पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३३९

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उपरिष्टाज्जयोतिस्-उपर्यासन उपरिष्टाज्जयोतिस् (सं० स्त्री०) त्रिष्ट भ् छन्दका | उपरुध्यमान (सं० वि०') आवत, जो घेरा जा एक भेद। इसके अन्तिम पादमें पाठ अक्षर रहते हैं। रहा हो। उपरिष्टात् (सं० अव्य०) जव-नि. रिष्टातिल । उपर्युच- | | उपरुह्य (स अध्य०) अवरोहण करके, चढ़कर।' रिष्टात्। पा ५।३१ १ उपरि, ऊपर। २ पश्चात्, पीछे। उपरूपक (स क्लो०) उपमितं रूपकेन । नाटक उपरिष्टाबृहती (स' त्रि.) वैदिक छन्दोविशेष। विशेष। यह अष्टादश प्रकारका होता है, यथा- इसमें चार पाद पड़ते, जिनसे प्रथममें बारह और १ नाटिका, २ बोटक, ३ गोष्ठी, ४ सहक, ५ नाट्य- अवशिष्ट तीनों में केवल आठ आठ अक्षर रहते हैं। रासक, ६ प्रस्थान, ७ लाप्य, ८ काव्य, . प्रण, उपरिसद् (सं० त्रि.) उपरि सोदति, सद-क्विप् । १० रासक, ११ संलापक, १२ श्रीगदित, १३ शिल्पक, १ऊवं पर उपवेशन करनेवाला, जो ऊपर रहता हो। १४ विलासिका, १५ दुर्मलिका १६ प्रकरणी, (पु.) २ राजसूययनके एक सोमनेटक द्रुवस्वन् १७ हल्लीश, १८ भाण। नामक देवता। “वे देव सोमनेवा उपरिसदो टुबखन्तस्ते भ्य: साहा" उपरना (हिं० पु.) उपरना, चद्दर । (अक्तयजुः ९।३५) उपरैनी (हिं० स्त्रो०) ओढ़नी, पिछोरी। उपरिसद्य (सं.ली.) उपरि-सद भाव बाहुलकात् उपरोक्त (हिं० वि०) उपयुक्त, जो पहले कहा जा यत् । ऊपर उपवेशन करने का भाव, ऊंची बैठक। चुका हो। 'उपरिसद्य अन्तरिक्षसद्यमाकाशे उपवेशनम् । (शतपथब्राह्मणभाष्य हरि-| उपरोध (सं० पु.) उप-रुध-वज । १ आवरण, खामौ ५।२।१।२२) ढक्कन। २ प्रतिबन्ध, रोक। ३ अनुरोध, समझानेको उपरिस्थ (स. त्रि०) ऊर्ध्व पर रहनेवाला, ऊपरी, | बात। ४ पोड़न, तकलीफदिहो। . - जो ऊपर ठहरता हो। "भृत्यानामुपरोधेन यत् करात्यौवं देहिकम् । उपरिस्थापन (स.ली.) ऊर्ध्व पर स्थापित किये तद्रवत्यमुखोदक' जीवतस्य मृतस्य च ॥” (मनु ११३१८) जानेका भाव, ऊपर रखे जानेको हालत । 'उपरोधी भक्तवस्त्रादिना यथोपयोगमाहरणम् ।' (मेधातिथि) उपरिस्थित (सं० त्रि.) ऊर्ध्व पर दण्डायमान, जो उपरोधक (सं० लो०) उप-रुध-ख ल । १ गर्भागार. जपर हो। तहखाना। २ वासटह, रहने का भीतरी कमरा । उपरिस्पश (सं० वि०) उन्नत किया हुआ, जो ३ रस। (त्रि.) ४ उपरोधकर्ता, घेरनेवाला। चढ़ाया गया हो। ५ पावरक, ढांकनेवाला। ६ प्रतिबन्धक, रोकनेवाला। उपरी (हिं. स्त्री०) १ छोटी गोल कण्डी। (वि०) ७ अनुरोधकारी, तरगोब देनेवाला। . २ ऊपरी। उपरोधन (सं० लो०) प्रतिबन्धन, रोक । उपरी-उपरा, , उपराचढ़ी देखो। उपरोधिन् (सं० त्रि.) १ प्रतिबन्धन करनेवाला, जो उपरोतक (सं० पु०) शृङ्गारबन्धन विशेष, शह- रोकता हो। २ प्रतिबद्द, रुका हुआ। बतदारी एक बैठक। उपरोहित (हिं.) पुरोहित देखो। "एकपादमुरौ कृत्वा द्वितीयं स्कन्धसस्थितम् । उपरोहिती (हिं. स्त्री०) पौरोहित्य देखो । नारी कामयते कामौ बन्धः स्यादुपरीतकः ॥" ( रतिमञ्जरी) उपरौंछा (हिं.क्रि-वि.) उपरिस्तात. ऊपरको ओर। उपरुद्ध (स० त्रि.) उप-रुध-क। १आहत, घिरा उपरौटा (हिं. पु०) उपरितन भाग, जपरी पन्ना। इमा। २ प्रतिरुड, रुका हुआ। ३ उत्पीडित, उपरौठा (हिं.वि.) उपरितन, ऊपरी। सताया हुआ। ४ अनुरुह, समझाया हुआ। ५रक्षित, उपरौना, उपरना देखो। हिफाजत किया हुआ। उपर्यासन (स.लो०) जङ्गाके बलस्थिति, जांधके उपरुध्य (स• अव्य०) प्रतिरुद्ध करके, रोककर।। सहारको बैठक ।