उपरिचर-उपरिष्टाज्जयोतिष्मती उपरिचर (स. पु. ) पुरुवंशके एक राजा। उदरसे एक कन्या और एक पुत्र दो बच्चे निकले। दूसरा नाम वसु भी है। ये सदा मृगयासक्त रहते थे। मत्स्यजीवो यह अद्भत व्यापार देख चमत्कृत हुये। • इन्ट्र के उपदेश-क्रमसे इन्होंने चेदि राज्यपर अधिकार उन्होंने कन्या और पुत्र दोनोंको उठा उपरिचरके किया। इन्द्रने इन्हें स्फटिकके बने विमान और सम्म ख जा रखा। राजाने उक्त कन्या और पुत्र वैजयन्तीको मालाका उपहार दिया था। दोनोंको ग्रहण किया था। पुत्रका मत्स्यराज और उपरिचर इन्द्रध्वज पूजाके प्रवर्तक हैं। विमानपर कन्चाका नाम मत्स्यगन्धा पड़ा। यह मत्स्यगन्धा चढ़ पाकाशपथ में चलने और ऊपर घमनेसे उपरिचर व्यासदेवको जननी थीं। (भारत आदि ६२ अ० ) नाम पड़ा है। इनके महाबलपराक्रान्त १म वृहद्रथ उपरिचित (स० वि. ) जव पर संग्रहीत, ऊपर अथवा महारथ, २य प्रत्यग्रह, श्य कुशाख वा जमा किया हुआ। मणिवाहन, ४थै मावेल्ल और ५म यदु पांच पुत्र उपरिज (सं० वि०) जव पर उत्पन्न होनेवाला, हुये थे। इनमें जो जिस देशमें अभिषिक्त हुआ, ऊंचा, जो ऊपर निकल गया हो। वह देश उसीके नामसे पुकारा गया। उपरितन (स. त्रि०) अवस्थित, ऊपरवाला। ___उपरिचरकी राजधानीके निकट शक्तिमती नदी उपरिनिहित (सं० त्रि.) ऊर्ध्वः स्थापित, ऊपर वहती थी। इन्होंने कोलाहल नामक एक पर्वत तोड़ रखा हुआ। डाला । शुक्तिमती नदी पर्वतके उसी विदीस उपरिपुरुष (स' त्रि.) ऊर्ध्वपर पुरुषयुक्त, जिसके पथसे निकली थी। उसो पर्वतमें एक पुत्र और एक ऊपर मर्द रहे। कन्याने जन्म लिया । शुक्तिमतीने पुत्रकन्याको उपरिन त् (स'० त्रि. ) ऊर्ध्वसे आगमन करने- उठा राजाके हाथपर रखा था। पुत्र सेनानी के कार्यमें वाला, जो ऊपरसे पा रहा हो। लगा। यथाकालपर गिरिबाला गिरिकानं ऋतुस्नाता उपरिवुध्न (स• त्रि०) भूमिपर उठाया हुआ, जो और शुचि हो अपनी अवस्था राजासे कही। उसी जमीन पर खड़ा किया गया हो। दिन राजाको पिटलोकगणने मृगया करनेके लिये उपरिभाग (सं० पु.) अव पाव. ऊपरी हिस्सा। आदेश दिया। राजा उनकी आज्ञाके क्रमसे मृगयार्थ उपरिभाव (सं० पु.) जव अवस्थान, ऊपर रह निकले, किन्तु अलोकसामान्या रूपलावण्यवती गिरि- नेकी हालत। पल न सके और उसो रमणीय वसन्त उपरिभूमि (सं० स्त्री.) अर्व भूसि, ऊपरी जमोन । कालपर वनमें घुसे। मृगयाको बात मनसे उतर उपरिमय (सं० पु०) मानवके जज़ पर स्थित, जो गयी थी। गिरिकाके विरहसे नितान्त अधीर हो आदमौके ऊपर हो। राजा इतस्ततः घूमते-घूमते किसी तरुमून पर जा उपरिमेखला ( स० पु० ) गोत्रके प्रवर्तक एक ऋषि । दैठे । उसी स्थानमें इनका रेतस्खलन हुआ। उपरिवहतो (स• स्त्री०) व दिक वहतोच्छन्दो- राजाने यत्नपूर्वक अपना रेतः शोधनकर एक श्येन- विशेष। वहतो देखो। पक्षीको देते कहा-तुम इसे लेकर हमारी महिषोको उपरिशयन (सं० लो०) विश्वासस्थान, आरामगाह। सौंप पावो। श्येनपक्षी रेतः ले आकाशके पथसे उड़ा उपरिवेणिक (सं० त्रि०) ऊर्ध्व श्रेणी में रहनेवाला, और उसी समय किसी अपर श्येनने चञ्चुस्थित रेतःको जो ऊपरी कतारमें हो। मांस समझ आक्रमण किया। उभयके विवादमें उपरिष्ट (सं० क्लो०) परांठा, घी लगा लगाकर तवेपर रेतः चञ्चुसे छूट यमुनाके जल में गिर गया। मत्स्य- सेकी हुई रोटी। रूपा अद्रिकाने वह रेत: खा लिया। दशमास बाद उपरिष्टाज्जयोतिष्मती (सं० स्त्री०) वैदिक छन्दो- किसी धीवरने उसी मतस्योको पकड़ा था। मतस्योके । वृत्तिका एक भेद। जयोतिष्मती देखो। Vol III. 85
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