उपवड़-उपम ३३१ ला बिगाड़ देता है। फिर पाण्डु, तीनवेदना, वा उपभुक्ति (स० स्त्री० ) उप-भुज-क्तिन् । उपभोग, खेत कफ टपकता है। योनिको उपप्लता कफ, वात इस्तेमाल । और पामयसे व्याप्त रहती है। (चरक) । उपभुञ्जान ( स० त्रि०) उपभोग करता हुआ, जो उपबद्ध (सं० त्रि०) संलग्न, लगा हुआ। मजा ले रहा हो। उपबन्ध ( स० पु०) उप-बन्ध-घ । १ वस्त्वन्तर उपभूती (स' स्त्री० ) महानोली। बन्धन, दूसरी चोजको गिरफत । २ पद्मासन। उपभूषण (सं० लो० ) उपमितं भूषणेन। घण्टा ३ सांख्य विशेषके द्वारा सम्बन्धका प्रतिपादन । चामरादि उपकरण,वाजे गाजे और असाबल्लम वगैरह उपबह (सं० पु.) उपबीते भास्तीयेते, उप-ब: साजसामान्। कर्मणि घन न वृद्धिः। १ उपधान, तकिया। बह “घण्टाचामरकुम्भादिपावोपकरणादिकम् । हिंसायां भावे घञ् न वृद्धिः। २ उपपौड़न, ___ तभूषणान्तरे दद्याद यन्मात्तटुपभूषयम् ॥” (कालिकापु०६८ अ०) छेड़छाड़। उपभृत् (वै० स्त्री०) उप-भृ-क्विप। १ काष्ठनिर्मित उपबहेण (स० क्लो० ) उपबह्यं ते कर्मणि ल्युट्। यज्ञपात्र । २ चक्राकार पात्र । यह वटकाष्ठसे निर्मित उपवहं देखो। और यज्ञ में व्यवहृत होता है। उपबहु ( सं० त्रि०) कुछ, थोड़े। उपभोक्तव्य, उपभोग्य देखो। उपबाधा (सं० स्त्री०) उप-बाध-अ-टाप । उपभोक्त (सं० त्रि. ) उपभोग करनेवाला, जो मज़ा ड़न, खुब तकलीफ देनेकी बात । लेता हो। उपबाहु (सं० पु० ) उपगतो बाहुम्। १ बाहु समी- उपभोग (सं० पु०) उघ भुज-घ । १ निर्वेश, पवर्ती घड़का भेद । पलेसे कोहनीतक हाथका मजे.दारी। “प्रियोपभोगचिङ्गेषु पीरो भाग्यमिवाचरन्।" (रघ १२।२२) हिस्सा उपबाहु कहलाता है। (अव्य०) २ बाहुके २ व्यवहार, इस्तेमाल । ३ भक्षण, खवाई । निकट, बाज़ के पास। | उपभोगिन् (सं० त्रि.) उपभोग करता हुआ, जो उपवहिन् (सं० त्रि.) अतिरिक्त, जायद । मजा ले रहा हो। उपब्द (वै० पु.) उपगतः शब्दः, प्रादि समा० । उपभोग्य (सं• त्रि०) उप-भुज् ण्यत् अश्नार्थत्वे कुत्वम् । अभिषव शब्द । “यावाणो नन्तु रक्षस उपब्दः।" (ऋक् ॥१०४।१७) १ उपभोगयोग्य, मज़ा लिये जाने लायक । (क्लो०) 'उपब्द अभिषवशब्दः' (सायण ) २ उपभोगका द्रव्य, मजे की चीज़ । उपब्दि (वै. पु.) १ वाक, शब्द । (निघण्ट)| उपभोजनीय, उपभोजा देखो। २ श्रवणाह। “भरुतां एण्व आयतामुपब्दिः ।" (ऋक् १।१६८७) उपभोजिन् (सं० त्रि०) उपभोग करनेवाला, जो 'उपब्दिः श्रवणाहः।' ( सायण) मजा लेता हो। उपब्दिमत् (सं० त्रि.) शब्दयुक्त, पुरशोर । उपभोज्य (स. त्रि०) भोजनमें व्यवहार किया उपभस (स० पु०) उप-भन्ज-धज कुत्वम् । पृष्ठ जानवाला, जो खाने में लगता हो। प्रदर्शन, लड़ाईसे भागाभागी। उपम (वै.वि.) उपमीयते, उप-मा-क। १ उपमेय, उपभाषा (सं० स्त्री०) गौण भाषा, दूसरे दरजेकी मिसाल दिये जाने के काबिल । (ऋक् ॥ ३।३ ) उप-मीयते जबान्। समाप क्षिप्यते, मि बाहुलकात् ड। २ अन्तिक, नज़- उपमुक्त ( सं० त्रि. ) उप-भुज-क्त। १ व्यवहृत,! दोक । (निघण्ट) “उतोपमानां प्रथमो निषीदसि।" (ऋक् ८५०१२) इस्तेमाल किया हुमा। २ भक्षित, खाया हुआ। ३ अन्तिकस्थित, पास पड़नेवाला। उपभुक्तधन (सं० त्रि.) अपने धनका उपभोग "उपमं वा मघोना जाष्ठ च वृषभाणाम्।" (बालखिला ५१) करनेवाला, जो अपनी दौलतसे काम लेता हो। (पु.) ४ साखका पेड़।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३३२
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