पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३६३

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उपोदिकातैल-उफड़ना उपोदिकातल (सं० ली.) क्षुद्ररोगका एक तैल।। उप्त (स० वि०) उप्यते स्म क्षेत्रादिष, वप-क्त। पोय, सरसों. नीमको छाल, मोच, कुन्हड़े को बेल और १ कृतवपन, बोया हुआ। २ मुण्डित, मुंडा हा फटको वैल इन सबको जला कर को हुई भस्म | ३ परिष्कृत, साफ किया हुआ। ४ निक्षिप्त. हाला पानीके साथ तेलमें पकाने और सन्धव लवण मिलानेसे | हुश्रा। यह औषध बनता और पाददारीपर लगता है। उतकृष्ट (सं० वि०) वीजके वपन बाद कर्षित, उयोदोका, उपोदिका देखो। बोकर जोता हुआ। उपोद्ग्रह (स' पु०) उप-उद्-ग्रह-अप । ज्ञान, समझ। उप्ति (सं. स्त्री० ) वप-तिन्। वपन, बोवाई। उपोद्घात (सं० पु०) उप समीपे उद्धननम्, 'उप-| उप्तिविद् (सं० पु०) उप्ति-विटु-विष । वपन उत्-हन्-घ। १ उदाहरण, मिसाल। २ प्रारम्भ, विधिज्ञ, बोनका कायदा समझनेवाला। शुरू। ३ उपक्रम, दौबाचा। “वीजानामुप्तिविञ्च स्यात् क्षेत्रे दोषगुणस्य च । उपोहलक (सं० त्रि०) दृढ़ करनेवाला, जो मज मानयोगच जानीयात् तुलाधोगांश्च सर्वशः ॥” ( मनु ३३० ) बूत बनाता हो। उपत्रिम (सं. त्रि०) वप-क्ति-मप। डित: तिः। उपोद्दलन (सं० लो० ) उप-उत्-बल-ल्य ट। उत्ते पा ३८८ वपनजात, बोनेसे निकला हुआ । जन, उहीपन, इसतेहकाम, उभार। उप्पम (हिं. पु.) कार्पास विशेष, किसी किस्मको उपोष (स• पु०) उप-उष-घञ्। उपवास, फाका, कपास। यह मन्द्रोज प्रान्तके तिनेवेलो और कोय- . दिन-रात कुछ न खानेको हालत। उपवास देखो। बातूर जिलेमें होता है। उपोषण (स. लो०) उप-उष-ल्य ट। उपोष देखो। उप्य (सं. त्रि०) वप् बाहुलकात् क्यप । वप- “उपोषण नवम्याञ्च दशम्यामेव पारणम्।" (तिथितत्त्व ) नीय, बोया जानेके काबिल । उपोषध (सं. पु.) बौद्ध शास्त्रोक्त उपवास व्रत। उप्यमान (सं० त्रि०) वपन किया जानवाला, जो इसका अपर नाम पोषध है। शाक्यसिंहने यह व्रत | बोया जा रहा हो। चलाया था। प्रकृत बौद्ध धर्मावलम्बी मात्र इस उपाय-बरार प्रान्तस्थ एलिचपुर जिले को दण्यापुर व्रतको पालन करते थे। यह उपवासकारीको तहसीलका एक ग्राम। यह अक्षा०२१° उ० तथा इच्छाके अनुसार होता है। ट्राधि० ७७.३८३०“पू० पर अवस्थित और शाह- उपोषित (सत्रि .) उप-उष कतरिक्त ।१ कृतो | धवल मन्दिरके लिये प्रसिद्ध है। हिन्दू और मुसलमान पवास, फाका किये हुआ। (क्लो०) २ उपवास, दोनो उक्त मन्दिरमें अर्चना करने जाते हैं। फाका। (मनु ५।१५५) उप्लेता-काठियावाड़के गोंडाल राज्यका एक बन्दर । उपोष्य (सं० त्रि०) उप-वस अकर्मक धातुयोगे कर्मसंज्ञा | यह अक्षा० १२° ४४ उ० तथा द्राधि० ७०० २० पू० विधानात् कर्मणि बाहुलकात् क्यप । १ उपोष पर जनागढ़से ८ कोस उत्तर-पश्चिम अवस्थित है। करके रहने योग्य, जो फाका करके रहने लायक हो। यहां अनेक धनवान रहते हैं। - “विसन्ध्याव्यापिनी या तु से वोपोष्या सदा तिथिः ।” ( कालमाधव) | उफ़ (अ. अव्य०) १ हा ! हैफ ! आह ! २ धिक् ! (अव्य०)२ उपवास करके, फाके के साथ । फिश ! छो ! छो !! उयोसथ (हिं.) उपवसथ देखो। “मर जाये पर उफ़ न करे।” ( लोकोक्ति ) उपोह (सं० पु०) सङ्गह कार्य, जोड़ाई, जमा ड़ाई, जमा| उफक (अ. पु०) क्षितिज, देखने में आसमानसे कराई। लगा मालम होनेवाला ज़मीन्का किनारा । उपोद्यमान (सं० त्रि०) प्रारम्भ किया जानेवाला, | उफजां-खेजां (फा०कि.वि.) गिरते-पड़ते। जो शुरू किया जा रहा हो। उफड़ना, उफनना देखो।