पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३११

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उपधान-उपधूमिता है। प्रवत स्वर्ण से इसको सहज ही पहचान नहीं | १ शिरोधान, तकिया। २ विशेषत्व, खससियत। पाते। इससे विविध अलङ्कारादि बनाये जा ३ प्रणय, मुहब्बत। ४ व्रत। ५ विष, जहर। सकते हैं। ६ समीपस्थापन। ७ उत्कर्ष, बड़ाई। (त्रि.) सोहासा वा मानहिम स्वर्ण-ताम्र ढाई भाग ८रख लेने में लगाया हुआ,जो रखने के काम आया हो। और जस्ता प्राधा भाग एकत्र मृत्तिकाकी धरिया में | उपधानौय (सलो०) उपधीयते यस्मिन, उप- धा कर्मणि अनीयर । १ उपधान, तकिया। (त्रि.) गलानसे यह प्रस्तुत होता है। ट्रव रहते रहते यह जैसे सांचे में ढलेगा, वैसा ही द्रव्य बनकर निकलेगा।। समीपस्थापनके योग्य,जो पास रखे जानेके काबिल हो। मोसेक स्वर्ण-किसी पात्र में विशुद्ध रांगा १२ उपधाभृत (सं० पु.) करविशेष, एक महसूल। भाग अग्निके उत्तापसे गला पारद ३ भाग मिला २ अधर्मसे अभियुक्त. सेवक, जो नौकर बेईमानीका दौजिये। फिर शीतल पड़ने पर निशादल ६ भाग मुजरिम हो। और गन्धक ७ भाग डालकर अग्निके उत्तापमें गला उपधाय (सं० अव्य०) रखकर, डालके। नेसे यह बनता है। पारद एवं निशादल बाष्य उपधायिन् (सं० त्रि.) नीचे रखनेवाला, जो लगा लेता हो। बनकर उड़ जाता और उज्ज्वल मोसेक स्वर्ण निकल आता है। उपधारण (सं० लो०) उप-ध-णिच-लुपट्। १ अङ्गुश प्य टर-टोन डेढ़ सेर, सौसा एक याव, तांबा डेढ़ द्वारा आकर्षण, लग्गीसे खिंचाव। २ सम्यक् चिन्तन, छटांक और जस्ता आध छटांक एकत्र अग्निके उत्ताप सोचविचार। से मृत्तिकाकी घरियामें गला जालनपर बिलकुल उपधार्य (स. भव्य०) ले या पकड़के । चांदी-जैसा एक प्रकारका उपधातु प्रस्तुत होता है। उपधावन (सं. लो०) उप-धाव-लुट । १ उत्सरण, इसके नानाप्रकार द्रव्य बनने पर चांदी हो जैसे चमका हटाव । २ अनुचिन्तन, फिक्रमन्दो। (पु०) ३ पौके करते हैं। पोछे चलनेवाला, जो पोछा करता हो। पिञ्चबेक-यह सोहासा नामक उपधातुको तरह | उपधाशुचि (सं.वि.) परीक्षित. जांचा रस ही प्रस्तुत होता है। केवल तांबे और जस्तेके भाग- उपधि (सं० पु०) उपधीयते भारोप्यतेऽनेन. उप- पर ही मतान्तर है। धा-कि । १ कपट, चालाको। २ भय, डर। आधारे .. २ शरीरस्थ धातुसदृश द्रव्य । वैद्यक-मतसे यही | कि। ३ रथचक्र, गाड़ीका पहिया। सात शरीरके उपधातु हैं- उपधिक (सं० पु.) १ छली, धोकेबाज । उपधीयमान (हिं० वि०) पुरःसर युक्त, जिसके पहले "तन्यं रजय नारीणां काले भवति गच्छति। शुद्धमांसभववेहः सा वसा परिकीर्तिता। कुछ रहे। खेदो दन्तास्तथा केशास्तथ वौजस सप्तमम् । उपधुपित (सं०नि०) उप-धप-क्त।१ पासब- इति धातुभवा में या एते सप्तोपधातवः ॥” ( शार्ङ्गधर ) मरण, मर जानेवाला। २ सुगन्धीक्वत, महकाया (रससे ) स्तनदुग्ध और ( रक्तसे ) स्त्रीरजः काल | हुआ। ३ अत्यन्त पीड़ित, बड़ी तकलोफमें पड़ा हुआ। पाकर बनता-बिगड़ता है। शुद्ध मांससे निकले | उपधूमित (सं० वि०) उप-धम्ये जातोऽस्य । जातधम, मेहका नाम वसा है। मेदसे धर्म, अस्थिसे दन्त, हुआ। मलासे केश और शकसे ओजः निकलता है। बस- उपधुमिता (सं० स्त्रो०) ज्योतिषोक्त यात्रादि वर्ज- स्तनटुग्ध, स्वोरजः, वसा, धर्म, दन्त, केश और ओजः | नीय सूर्यगन्तव्य दिक्। को धातुभव उपधातु समझना चाहिये। "दग्धा दिगेन्द्री ज्वलिता दिगेशत्व पध मिता चानलदिक् प्रभाते।' उपधान (सं• लो.) उप-धा प्रधिकरणे बाट्। प्रत्ये कमेक' प्रहराष्टकेन क्रमादिशोऽष्टी सविता क्रमेत ॥" ( वसन्तराज)