिं० स्त्री०) ३ उत्पत्ति, पैदायश। उइइ उ। इइइ उ। उ उ उ इ। इउ उह। हृदय में दौड़ा हुआ विषय, जो बात दिलमें पायो उ इ उ इ। इइ उ इ। उ उ दुइ। इउइइ। हो। ५ मनमानी तान ! उइइइ। अन्यान्य मिश्रित जातिमें भी इसी प्रकार उपजगती ( स० वि०) छन्दोविशेष । यह त्रिष्टुभ्का १४ भेद पड़ते है। एक भेद है। इसमें तीन पादपर ग्यारहको ज उपजाना (हिं. क्रि०) उत्पन्न करना, निकालना। बारह-बारह अक्षर पड़ते हैं। | उपजाप ( पु०) उप-जप-घञ्। १ भेद, कानाफसी। उपजन (स. क्लो०) उप-जायते, जन-अच । १ देह, २ कुचक्र, साजिश । ३ विच्छेद, अलगाव । ४ उपांश जिस्म । 'स्त्रीपु'सयोरन्योन्योफ्यमने जायते इत्य पजनम् ।' (कान्दोग्यभाष्ये जप। Vol III. 76