उपाध्याया-उपायतुरीय उपाध्याया ( सं० स्त्री०) उपाध्याय-स्त्रियां टाप् । उपान्तसो (सत्रि०) समीप आगमन करने- अध्यापिका, पढानेवाली औरत। वाला, जो पास आ रहा हो। उपाध्यायानो (सं० स्त्री०) उपाध्याय-डोष-पानुक । उपान्तिक (सं० ली. ) उपाधिक्ये अन्तिम ततः इन्द्र वरुणभवशवरुद्रमहिमारण्ययवयवनमातुलाचार्याणामानुक् । पा| प्रादिसमा०। १ निकट, नजदीक । (वि.) ४।१।४६। उपाध्यायपत्नी, उस्तादकी औरत । २ समीपस्थ, पड़ोसी, पास पड़नेवाला। उपाध्यायो, उपाध्यायानी देखो। उपान्ता ( सं० त्रि.) उप-अन्त-यत्। निकटवर्ती, उपान (हिं० स्त्री०) १ भवनका संस्थान, मकान्को पास पड़नेवाला। (पु०) २ चक्षुका कोण, आंखका कुरसी। २ स्तम्भाधार, खम्भेकी चौकी। कोना। (क्ली० ) ३ नै कट्य, पड़ोस। उपान: (वै० त्रि.) १ शकटसदृश, गाड़ी-जैसा। | उपाप्ति (सं० स्त्री०) उप-आप-तिन् । प्राप्ति, २ पिटसदृश, बाप-जैसा। हासिल, पहुँच। उपानत् (सं० स्त्री०) उपनह्यते पादौ अनया, उप- उपाभृति ( वै० स्त्री०) उप-प्रा--भृ-क्तिप्-तुक् । नह-क्विप् पूर्वपदस्य दीर्घः। नहितिदृषिव्यधिरुचिसहितनिषु कौ।। इस्वस्व पिति कृति तुक्। पाहा॥७॥ उपाहरण, नज़दीक लानेका पा ६।३।११६ चर्मपादुका, चमड़ेको जती। “कार्थी उपा काम। (ऋक् १।१२८१९) 'उपाभ्रति उपाहरणे ।' ( सायण ) नहा उपमुञ्चते।" ( तैत्तिरीयस' ० ५.४४।४ उपाय (सं० पु०) उप-अय-भावे घज। १ उपगम, उपानद-हिण्डोल रागका एक भेद । नजदीक पहुंचनेको बात। २राजादिके शत्र वशी- उपानद्धारण (स.ली.) चर्मादिको पाटुका धारण, चमड़े वर्ग रहको जतीका पहनाव। यह नेत्रको | यह चार प्रकारका होता है-साम, दान, भेद और सुख देनेवाला, आयुष्य बढानेवाला, पादका रोग | दण्ड। किसीके मतमें उपाय सात प्रकारका है- मिटानेवाला,सुख देखानवाला, ओज चढ़ानेवाला, और साम, दान, भेद, दण्ड, माया, उपेक्षा और इन्द्रजाल । बलवीय लानेवाला होता है। क्योंकि नङ्ग पांव सदा शेषोत तीन उपाय सामान्य समझे जाते हैं। एतद्भित्र घूमनेसे मनुष्य रोगो, आयुष्यसे होन, इतइन्द्रिय और आलङ्कारिक दो प्रकारके दूसरे भी उपाय बताते हैं। पन्ध हो जाता है। (वैद्यकनिघण्ट) ३ साधन, सबब। यह दो प्रकारका है- उपाना (हिं० कि०) उत्पन्न करना, बनाना। लौकिक और अलौकिक । घटादि निर्माण के लिये उपानुवाक्य (सं० त्रि. ) उप-अनु-वच-ण्यत् । चक्रादि लौकिक और खगैगमनके पक्षमें याग- १ पश्चात् कथनयोग्य, पौछ कहे जानेके काबिल। यह यज्ञादि अलौकिक उपाय है। ४ उपार्जन, दौलत शब्द अग्निका विशेषण है। (लो०)२ वेदोक्त वाक्य हासिल करने का ज़रिया। ५ छल, धोका। ६ प्रति- भेद, तैत्तिरीय-संहिताका एक अंश । कारका पथ, रोककी राह। ७ उपक्रम, सिलसिला। उपान्त ( सं० त्रि. ) उपगतमन्ते न। १ निकट, उपायचतुष्टय (सं० लो०) शत्र को पराभूत कर- समीप, नजदीक। (लो०) २ प्रान्तभाग, लगा हुआ नेके लिये साम, दाम, दण्ड और भेदरूप चार प्रका- हिस्सा। "उपान्तभागेषु च रोचनाडाः ।" (कुमार) ३ तौर, रका उपाय। किनारा। ४ चक्षुका कोण, अांखका कोना। ५ एक उपायचिन्ता (सं० स्त्रो०) साधनका विचार, तद- व्यतिरेक अन्तिम अक्षर, सिवा एकके आखिरी हफै। बोरको फिक्र। उपान्तवर्ण (स० पु०) अन्त्यवर्ण का पूर्व-वर्ण, | उपायन (सं० त्रि०) उपायको समझनेबाला, जो भाखिरी हर्फके पहलेका हर्फ । जैसे यशस् शब्दमें | सबौर निकाल लेता हो। दन्त्य सकारके पहले तालव्य शकारका परवर्ती वर्ण | उपायतुरीय (स• पु०) दण्डरूप चतुर्थ उपाय, पकार उपान्तवण है। चौथी तदबीर सजा।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३५५
दिखावट