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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३३६

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उपयोगवाद-उपरति ३३५ रण, चालचलन। २ भोजन, खवाई। “पर्यागते नदनफल-, उपरक्षण ( स. क्लो ) उप-रक्ष-ल्य ट। १ रक्ष- मज्जबदुपयोग: ।" ( सुश्रुत) ३ साहाय्य, मददका काम । शार्थ सैन्य स्थापन, रखवालीके लिये फौजका कयाम । "अनङ्गलेखक्रिययोपयोगम्।” (कुमार) ४ दृष्टसिद्धि के लिये २ रक्षाकरण, रखवाली। ३ चौकी, पहरा देनेवाले धर्मकायें। ५ अावश्यकता, जरूरत। भोग, सिपाहियोंके रहने की जगह।। इस्तेमाल । ७ औषधक्रिया, दवाका काम। ८ औषध- उपरचित (सं० त्रि.) निर्मित, बनाया हुआ, जो सेवन, दवा का इस्तेमाल । तैयार कर लिया गया हो। उपयोगवाद (सं० पु०) सिद्धान्त विशेष, एक मकूला। उपरजक (स० वि०) उप-रञ्ज-खुल् । उपराग उपयोगवादियों के कथनानुसार मनुष्य ऐसा कोई कार्य कारक, रंग चढ़ा देनेवाला। न करे, जिससे किसी जीवको दुःख हो। उपरञ्जन (सं० लो०) उपरागकरण, रंगसाजी। उपयोगिता ( स० स्त्री०) उपयोगिन्-तल्। १ आवश्य- उपरञ्जनौय, उपञ्जा देखो। कता, जरूरत। २. कार्यकारिता, काबिलियत। उपरञ्जा (सं० त्रि०) उपराग योग्य, रंग चढ़ाने लायक। ३ साहाय्य, मदद। ४ उपयुक्तता, मुनासवत। उपरत (नि) उप-रम-त । १ हटा हुआ, निकला उपयोगिन् (सत्रि०) उप-युज-घिणुन् । बुजाक्रीड़विवि- हुमा। २ निवृत्त, छुटकारा पाये हुआ। ३ मृत, चत्यजरजभजातिचराप वरामुषाम्योऽनश्च । पा १२१४२। १ उपयुक्त, गया-गुजरा। सुवाफिक । २ उपकारो,फायदेमन्द। ३ अनुकूल, मिला "पितर्यु परतै पुवा विभजेयुध नं पितुः ।" (दायभाग) हुना। ४ योग्य, ठीक। ५ कार्यकारक, कारामद। ४ उपरतियुक्त, शहबतसे अलग रहनेवाला। उपयोजन (सं० लो०) १ अश्व सज्जीकरण, घोड़ा उपरतरास (सं० वि०) नृत्य तथा क्रीड़ासे निवृत्त, जोतनका काम। २ जोत, जोड़ी। जो नाचकूद बन्द कर रहा हो। उपयोज्य (सं. त्रि.) उपयोगमें लाने योग्य, जो उपरतविषयाभिलाष (संत्रि.) सांसारिक सुखको कान पा सकता हो। इच्छासे निवृत्त, जो दुनियावी श्राराम चाहता उपयोष (स० अव्य०) आनन्द । खुशी खुशी। न हो। उपर (वै० त्रि.) वप-करण । १ स्थापित, रखा उपरतस्य ह ( स० त्रि.) इच्छाशून्य, लालच छोड़े हुआ। “उपवरे यदुपरा: अपिलन् ।” (ऋक् १६६ २५ ) 'उपरा| हुआ। उप्ताः स्थापिताः।' ( सायण ) २ उपरत, बन्द । 'उपरा उपरताः। उपरतात् (सं० अव्य.) मण्डलके मध्य, घेरे में। (ऋग्भाष्ये सायण ५।२९।५) ३ उपरि कालोत्पन्न, पिछले उपरताति (वै० स्त्री०) उपरतताय कमणि तिन, वक्त पैदा हुआ। 'उपवास: यजमान जन्मन उपर्युत्पन्नाः।' (सायण) वेदे लस्य ः। १ युद्ध। 'उपर रूपले: पाषाणतुन्नैः, शरैस्तायते (पु०) निम्न प्रस्तर, नोचेका पत्थर । इसपर सोमको विस्तोर्यते उपरवाति युद्धम्।' ( सायण) २ मेघकरका हारा रख कर दूसरे पत्थरसे पोसते हैं। ५ यज्ञके स्थानका प्राच्छाद्य अन्तरीक्ष । "न्तरन्ति ता उपरताति ।" (ऋक् १०१५१।५) निम्न माग। ६ मेघ, बादल। उपरतारि (स. त्रि०) शत्र शून्य, सबसे दोस्ती उपरता (सं० पु.) उप-रन्ज-त। १ राहु, पुच्छल रखनेवाला । तारा। २ राहुग्रस्त चन्द्र वा सूयें, पुच्छल तारसे उपरति (सं. स्त्री० ) उप-रम-क्तिन । १विरति. दबा हुआ चांद या आफताब। (त्रि०) ३ व्यसना- बन्दो। २ वासनात्याग, आराम छोड़ने का काम । सक्त, बुरी आदतमें पड़ा हुआ। ४ रञ्जित, रंगा हुआ। ३ वैराग्य, दुनियासे मुहब्बत न रखने की बात। ५ पौड़ा-युक्त, तकलीफज़दा। ४सवास। उपरक्षक ( स० त्रि०) उप-रक्ष खुल । सैन्यके समी- “वाह्यानालम्बन वृत्तेरेषोपरतिरुत्तमा।” (विवेकचूड़ामणि) पका रक्षक, फौजके पास पहरा देनेवाला। जो वृत्ति किसी प्रकार वहिविषयका 'अवलम्बन