उमर महरामो-उमरा (अमर) थौं। ६४४ ई०को ३री नवम्बरको बुधवारके दिन : प्रबन्ध करते रहे। १४५४ ई० को वौं जून के सोम- सवेरे मिली मसजिद में नमाज पडते समय एक ईरानो वारको वतसरके वयसमें २६ वर्ष ३ मास राज्य गुलामने उनके तलवार भोंक दी। तीन दिन पीछे करने के बाद ये चल बसे। ये मञ्च पर खड़े होकर ६३ वर्षको अवस्था में मृत्य हुई। इन्होंने १० वर्ष अपने कबूतर उड़ते देखते थे। उसोसमय मञ्च टा ६ मास और ८ दिन राज्य किया था: अफफान के और इनका प्राण छटा। इनके पुत्र बाबर ग्यारह पुत्र उसमानको इनको खिलायतमा उत्तराधिकार वर्ष के वयसमें सिंहासन पर बैठाये गये। 'उन्होंने मिला था। किसी अंगरेजने लिखा है-'१८०२ को मैं जहीरुद्दीन' अपना उपनाम रखा था " शीराज में था। उसी समय शोया ईशनियोंने उमर उमर सहलान सावजी-एक मुमतमान ग्रन्थकार । खलौफ की मृत्यु का उत्सव मनाया। उन्होंने एक इन्होंने 'मसाविर नसीरी' नामक एक न्याय और तत्व- लम्बा-चौड़ा चबूतरा बनाया और उसपर यथासम्भव ज्ञान सम्बन्धी अन्य लिख सुनसान सञ्जकै वजौर अङ्ग भङ्ग कुरूप एक प्रतिमाको जमाया और फिर नसोरुद्दीन्महमूदके नाम उत्सर्ग किया था। उसके सम्म नख हो लोग कहने लगे-मुहम्मद के समान उमरा (अ० पु.) बहुतसे अमोर, कितने ही धनवान् । उत्तराधिकारी प्रलोको तुने खलीफ न बनने दिया, | उमराई अमीरी, बड़प्पन। . तुझी कोटि कोटि धिक्कार है। अन्तको जब गाली- उमरा (अमर)-उदयपुरवाले राणा प्रतापसिंहके पुत्र। गलौजको थैलो खाली हो गयी,तब एकायक प्रतिमापर अपने पिताके खगै जानेपर ये मेवाडके राया बने । पत्थर और लाठीको मार पड़ने लगी, अन्तको वह चर अकबर के जीते कोई झगड़ा लगा न था। किन्तु उनके चर हो गयी। प्रतिमाके भीतर शून्च स्थानमें मिष्टान उत्तराधिकारी जहांगीरने मेवाड़को पूर्ण रीतिसे अधीन भरा था। समवेत दर्शकोंने उसे लट लट खा डाला।' करना चाहा। इसलिये युद्ध होने पर उमरा राणाने उमर महरामो-एक मुसलमान ग्रन्थ कार। १६४५ उन्हें दो बार हराया था। फिर जहांगीरने प्रतापके भाई ई में इन्होंने 'हुज्जतुल हिन्द' नामक पुस्तक सुगराको उमरासे लड़ानेको ठहरायो। सात वर्ष बाद लिखी थी। वह स्वयं दूसरेके धर्मका अाश्रय लेने पर शरमाये और उमरमिर्जा-अमीर तैमूरके पौत्र और मीरान्शाहके | उमराको राजधानीका खामी बना बाजे बजवाये । पुत्र। शाहरुख मिर्जासे लड़कर ये हार गये और इससे चिढ़ जहांगीरने राणापर बहुत बड़ी फौज भेजी। जखमी हुये थे। कुछ दिन बाद १४०७ ई०के मई । किन्तु वह खामनोरको घाटीमें फंस हार गयो। मासमें इन्होंने इस दुनियासे कूच किया था। फिर जहांगीरने अपने प्रधान सेनापति महाबत परज़ा-१ अमौर तैमूरके २य पुत्र । अपने खानको भेजा। जब वह भी सफलमनोरथ न हुये पिताके जीते समय यह ईरानके शासक रहे और तब सैनिक पौछे अजमेरको हटे। १६१३ ई० में १३८४ ई० को ४० वत्सरके वयस पर लड़ाई में मारे लड़ते लड़ते राणा उमराने जहांगीरकी अधीनता गये। उत्तराधिकारी बाकरसिर्जा इनके एक पुत्र स्वीकार कर ली। जहांगीरने बड़ा सम्मान किया और हुए। २ सुलतान् अबूसईद मिरज़ाके ग्यारहमें एक युवराज कर्णसिंहके साथ इन्हें उपाधि तथा उपहार पुत्र, सुलतान् मुहम्मदके पौत्र और अमीर तैमूरके । दिया। किन्तु इन्हें अधीनता 'अच्छो न संगी। लड़के मौरानशाहके प्रपौत्र। दिल्लौके बादशाह बावर इन्होंने अपने पुत्र कर्ण सिंहको राज्य सौंप मेवाड़की शाह इनके पुत्र रहे। इनका जन्म १४५६ ई०को गद्दी छोड़ी थी। इनके पुत्र का नाम जगत्सिंह रहा। समरकन्दमें हुआ था। इन्होंने अपने पिताके जोते अन्दि १६२८ ई० में अपने पिता कर्ण के खग जानेपर उन्हें जान् और फरगान संयुक्त राज्यका शासन किया था। राज्यका उत्तराधिकार मिला था। जगत्सिंहके पुत्र १४५८ ई०मैं पिताके मरनेपर भी यह उक्त राज्यका राजसिंह १६५४ ई० में गहीपर बैठे। .
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३६८
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