३३४ उपयन्त -उपयोग उपयन्त (स• पु०) उप-यम-दृच । १ पति, खाबिन्द ।। १ प्रार्थित, मांगा हुआ। २ समर्पित, दिया हुआ। (त्रि.)२ संयमनकर्ता, अपनेपर काब रखनेवाला। (क्लो.)३ प्रार्थना, अर्ज। उपयन्त्र (सं० क्लो०) उपगतं यन्त्रम्। शलयोद्धरणार्थ | उपयाचितक (सं० त्रि.) उप-याचित-कन्। १ यन्त्रविशेष, जिस्ममें चुभे कांटे वगरहके निकालने का अभीष्टको सिदिके लिये देवतादिको देय। २ प्रार्थित, एक औज़ार। यह २५ प्रकार होता है-१ रज्ज, मांगा हुथा। (क्लो०) ३ देवदेय वस्तु, देवता पर २ वेणिका, ३ पट्ट, ४ चर्म, ५ अन्तवल्कल, ६ लता, चढ़ायी जानेवाली चीज । ७ वस्त्र, ८ अष्ठील, अश्म, १० मुदगर, ११ पाणि, | उपयाज (स• पु०) उप-यज-धज, यज्ञाङ्गत्वात् न १२ पादतल, १३ अङ्गलि, १४ जिह्वा, १५ दन्त, कुत्वम्। १ यज्ञाङ्ग यागविशेष। यह ११ प्रकारका १६ नख, १७ सुख, १८ केश, १८ अश्वकटक, २० होता है। "एकादश प्रयाजा एकादशानुयाजा एकादशोपयाजा शाखा, २१ठीवन, २२ प्रवाहणहर्ष, २३ अयस्कान्त, एतेह सोमपा: पगुभाजनाः।" (ऐतरेयवा० २।१८) २ काश्यपगोत्रके २४ क्षार और २५ अग्नि। देह, देह के प्रत्यङ्ग, सन्धि- ऋषिविशेष। इनके ज्येष्ठश्चाताका नाम याज था। स्थान, कोष्ठ और धमनी में जहां जिसका प्रयोजन पड़े, (भारत आदि १६९ १०) वहां उसोको व्यवहार करे। (मुश्रुत सूत्रस्थान ७ १०) उपयात (स.त्रि०) उप-या कतरिक्त। १ आचार्यके उपयम (सं० पु०) उप-यम-अय्। यमः समुपनिविषु च । समीप आगत, आया हुआ। पा श३६३ । विवाह, शादी, मंगनी। विवाह देखो। "उपयातायाय निति कोहनीया ।” (गोभिल) उपयसन (स० लो०) उप-यम-लुट । नित्य' हमने पाणावु २ प्राप्त, पहुंचा हुआ। पयमने। पा ४४७७ । १ विवाह, शादी। संयसन, रोक।। उपयान (सं.क्लो०) उप-या-ल्य ट । निकट में गमन, ३ अग्निका अधःस्थापन। करण ल्य ट। ४ बन्धन- पास जवाई। "उपयानापयाने च स्थानं प्रत्यपसर्पणम्।" (रामायण). साधक कुशादि। उपयाम (वै० पु. ) उप-यम विकल्प घज । उपयमनी ( स० स्त्रो०) उपयम्यते, कर्मणि ल्य ट्-डो। यमः समुपनिविषु च । पा ३।३।६३ । १ विवाह, शादी। उप- १ अग्न्याधानाङ्ग सिक्तादि, जलानेको लकड़ी रखनेका यम-णिच-अच् । २ यज्ञापात्रविशेष, चम्यच, डोई। पत्थर, मट्टी, कसड़ वगैरहको टेक। “योपयमनी ते श्राणि ( शुक्लयजुः ७४) ३ यन्नाङ्गके पात्र विशेष द्वारा ग्रहण । रुपाले । (ऐतरेयवा० १।२२) २ संयमनी, अपनेपर काब ४ वेदमन्त्रविशेष। यह यज्ञान के पात्र विशेष द्वारा रखनेवाली औरत। सोमरस निकालते समय पढ़ा जाता है। उपयष्ट (व० फु०) उप-यज-च । षोडश प्रकारके उपयिचारिक (सं० पु०) विहारके रक्षणार्थं नियुक्त पुरुष। मध्य प्रतिप्रस्थाता नामक ऋविग विशेष । उपयुक्त (स० त्रि.) उप-युज-क्त । १ योगा, वाजिब । (शतपथ्या० ३.८५) २ भुक्त, लिया हुश्रा, जो खाया गया हो। ३ रचित, उपयाचक (सं० वि०) उप-याच-ख ल। स्वयं बनाया हुआ। याचक, नजदीक जाकर मांगनेवाला। उपयुक्तता (स. स्त्री०) योगाता, मुनासिबत । उपयाचन (सं० लो०) उप-याच्-ल्य ट । देवतादिके उपयुञ्जात (सं० वि०) उपयुक्त करता हुआ, जो निकट अभीष्टादिको प्रार्थना, किसौके पास पहुंचकर ठोक-ठाक लगा रहा हो। अपनी मुरादको दरखास्त । उपयुयुक्षु (सं० त्रि.) नियुक्त करनेवाला, जो लगाने के उपयाचिका (स० स्त्री०) परपुरुषके निकट पहुंच करीब हो। सम्भोगको प्रार्थना करनेवाली स्त्री, जो औरत दूसरे उपयोक्तव्य ( स० त्रि.) नियुक्त किये जाने के योग्य, मर्दसे शहवतके लिये दरखास्त करती हो। जो लगाया जा सकता हो। उपयाचित (स.त्रि.) उपयाच्यतेऽनेन, उप-याच-त। उपयोग (सं.. पु०) उप युज्यते, युज-घञ्। १ आच-
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