पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३२६

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उपनिषद् ३२५ ३८ नादविन्दु, ३६ ध्यानविन्दु, ४० विद्या, ४१ योगतत्त्व, ४२ आत्मबोध, किसी वैदिक वा लौकिक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थमें भी ४३ परिवाज, ४४ विशिखा, ४५ सौता, ४६ चूड़ा, ४७ निर्माण, इनका कहीं प्रयोग नहीं मिलता। विशेषतः इसके ४८ मण्डल, ४६ दक्षिणामूर्ति, ५० शरभ, ५१ खन्द, ५२ महानारायया, बाद ही 'रसुर महमद इत्यादि लिखा है। उसे भी ५३ पदय, ५४ रामरहस्य, ५५ रामतापन, ५० बासुदेव, ५७ मुद्दल, ५८ शाखिला, ५६ पैनल, ६० भिक्षु, ६१ महत, ६२ शारौर, ६३ योग- लोग मुसलमानो कुरान्के कहे 'रसूल मुहम्मद शब्दका शिखा, ६४ तुरीयातीत, ६५ सन्नग्रास, ६६ परमहंसपरिव्राजक, ६७ अक्ष- उल्लेख मानते हैं। फिर भी न जाने क्यों देशीय मालिका, ६८ अव्यक्त, ६६ एकाक्षर, ७० अन्नपूर्णा, ७१ सूर्य, ७२ अक्ष, पण्डितोंने पाथर्वण-सूक्त जैसा इसे समझ लिया है ? ७३ अध्यात्म, ७४ कुडिका, ७५ सावित्री, ७६ आत्मा, ७७ पागपत, इसी ग्रन्थमें किसी जगह लिखा है- ७८ परब्रह्मा, ७६ अवध त, ८० विपुरातापन, ८१ देबी, ८२ विपुरा, "आदलाबुकनककं । अल्लां बुकम्। निखातकम्।" ८३ कठरुद्र, ८४ भावना, ८५ हृदय, ८६ योगकुण्डलो, ८७ भन्मजावाल, उक्त छत्रके साथ अथर्व संहिताके दो मन्त्रोंका ८८ रुद्राच, ८६ गणपति, १० जालदर्शन, २१ तारसार, ९२ महावाक्य, कितना हो आभास मिलता है- १३ पञ्चब्रह्म, ६४ प्राणाग्निहोव, ८५ गोपानतापनी, ८६ क्वथा, ६७ यान- वल्का, ८८ वराह, ९ शाब्यायनी, १०० हयग्रीव, १०१ दत्तात्रेय, "आदलाबुकमैककम् । १ । १०२ गारुड, १०३ कलिसन्तरया, १०४ जावालि, १०५ सौभाग्य, अलावुकं निखातकम् । २।” ( अयसहिता २०११३२।) १०६ सरखतौरहस्य, १०७ ऋच, १०८ मुक्तिका। . मालम होता है,इन दोनो मन्त्रोंमें कितना हो सौसा आजकल प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों के अनुसन्धानसे दृश्य रहने से ही किसी-किसीने अल्लोपनिषदको आथ- प्रायः २३५ उपनिषद् निकले हैं। इन नवाविष्क त वण-सूक्त जैसा मान लिया है। किन्तु इसे भी उन उपनिषदों में अनेक अप्राचीन हैं। उनमें अल्ल नामक लोगोंका भ्रम ही कहना पड़ेगा। अल्लोपनिषदोक्त अल्ला- उपनिषद् नितान्त आधुनिक है। शब्दकल्पद्रुममें बुक शब्द अथर्ववेद अथवा अपर किसी प्राचीन संस्कृत 'अन्न' शब्दमें अल्लोपनिषद प्राथवेणसूक्त के नामसे उद्धृत ग्रन्थ में नहीं आया। अथर्व प्रातिशाख्यक मतानुसार है। किन्तु वह सम्पूर्ण भ्रम है। अथर्व देखो। अथर्व संहितोक्त अलाबुक शब्द 'अल्लाबुक' हो नहीं अल्लोपनिषद् नामक ग्रन्थ उपनिषद अथवा श्रावण सकता। फिर अल्लावुक शब्दका अर्थ भी संस्कृत सूक्त वाच्य हो नहीं सकता। मनीयोगपूर्वक पढ़नेसे भाषाके अनुसार निश्चय करना कठिन है। अतएव अनायास ही समझ पड़ता है, कि आधुनिक समयमें हौ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि किसी संस्कृतज्ञ मुसल. उस ग्रन्थको किसी इसलामधर्मावलम्बीने लिखा है। मानने ही यह दारुण कार्य सम्पादन किया है। उक्त इस अपूर्व नव्य ग्रन्थको देखकर ही सम्भवतः अनेक ग्रन्यके पाठसे इतना तो अनुमान लगता है कि वह लोग अथर्ववेदसे अश्वद्या करते हैं। कोई कोई कहते अकबर बादशाहके समयमें हो सङ्कलित हुआ था। हैं कि अथर्ववेदमें कुरान्के अल्लाका हाल मिलता है। किन्तु किस व्यक्तिने वैसा कार्य किया अब यह अनु- इस अल्लोपनिषदके पढ़नेसे ही कदाचित् यह संस्कार सन्धान करना है। उत्पन्न हुआ है। इस संस्कारको दूर करना भी मुन्तखवुत् तवारीख नामक ईरानी ग्रन्थमें वदा. अवश्य कर्तव्य है क्योंकि- . . . उनीने लिखा है-“इसी वतसर (८८३ हिजरी या . अल्लोपनिषदके अन्तभागमें लिखा है- १५७५ १०) दक्षिण देशसे शेख भावन नामक एक "डल्लाकवर इल्लाकवर इल्लल्ले ति इल्लाहाः इल्ला इलाला अनादिस्वरूपा | शिक्षित ब्राह्मण पा गया था। वह इसलामधर्म में दीक्षित अथर्वशी शाखां हां ह्रौं जनान् पशून् सिद्धान् जलचरान् अदृष्ट' कुरु हुआ । उसोसमय सम्राटने हमें अथर्वण अनुवाद कर- कुर फट।" . ... नेका आदेश दिया। इस्लाम धर्मशास्त्रसे इस ग्रन्थके ये जो ऊपर कई एक शब्द लिखे गये हैं, वे संस्कृत कितने ही धर्मोपदेशका ऐक्य है। अनुवादके समय भाषामें बिलकुल देख नहीं पड़ते। इल्ला और अकबर अनेक कठिन स्थल देख पड़े, जिनका भाव शेख भावन दोनो प्रवत अरबी शब्द हैं। अथर्ववेदको छोड़ दीजिये, तक प्रकाश न कर सके। हमने यह विषय सम्राटको Vol III.