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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३४२

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उपवस्ति-उपविपाश उपवस्ति (स० क्लो) उप-वस्त स्तम्भे भावे तिन् । ! लगता। उपवासके पूर्व और पर दिन कांसके पात्रमें स्तम्भ, खम्भा। भोजन, मांसभक्षण, सुरापान, मधुसेवन, लोभ, मिथ्या- उपवस्त (सं० त्रि. ) उपवास करनेवाला, जो कथा, व्यायाम, स्त्रीसङ्ग, दिवानिद्रा, अनन, मांस, फाकेसे हो। शिलापिष्ट एवं मसूरका भक्षण, पुनरसन, पथभ्रमण, उपवा (सं. स्त्रो०) आध्मान, फंकफांक। यान, परिश्रम, द्यूतक्रीड़ा, तैलमर्दन, परान्न, तैल, उपवाक (व. पु०) उप-वच-घञ् कुत्वम्। १ पर चणक, कोद्रव-धान्य, शाक, अधिक घृत और अधिक स्पर आलाप, बात चीत। “नभवन्त इदमुपवाकमीष:।” (ऋक् । जलपान निषिद्ध है। १२१६४।१ ) 'उपवाकमुपेत्य वचन" परस्परवचनम् ।' (सायच) उपवास असमर्थ होनसे प्रतिनिधि देना पड़ता उप-वा भावे क्विप् तस्यै क जल यत्र। २ यव। है। पुत्र, भगिनी, भ्राता और भार्याक अभावमें 'उपवाका: यवाः।' (वैददौपे महीधर १९९०) ब्राह्मण प्रतिनिधि बनता है। ब्रह्मवैवर्तके मतसे उप- उपवाको (वै० स्त्री०) उपवाक स्त्रियां डीप । इन्द्र वासमें घत्यन्त असमर्थ पड़ने पर एक ब्राह्मणको यव। “ददरैरुपवाको भिर्भ षज तोक्मभिः।" (शुक्लयज : २१।३०)। भोजन करा देना चाहिये। उपवाक्य (३० त्रि०) उप-वच कर्मणि यत् कुत्वम्। उपवासक (स' त्रि०) उप-वास-ख ल । अनाहारी, १ सम्भाषणोय, बात किये जाने के काबिल । (ऋक् १९१६९१२) २ प्रणम्य, बन्दगी किये जाने के लायक उपवासन (व. लो०) उपवास उपजेवायां भावे उपवाच्य, उपवाक्य देखो। ल्य ट। १ उपसेवन, इस्तेमाल। “यदा सन्धयामुपाधाने उपवाजन (स' लो०) वीजन, पङ्खा। यदोपकासने तन्।" ( अथर्व १४:२:२६ ) २ परिच्छद, पोशाक । उपवाद (व. पु.) उप-वद-वज । निन्दा, बदनामी। उपवासिन् (ख०नि०) उप-बस-णिनि। अनाहारी, उपवादिन् (वै० त्रि०) उप-वद-णिनि । निन्दुक, फाका कारजेवाला। बदनाम करनेवाला। "येऽलयाः कलहिनः पिशुना उपवादिनः।" उपवाहन (स लो०) उप-बह-णि भाव ल्य ट। छान्दोग्य उ०) १ समोपगमन, पासको जवाई। २ ले जाने या उपवास (सं० पु०) उप-वस-घञ्। भोजनाभाव, वापस लाने का काम ! फाका, उपास। “उपावृत्तस्य पापेभ्यो यच वासी गुणैः सह। उपवाहिन् (सत्रि.) किसीको बोर जानवाला, उपवासः स विज्ञेयः सभोगविवर्जितः ॥” (भविष्यपु० ) जो बहते चला जाता हो। सर्वभोग छोड पापको निवृत्तिके लिये दया, उपवाह्य (समु०) उप-यह-ण्यत । १ राजवाहक क्षान्ति, धैर्यादि नियमसे रहना उपवास कहलाता है। हरलो, वादशाहको सवारो। (लो) २ राजपथ उपवास दो प्रकारका होता है, वैध और अबैध। सरकारी सड़क। (त्रि०) ३ निकट पहुंचाया व्रतादिके लिये विधिपूर्वक किया जानेवाला उपवास जानेवाला। वध है। वह चार प्रकारका कहा है- उपविद (4. स्त्री० ) उपविन्दति, विद -क्किए । "सायमाद्यन्तयोरहोः सायं प्रातच मध्यमे । १ प्राप्ति, पहुँच। २ ज्ञान, समझ। "उपविदा उपवेदन उपवासफल प्रेसोर्वञ्च भक्त चतुष्टयम् ॥" नैते हवींषि देवार्थ न प्रयच्छन्तोत्ये तन ज्ञानेन" (सायण ) उपवासकै दिन अञ्जन, गोरोचना, गन्ध, पुष्य, ३ अन्वेषण, तलाश । (त्रि.) ४ प्राप्त होनेवाला, माला, अलङ्कार, दण्डधारण, गात्र वा मस्तकमें तैल जो पहुंच जाता हो। ५ ज्ञाता, समझदार । प्रोक्षण, ताम्बल, दिवानिद्रा, अक्षकोड़ा, मैथन और उपविद्या (स० स्त्री०) गौण विद्या, दूसरे दर- स्त्रीस्पर्शको परित्याग करना चाहिये। पुत्रके प्रभावमें जेका इल्म । पत्रोत्पत्ति पर्यन्त ऋतुकालको स्त्रीगमनसे दोष नहीं उपविपाश . ( स० अव्य.) विपाशा नदीके समीप Vol III. 86