पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३१०

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उपदेस-उपधातु ३.६ उपदेस (हिं.) उपदेश देखो। “विश्वे तेष्विति कृत्य' हि पुरुषस्व समापाते । उपदेह (सं० पु०) उपदियते अनेन, उप-दिह-घत्र । एष धर्म: पर: साच्चादुपधर्मोऽन्य उच्यते ॥” ( २।२३७) १ देहादिको वृद्धि, जिस्म वर्ग:रहको तरक्की। गण्ड- पिता माता और गुरु तीनोके प्रिय कार्यका साधन माला, अर्बुद प्रभृतिको उपदेह कहते हैं। ( सुश्नुत) तथा उनको सेवा शुश्रूषा साक्षात् परम धर्म है। सिवा २ उपलेप, मरहम। इसके अग्निहोत्रादि सकल पुण्यकार्य उपधर्म कह- उपदेहिका, उपदिका देखो। लाते हैं। "वेदमेवाभ्य सेन्नित्य तथा कालमतन्द्रितः । उपदोह (सं० पु.) उप-दुह आधारे पत्र । १ दोहन- त' ह्यस्याहुः पर' धर्ममुपधर्मोऽस्व उच्यते ॥" (५।१४०) समय पाते हो आलस्यको छोड नित्य वेदाभ्यास पात्र, दूध दूहनेका बरतन। - "गा: कांस्योपदोहाच कन्याश्च बहलङ्क ताः।" (हरिवंश ) । करना चाहिये। हिजगणके लिये यही परम धर्म २ गोके स्तनका मुख, गायके आयनको टिभनी। है। दूसरे सभी धर्मा को उपधर्म कहते हैं। उपद्रव (स पु० ) उप-टु भावे पत्र । १ उत्पात, उपधा (सं० स्त्री० ) उप-धा-अञ्। आतश्वोपसर्ग । हलचल। २ अत्याचार, जुल्म । ३ भापद, पात। पा २२१०६ । १ धर्म का भय दिखा राजा द्वारा अमात्य ४ उपसर्ग, अलामत । प्राचीन वैद्यक हारीतके मतसे- सचिवगणको परीक्षा। “यो व्याधिस्तस्य यो हेतुदोषस्तस्य प्रकोपतः। "धो पधाभिर्विप्रांस्तु सर्वाभिः सचिवान् पुनः।" (कालिकापु० ८५ १०) योऽन्यो विकारो भवति स उपद्रव उच्यते ॥ २ छल, धोका। ३ उपधानपर स्थापन । ४ व्याकर- व्याधे रुपरि यो व्याधिः उपद्रव उदाहतः । सोपद्रवा न जीवन्ति जीवन्ति निरुपद्रवाः ॥" णानुसार अन्तावर्णसे पूर्वका वर्ण । ५ उपाय, तदबीर । जो व्याधि उठकर शरीर में पूर्वस्थित किसी रोगको उपधातु (स'• पु०) १ आठ प्रधान धातुओंके समान बढ़ा फिर निकालता या कोई विकार डालता, अन्य धातु । उपधातु सात प्रकारका है-वर्णमाक्षिक, वही उपद्रव है। उपद्रवयुक्त रोगी प्रायः नहीं तारामाक्षिक, तूतिया, कांसा, पित्तल, सिन्दूर और जीता। निरुपद्रव बच जाता है। शिलाजतु। यह यथाक्रम वर्ण, रौप्य, ताम, रांगा, उपद्रविन् (सं० त्रि.) १ आक्रामक, हमला मारने- जस्ता, सौसा और लौहके उपधातु हैं। धातुमें जो वाला । २ अत्याचारी, जालिम। गुण रहता, उपधातुमें भी वह मिलता ; किन्तु उपद्रष्ट (सं• त्रि०) उप-दृश टच बाहुलकात्। अपेक्षाकृत कितना ही अल्प पड़ता है। कारण- । साक्षी, देखनेवाला। "उपद्रष्टानुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः । उपधातुमें मूल धातुका अंश अति अल्प ही होता है। परमात्मे ति चाप्युक्ती देहेऽस्मिन् पुरुषः परः ॥” (गौता १३।२२) माचिक प्रभृति शब्दों में सकल उपधातु बनानेकी प्रणाली देखो। 'अतिशयन सामीप्ये न दृष्टत्वादुपद्रष्टा । (शङ्कराचार्य) युरोपीयोंके मतसे जर्मन सिलवर, जर्मन गोल्ड उपद्रुत (सं० त्रि.) उप-टू-त । जातोपद्रव, आफत प्रभृति नानाप्रकारके उपधात होते हैं। नीचे उनको जदा, जो सताया गया हो। २ व्याकुल, बेचैन। संज्ञा और बनानको प्रणाली लिखी जाती है- . ३ उत्पातग्रस्त, बदशिगून् । (लो०) ४ सन्धिविशेष, ___ जमैन रौप्य-ताम्र २ भाग, जस्ता १ भाग और किसी किस्मको सुलह। निकल १ भाग सकल मिलाने से उत्तम जर्मन सिलवर उपदीप (सं० पु०) १ क्षुद्दोप, छोटा टापू । २ प्रायो- (रौप्य ) बनता है। इससे घड़ी, कटोरी, चमची द्वीप ( Peninsula )की तरह तीन अथवा चारो ओर प्रभृति नानाविध द्रव्य निर्माण किये जाते हैं। . प्रायः जलसे घिरी हुई भूमि। . ___जर्मन खण-प्लाटिनम २६ भाग, ताम्र ७ भाग उपधरना (हिं.क्रि.) उपधारण करना, बचाना। पौर जस्ता १ भाग एकत्र मृत्तिकाको धरियामें रख उपधर्म (सं० पु.) उप होनो धर्मः, प्रादि समा। अग्निका उत्ताप देनेसे बिलकुल स्वर्ण-जैसा उज्ज्वल • १ अप्रधान धर्म, छोटा फज। मनुके मतसे | और भारी एक प्रकारका उपधातु प्रस्तुत हो जाता Vol III. 78