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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३४५

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उपशोभन-उपसंहारिन् अत्या. समा। १ आरोपित शोभा, बनावटी। आगाज.। ३ स्तम्भन, रोक। ४ पालम्बन, टेक। खबसूरती। सजने-बजने और प्रोढ़ने-पहननेको | ५ आडम्बर, बखेड़ा। ६ उपलक्ष, गरज । उपशीभ कहते हैं। "विहितोपोभमुपयाति माधवे।” (माघ) उपष्टम्भक (सं० त्रि०) उपस्तन्भाति, तनभ-ख ल । उपशोभन, उपशोभ देखो। पतन-विरोधक, गिरने न देनेवाला। उपशोभित ('स. त्रि.) उप-शुभ-क्त । १ शोभा 'उपष्टम्भक: स्टहस्खेव स्तम्भादिलक्षण:।' (ऋगभाष्ये सायण) युक्त, ख बसूरत। २ अलङ्ग त, बना-ठना, जो गहना- उयष्टत् (सं० अव्य.) आज्ञापर, हुकमसे। कपड़ा खुब पहने ओढ़े हो। उपसंयम (सं० पु०) उप-सम्-यम-अप। १ उप- उपशोषण (सं० त्रि.) शुष्क कर देनेवाला, जो। संहार, खातमा। २ समाक् नियम, अच्छा कायदा। सुखा डालता हो। ३ बन्धन, फांस। उपश्री (स. स्त्री०) आच्छादन, ढक्कन। जो वस्तु उपसंयोग ( स० पु०) सामीप्य न संयोगः। निकट किसी वस्तुपर शोभा बढ़ानेके लिये ढांप दिया सम्बन्ध, नजदीकी रिश्ता! जाता हो। उपसंरोह (सपु०) उपगतः संरोहः, प्रादि-समा। पश्रुत् (वै० पु०) श्रूयते, उप-शु-क्विए ; उपगता निकट प्ररोह, मिली-जुली बढ़ती। श्रुद यस्मिन् । यज्ञ। 'उपचति यज्ञे। (ऋगभाष्ये सायण) उपसंवाद (सं० पु०) उपत्य अङ्गीकृत्य संवादः। उपश्रुत (सत्रि०) १ श्रवण कर लिया हुआ, जो पणबन्ध द्वारा अङ्गीकारपूर्वक कथन, कोलकरार। सुनने में आ गया हो। २ अङ्गीकृत, माना हुआ। 'उपसवाद: पणबन्धः।' (सिद्धान्तकौ० ) उपश्रुति (स. स्त्रो०) उप-श्रु-तिन्। १ समीप उपसंध्यान (सं० लो०) उप-सम् व्ये करण लाट । श्रवण, पाससे सुननेको बात। “यथा न इन्द्र सोमपा गिरा अन्तर' वहियोंगोपसव्यानयोः। पा १०१२६। परिधानवस्त्र, नीचे मुपश्रुतिं चर" (ऋक् १।१०।३) २ देवप्रश्न, आवाज़ गैब। पहननेका कपड़ा। 'भन निर्गत्य यत् किञ्चिच्छुभाशुभकरं वचः। उपसंस्कृत (स० त्रि.) पाक किया हुआ, जो श्र यते तहिदुधीरो देवप्रथमुपश्रुतिम् ॥' (हारावली २२) पका लिया गया हो । रात्रिको वहिर्गमनके समय जो शुभाशुभ वाक्य उपसंहरण (स• क्ला० ) १ निवर्तन, निकास। मन पडता है, वही देवान उपश्रुति है। ३ भविष्यत् परित्याग, कोडाई। ३ अङ्गीकरणका अभाव, इन- कथन, पेशोन्गोई। ४ अङ्गीकार, मञ्जूरी। कार। ४ आक्रमण, हमला। उपश्रुत्य (सं० श्रव्य० ) श्रवण करके, सुन सान कर। उपसहरत् ( स० त्रि०) १ निवतैनकारी, अलग उपयोत (सं. त्रि०) श्रवण कर लेनेवाला, जो कर लेनेवाला। २ अङ्गीकार न करनेवाला, जो कान लगा कर सुनता हो। मन र फरमाता न हो। ३ आक्रमणशील, हमला उपश्लिष्ट (स. त्रि.) निकट स्थापित, लगा हुआ। मारता हुआ। उपश्लेष (सं० पु०) उप-निष-घज । आधार, प्राधे- उपसंहार (स० पु०) उप-सम्-ह-घन । १ समाप्ति, यके एक देशका सम्बन्ध, नजदीकी, आमना-सामना। खातमा। २ संग्रह, ढेर, चुनाव। ३ सम्यक् हरण, उपश्लेषण (सं० लो०) उप-श्लिष-ल्यु ट। प्राधान, खासी चोरी। ४ नाश, मौत। ५ आरब्ध वा प्रस्ता- आधार और आधेयका एकदेश, जमाव, लगाव। वित विषयका शेष, चलाये या उठाये कामकाखातमा। उपश्वस (स.त्रि०) शब्दयुक्त, पुरशोर, जो आवाज पाक्रमण, हमला । ७निवर्तन, निकास। ६ सङ्कोच, दे रहा हो। पशोपेश, सिकुड़ जानेको हालत । उपटना (स.पु०) उप-स्तम्भ-घन। १ पतनका उपसंहारिन् (सं० त्रि.) १परिग्रह करनेवाला, प्रतिरोध, गिर पड़नेकी रोक, एनौ। २ उपक्रम, जो ले लेता हो।