पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३२ उपमगु-उपमाक उपमह (स• पु०) स्वफलकके पुत्र और अक्रूरके | कुमार-युगल इनके स्तवसे तुष्ट हो निकल पड़े। कनिष्ठ माता। उन्होंने उपमन्यको एक पिष्टक दे खा जानेके लिये उपमन्त्रण (सं० लो०) उप-मन्त्र-ल्य ८ । भासनीपसम्भाषा-1 कहा। किन्तु गुरुभक्त उपमन्यु गुरुको निवेदन न ज्ञानयनविरत्व पमन्त्रणेषु बदः । पा १।३४७) 'उपमन्त्रणं रहस्युपच्छन्दनम् ।' कर कुछ भी खानेपर सम्मत न हुये। गुरुभक्तिसे (सिद्धान्तकौमुदी) १ आमन्त्रण, तरगोबदिही, न्योता । सन्तुष्ट हो अश्विनीकुमारने इन्हें चक्षुरत्न और यह वर २ प्रार्थनापूर्वक प्रवर्तनारूप व्यापार, खुशामद। दिया था-सकल वेद और सकल धर्मशास्त्र सकल उपमन्लिन् (सं० त्रि.) उप-मन्त्र-णिनि। १ आमन्त्रण समय तुम्हारी स्मृतिके पथ पर चढ़ रहे गा। देनेवाला, जोतरगीव देता हो। “हसनीमुपमन्त्रिण:।" (ऋक् (महाभारत, आदि ३०) ८५११२।४) 'उपमन्त्रिण: उपमन्त्रणवन्ती नर्मसचिवो इसनामुपहासयुक्तां| उपमर्दै (सं० पु०) उप-मृद-वज । १ालोड़न, वाचमिच्छन्ति ।' (सायण ) २ सहायक-मन्त्री, छोटा वज़ौर। दलामली। २ हिंसन, मारकाट। निष्पीड़न, उपमन्थनी (सं. स्त्री०) उपमथ्यतेऽनया, उप-मन्य निचोडानिचोडी। 8 धान्यादिकार निष्फलीकरण, करण ल्य ट डीप। अग्निमन्थनके साधनका द्रव्य ।। अनाजकी मंडाई। (शतपथब्रा० १४।६।३।२१) उपमदक ( स० त्रि०) उप-मृद कर्तरि खुल । उपमन्थिन (संत्रि०) पग्निमन्थन करनेवाला। उपमर्दकारी, मांड़नेवाला। उपमन्यु (सं० पु०) श्रायोदधौम्य मुनिक एक जन | उपमश्रवस् (वै० त्रि.) १ अत्यच्च प्रसिद्दियुक्त, शिष्य। ये अति गुरुभक्त रहे। गुरुके आदेशसे | निहायत ऊंची शोहरतवाला । (पु.) २ मित्रा- उपमन्य गोचारण करते थे। भिक्षाके अन्नसे जीविकाका | तिथिके एक पौत्र और कुरुश्रवणके पुत्र । (ऋक् १०१३३६) निर्वाह होता था। प्रतिदिन सायाङ्गको गोष्ठसे लौट | उपमा (सं० स्त्री०) उपमीयते, उप-मा-अङ-टाप। गुरुके निकट यह खड़े रहते थे। किसी दिन आयोद- १ तुल्यता, बराबरी । २ अर्थालङ्कारका एक भेद, धौम्यने इन्हें स्थूलकाय होनसे पूछा-'उपमन्यु ! तुम मिसाल। इसमें साधारण धर्म विशिष्ट भिन्न-जातीय बहुत हृष्टपुष्ट देख पड़ेते हो। तुम्हारी खुराक क्या है?' | दो वस्तुको तुलमा देखायो जाती है। यथा- उपमन्यूने गुरुसे अपनी भिक्षावृत्तिकी बात बता दी। "उपमा यब सादृश्यलक्ष्मीरुल्लसति दयोः । तब आयोदधौम्यने कहा-देखो! हमसे न बता सौव भूपते: कौति खनदीमवगाहते॥" ( साहित्यद०) .भिक्षायोग्य द्रव्यादि उपभोग करना तुम्हें उचित नहीं। राजाको कीर्ति हंसीकी तरह खगनदीका अव- तदवधि यह जो भिक्षा मांग लाते, उसे ही गुरुपर गाहन करती है। इस स्थलपर हंसीको उपमासे चढ़ा जाते। फिर भी शरीर कुछ घटते न देख राजकीति वर्णित है। आयोदधौम्यने इन्हें बिलकुल आहार न देनेका उपाय उपमाके चार अङ्ग होते हैं,-उपमान, उपमेय, किया था। एक दिन गोचारणके समय उपमन्च सामान्य धर्म और उपमासूचक शब्द। जिसमें चारो क्षुधासे अत्यन्त कातर हुये। अपर कुछ न मिलनसे | अङ्ग रहते हैं, उसे पूर्ण और एक, दो या तीनके अभावसे इन्होंने अर्कपत्र बखाया था। उस पत्रके गुणसे उपमन्यु लुप्त उपमा कहते हैं। अन्ध हो गये और इतस्ततः घूमते-घूमते एक कूपमें जा उपमाक-मन्द्राज प्रान्तके विशाखपत्तन जिलेको सर्व- पड़े। इधर पायोदधौम्य इनको न देख नानास्थानों में सिद्धि तहसौलका एक ग्राम। यह अक्षा० १७° २५ ढढते-ढते उसी कूपके निकट पहुँच पुकारने लगे। | उ. और द्राधि० ८२.८६ पू० पर अवस्थित है। यहां कूपके मध्यसे उपमन्युने अपनी अवस्था गुरुदेवको बता एक अति प्राचीन देवमन्दिर बना है। उसमें ईश्व- दी। आयोदधौम्यने इनसे अश्विनीकुमार-हयका स्तव रकी आकाशमूर्ति है। इसीसे किसीको उसका दर्शन करनेको कहा। उपमन्युने वही किया था। अश्विनी- नहीं मिलता। फाल्गुन मोसमें देवताके विवाहाप-