पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३५४

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उपात्तशस्त्र-उपाध्याय ३५३ उपात्तशस्त्र (सं. वि०) शस्त्र ग्रहण करता हुआ, । फजेको फिक्र। २ विशेषण, सिफत। ३ कुटुम्ब- हथियार बन्द। व्याहृत, लोगोंका असली चलन। ४ जाति वंश प्रभृति उपात्वय ( स० पु०) उप-अति-इन्-अच् । १ लोका- परिचायक शब्द। ५ छल, धोका। ६ आधार, टेक । चार अतिक्रम, राह-रस्मसे वेपरवाई। २ व्यतिक्रम, ७ करण, मामूली नतीजेके लिये कोई खास सबब । बेहूदा काम। ३ नाश, बरबादी। ८ समृद्धि, बदती। न्यायके मतमें जातिसे भिन्न उपादान (सं० लो०) उघ-आ-दा-ल्य ट । १ ग्रहण, धर्म, जो सिफ़त कौमसे अलग हो। यह दो प्रकारका इस्तेमाल। २ न्यायके मतसे समवायि-कारण, नज होता है-सखण्ड और अखण्ड । आकाशत्वादि 'दीकी सबब। जो पदार्थ अवस्थान्तरको प्राप्त हो सखण्ड और प्रतियोगित्वादि अखण्ड है। (सिद्धान्त- अपर वस्तु उपजाता अथवा जिससे कुछ बनाया जाता, चन्द्रोदय) १ व्यभिचारज्ञानहारा व्याप्तिज्ञानका प्रति- वही उपादान कारण कहलाता है। जैसे-घटका बन्धक। जैसे- उपादान मृत्तिका और अलङ्कारका उपादान स्वर्ण है। "ध मवान् बरु रित्यादावाद न्धनमुपाधिः।" (न्यायसिद्धान्तमञ्जरी) ३ सांख्यके मतमें कार्यसे अभिन्न कारण, कामसे मिला धमवान् वह्नि कहनेसे पाट्रकोष्ठ उसका उपाधि हुश्रा सबब। ४ सांख्यके मतसे सिद्ध आध्यात्मिक हो जाता है। यह चार प्रकारका होता है केवल तत्त्वविशेष। साध्यव्यापक, पक्षधर्मावच्छिन्न साध्यव्यापक, साधना- __“आध्यात्मिकाच प्रकृत्यु पादानकारभाग्याखयाः। वायविषयो परमात् वच्छिन्नसाध्यव्यापक और उदासीनधर्मावच्छिन्न साध्य- पञ्च नव तुष्टयोभिमताम्।" व्यापक। (तर्कदीपिका) ११ अलङ्कार मतसे जाति ५ वर्णन, शुमार,। ६ कथन, गुफ्तार । ७ सम्मिलन, ! गुण क्रियाका यदृच्छाखरूप। १२ सम्मानसूचक शब्द, शामिल होने की बात। ८ इन्द्रियनिग्रह। ८ अभि- खिताब । प्राय, मतलब। १० दूना अर्थ, दुचन्दमागौ। ११.बौद्ध | उपाधिक (सं० त्रि०) अधिक, ज्यादा, ऊपरी। मतानुसार शरीर वा वाणीको चेष्टा, जिस्म या ज़बा- उपाधेय ( सं. वि. ) उप-प्रा-धा कर्मणि यत् । नकी कोशिश। १ अभिनिवेशनीय, जमाने लायक। २ अारोपयोगा उपादान कारण ( सं० लो० ) समवायो कारण, लगानेकाबिल । ३ उपाधिके योगा, खितावके लायक । नज़दीको सबब। . उपाधी (सं० त्रि०) उत्पाती, ऊधम उठानेवाला। उपादानलक्षण (सं० स्त्री० ) अजहत्स्वार्थारूप उपाध्या (हिं.) उपाध्याय देखो। लक्षणाविशेष। उपाध्याय (सं० पु० ) उपत्य अधीयतेऽस्मात, उप. "मुखवार्य स्खेतराचेपो वाक्यार्थेऽन्वयसिद्धये । अधि-इ-घञ्। १ अध्यापक, उस्ताद। २ वेदके एक स्वादात्मानोऽप्युपादानादेषोपादानलक्षणा।" (साहित्यदर्पण) देशका अध्यापक। उपादिक (स० पु०) उप-अद-इन् संज्ञायां कन्। "एकदेशन्तु वेदस्य वेदाङ्गान्यपि वा पुनः।। कोट भेद, किसी किस्म का कोड़ा। योऽध्यापयति इत्यर्थमुपाध्यायः स उच्यते ॥” ( मनु २ ॥१४१) उपादेय (स० त्रि.) उप-बा-दा कर्मणि यत्। जो व्यक्ति अपनी जोविका निर्वाहके लिये वेदका १ ग्राह्य, लेने लायक। २ उत्तम, पच्छा। ३ उत्कृष्ट, कोई अंश वा वेदाङ्ग पढ़ाता, वह उपाध्याय कह- बढ़िया। (शान्तिशतक १।१२) ४ विधेय, किये जानेके लाता है। उपाध्याय प्राचार्यसे छोटा होता है। काबिल। क्योंकि कल्प एवं उपनिषदके साथ सम्पर्ण वेद उपाधान (सं० लो०) उपधान, तकिया। पढ़ाना आचार्यका काम है। उपाधि (सं० पु०) उपाधीयन्ते गुणादयोऽनेनेति, । ३ कान्यकुब्ज प्रभृति ब्राह्मण जातिका एक उपाधि । उप-पा-धा-कि । उपसर्ग घोः कि: पा ६३८२ । १ धर्मचिन्ता, । ४ भुकसा नामक पंवार राजपतोंका एक उपाधि । Vol III. 89