उमदाना-उमर-बिन्-ख़त्ताब उमदाना, उमदना देखो। । उमर चेयम-एक ईरानी ज्योतिषी। ईरान् सुलतान उमर, म देखो। जलालुद्दीनने (१०७४-१०८२ई० ) इनसे एक पञ्चाङ्ग उमर-अल मकसूम-खुलीफा श्य मुवावियाके प्यारे बनवाया था। गुरु। उन्होंने अपने पिताके मरनेपर इनसे पूछा उमरतो (हिं स्त्री०) वाद्यविशेष, एक बाला। था-हस खिलाफत लें या नहीं। इन्होंने कहा उमरद-बम्बईके काठियावाड़ प्रान्त का एक ग्राम। यदि आप मुपलमानों पर न्यायपूर्वक शासन कर सके, यह बिलगङ्गा नदोके दक्षिण किनारे अवस्थित तया तो खिलाफन ले लें और यदि न कर सकें, तो धारङ्गधारासे दक्षिण १८ कोस और मूलोले दक्षिण- छोड दें। उस खलीफने छः सप्ताह राज्य चलाने पश्चिम साढे ३ कोस दूर है। इसके प्रतिष्ठाताका बाद अपने शो अयोग्य पाया और राज्यभार छोड़नेका पता नहीं लगता। किन्तु उमरद को बसे कोई २०० विचार कर लिया। उन्होंने राज्य परित्याग करते हो वत्सर बोते हैं। यहां उदुम्बरके वृक्ष बहुत थे। इसोसे एकान्त कोठीमें शासन लगाया और प्लेगके आक्रमण | लोगोंने ग्रामका नाम उमरद रख लिया था। राजा वा विषके प्रयोग प्राण गंवाया था। उमय्य वंशके साहिब यशोवन्त सिंहजीके समय सरधार काठी इस लोग इससे उमर-अल-मकसूमपर बहुत चिढ़े। ये ग्रामके पशु उड़ा ले गये थे। किन्तु बदले में राजा जीवित ही भूमिमें गाड़े गये थे। लोगोंने समझा साहिबने जब उनको भूमिपर अाक्रमण किया, तब इन्हींके कहनेसे मुवावियेने राज्य छोड़ा है। ६४३ ई. । काठियोंने उपद्रव उठाना छोड़ दिया। यहां अधिकांश को यह घटना हुई थी। कृषक कबीरपन्थो कुनबी हैं। उमरखान् खिलजो-सुलतान् अला-उद्दीन खिलजीके | उमर-बिन्-अबदुल अजीज-प्रथम मरवान के पौत्र । कनिष्ठ पुत्र। १३१६ ई. के दिसम्बर मासमें अला उमय्य बंशके येम खलौफ थे, ७१७ ई०के सितम्बर उद्दीन्के मरनेसे मालिक काफूर खाजाने इन्हें दिल्लोके या अतोबर मासमें सुलेमान्के उत्तराधिकारो बन दाम- सिंहासनपर बैठाया था। किन्तु ३५ दिन बाद ही स्कसमें सिंहासनपर बैठे और ७२० ई०के फरवरी मासमें मालिक काफर मार और उमरखान सिंहासनसे मर गये थे। इनके स्वार्थत्याग और मिताहारको लोग उतारे गये । १३१७ ई० के जनवरी मासमें इनके भाई बड़ी प्रशंसा करते हैं। मुबारक खान बादशाह बने। उमर-बिन्-खुत्ताब-मुहम्मदके एक प्रिय सहचर और उमर ख.याम-एक ईरानी कवि। वस्तुतः यह खेमान् । श्वशुर। ६३४ ई०के अगस्त मासमें ये अबू-वकर सादि- बनाते, इसीसे इनकी खयाम उपाधि पड़गई थी। इनकी कका उत्तराधिकार पा मुहम्मद के पीछे २य खलीफ कविता अपने धार्मिक मतके लिये अद्वितीय समझी | बने थे। इन्होंने सीरिया और फिनिसियापर अपना जाती है। उमर खयामको पाषण्डसे बड़ी घृणा थी। | विजयका डंका बजाया और ६३७ ई० में जेरूसलमको इसीसे कपटी साधु इनसे बहुत बिगड़े। उमर ख्या- | |दबाया था। इनके सेनापतियोंने ईरान और मिसरमें मने नैशपूर में जन्म लिया और ज्योतिष पढ़ने में बहुत धावा मार इसलाम धर्मको उत्तेजना दी थी। अलगज- श्रम किया था। इतना पढ़ते-लिखते भी अन्तको न्द्रियाक पतनसे सुप्रसिद्ध पुस्तकालय विध्वस्त हुआ था। यह नास्तिक हो गये। उमरखान्को कविताका भाव किन्तु इन्होंने नाइल और लाल-सागरके बीच नहर नीचे दोहोंमें देखाते हैं- फिर खोलायी थी। इनके समय मुसलमानोंने ३६००० नगर जीते,४००० ईसाई गिरजे तोड़े और १४०० मस- • नौ चाहत हो पन्तमें पावनको विश्राम । प्यार पगेसोको करी छोड़ रेषको नाम । जिदें बनवाई थौं । सर्वप्रथम इन्हीं को 'श्रमीसल मोमि- नहीं सतांवो काहुको क्रोध हृदयमें लाय । नौन्' उपाधि मिला। इनका सात बार विवाह हुवा मेखि कष्ट पानन्दसों पईचो सुरपुर नाय । था। उनमें पलीको सुता उम्भ कलसम भी एक पनी
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३६७
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