पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३०७

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उपदंश पहुंचा करता है। इस अवस्थासे शरोरके सकल , करते हैं। शृगालकण्टकको जड़ तम्बाकूमें डाल पीने, हो यन्त्रोंपर समय समय नाना रागोंका उपसर्ग हुआ या अमलतासको जड़ पानके और छिपकली की पूंछ करता है। केलेके साथ खानसे भी उपदंश अच्छा हो जाता है। माता पितासे सन्तानादिको जो उपदंश लगता आलोपाथोक मतसे सहज उपदंशमें नाटिक अब है, उसका नाम कौलिक उपदंश ( Hereditary सिलवर एवं नाइटिकएसिड भी लगाते हैं। उक्त Syphilis) है। कौलिक उपदंश होने के फल | औषधक प्रयोगसे जो लोद आता, वह उष्ण जलसे श्लेष्मा, स्वरभङ्गा, नाना स्थानमें क्षत, चय, गण्डमाला, | परिष्कार किया जाता है। सहज उपदशमें मुदाका वधिरता, चक्षुरोग प्रभृति हैं। लक्षण रहनेस लेड लोशन अथवा स्पिरिट व्यवहार चिकित्सा-उपदंश रोग सांघातिक होता है। करे। स्त्रीके भी उक्त औषध लगता है। अधिक इसकी आदिसे ही यथासाध्य चिकित्सा करनी चाहिये। प्रदाह उठनेपर गोलार्ड लोशन और कभी कभी जिङ- कितने ही लोग लज्जाके भय सहज में इसे नहीं लोशन व्यवहार करते हैं। देशी डाकर यह मरहम खोलना चाहते, किसी अनाड़ी या अताईसे दवादारू भी देते हैं-मोम २ ड्राम, नारियलका तेल १ औन्स, करा बचने की राह खोजते हैं। किन्तु उससे भलाई बकरकी चर्बी आध औन्स, कज्जली १ ड्राम और कपूर न निकल अनेक स्थलमें विषम फल मिला करता १ ड्राम एक साथ थोड़ा तपा मरहम बनाये। यह है। इस रोगमें प्रथम ही सुचिकित्सकसे परामर्श उपदंशके लिये विशेष उपकारी है। बलकर पथ्य लेना चाहिये। वैद्यक मतसे इस रोगपर स्निग्ध स्वद| देना चाहिये। द्वारा लिङ्गमें शिराका वेध होना अच्छा है। जोंक लगा कठिन उपदंश पर ट्रङ्ग-नाइट्रिक एसिड लगा रक्तमोक्षण और अर्ध्व तथा अधःशोधन करते हैं। वही ब्लाक वास या योलो वास (Wash) व्यवहार करते हैं। प्रक्रिया यत्नपूर्वक चलाना अत्यन्त आवश्यक हैं, दांतमें अधिक पौड़ा उठनेसे स्पिरिट लोशन द्वारा ड्र जिससे उपदंश मर जाय । वातिक उपदशमें | चढ़ा दे। इस उपदंशपर अनेक लोग पारदसे कार्य यष्टिमधु, रास्ना, इन्द्रयव, पुण्डरौक, सरलकाष्ठ, पुन लेते हैं। क्षयकारी उपदंश पर प्रथमतः पुलटिस और णवा, अगुरु एवं' मुस्तक इन सकल द्रव्यको पीस अफीम चढ़ाना अच्छा है। स्थानिक उत्तेजना घटने- प्रलेप और इन्हींके क्वाथका सेचन लगाना चाहिये। से ट्रङ्ग नाइटिक एसिड व्यवहार करे। रोगीको पैत्तिक उपदंशमें गैरिक, रसाञ्जन, मञ्जिष्ठा, यष्टिमधु, ३ ग्रेन कुनैन और १ ग्रेन अफीम खिलाते हैं । गलित वेणाका मूल, पद्मकाष्ठ, रक्तचन्दन और उत्पल | उपदश पर चारकोल पुलटिस और ओपियम लोशन सकल द्रव्य पीसकर घतके साथ लिङ्गपर लगाया | ३ बार दिन में चढ़ाते तथा नाइटिक एसिड लगाते हैं। करते हैं। लेमिक उपदंशमें निम्ब, अजुन, अश्वस्थ, प्रथम कापर लोशन प्रभृति हारा ड्रेस देना चाहिये। कदम्ब, जम्ब, वट, यजडम्बर एवं वेतस इन गलितांश निकलनेसे क्षत मिटाने के लिये कारबोलिक सकल वृक्षोंके वल्कलका क्वाथ बनाकर लिङ्ग धोना | आयल लगाते हैं। ज्वर रहनेसे प्रथम कोष्ठ परिष्कार चाहिये। फिर उक्त द्रव्य समुदायके चण का लेप | करा पहले १ औन्स काष्टर आयेल और पीछे ५ ग्रेन भी लगा लेना ठीक है। कुनै न दिन में तीन बार खिलाना चाहिये। रोगीको ____ वदरी, आकनादी एवं अपामार्ग के मूलकी त्वक, दुबलानेसे सबल बनाने के लिये पोर्ट वाइन,ब्राण्डी,आरा- ब्राह्मणयष्टि और हिङ्गल प्रतेक बरावर बराबर रख | रोट, मांस का शोरबा, रोटो और दूध दिया जाता है। माड़ लेना चाहिये। इस समुदायके द्वारा धप देनेपर | द्वितीय अवस्थाके उपदंशपर पारदका भफारा उपदंशका क्षत सूखता है। वैद्य इस रोगपर भूनिम्बाद्य विशेष उपकारी है। इस रोगके सम्पूर्ण प्रकाशित होने एवं करनाद्य घृत, पागारधूमाद्यतेल प्रभृतिका प्रयोग पर अनेक इस औषधका प्रयोग करते हैं- .