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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३७१

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उमाकिनौ-उमापति उमाकिनी (हिं० वि०) उत्पाटन करनेवाली, जो , उमादि-गुजरातप्रान्तके महोकांठेका एक क्षुद्र राज्य। उखाड़ देती हो। आय प्रायः१०००रु. वार्षिक है। चौहान कोली उमागुरु ( पु०) उमाया गुरुः पिता। हिमालय, वंशके लोग राज्य करते हैं। वयोज्येष्ठताके हिसाब- पार्वतीके गुरुखरूप पिता। से राजा अधिकार पाते हैं, गोद किसोको नहीं उमागुरुनदी (सं० स्त्री०) नदीविशेष, एक दरया। | बैठाते। उमाचतुर्थी ( स० स्त्री० ) ज्येष्ठ मास की शुक्लचतुर्थी, | उमाधव (स• पु०) उमापति, शङ्कर। जेठ महानिक उजियारे पाखको चौथ। | उमान-ईरान्को खाडीका एक प्रान्त । अलबिलादुरीने "येष्ठ शुक्लचतुर्थ्यान्तु जाता पूर्वमुमा सती। लिखा है, कि खत्ताबके पुत्र २य खलीफा उमरने प्रल तस्मात् सा तव सम्पूज्या स्त्रीभिः सौभाग्यद्धये ॥" (भविष्योत्तर०) श्रासीके लड़के उसमान्को (६३६ ई में) इस प्रान्तका ज्येष्ठ मासकी शुक्ल चतुर्थीको पहले उमा संतोने शासक बनाया था। उसमान्ने पहले पहल बम्बई- जन्म लिया था। इसलिये उक्त दिवसपर स्त्रियोको प्रान्तके थाने जिले इसलामियाको अभियान भेजा। सौभाग्य की वृद्धिके लिये पार्वतीका पूजन मलीभांति अभियानके लौटने पर अपने शासकके पत्रात्तरमें करना चाहिये। खलीफा उमरने लिखा था-अह थकीफके भाई! उमाचना (हिं. क्रि०) उत्पाटन करना, निकाल तूने कीड़ेको जङ्गलमें छोड़ दिया है। यदि कुछभी डालना, उखाड़ना। आदमी मारे जायगे, तो हम तेरी जानिके भी उमाजी नायक-बबईप्रान्तस्थ थान जिले के एक | उतनेही आदमो कटा डालेगे। फिर भी बेहरीनका डाकू। १८२७ ई० में पूनके पुरन्दर पर्वतसे इन्होंने शासनाधिकार मिलने पर उसमानके भाई हाकमने ३०० आदमी और घोड़े लेसह्याद्रि पार किया और बारूज (भड़ोंच ) को फौज भेजी। किन्तु वह देवल पनवेलसे पूर्व ६ कोस परबल पर्वतके नीचे डेरा डाल | पर बड़े वेगसे चढ़े थे। अपने चाचा अल हज्जाजके दिया। वहांसे इन्होंने घोषणा की-गवरनमेण्ट के बदले । मरनेपर सिन्धुके विजेता मुहम्मद ने सुराट या काठिया- हमको सब कोई भूमिकर दे। उमाजीने कोयले, | वाडके अधिवासियों से सन्धि कर ली। घास और लकड़ोके गढे बांध सङ्केत किया था-हमें उमानन्द (सं० पु.) १ शिव, पार्वतीपति। कर न मिलने से लोगोंका घरबार फुकेगा। १० वीं २ एक प्रस्तरमय क्षुद्र होप। यह आसामके दिसम्बरको २०० डाकुवोंने मुरबाड़के सरकारी खजा कामरूप जिलेमें गौहाटी नगरके सामने ब्रह्मपुत्र नेका १२।१३ हजार रुपया लटा और रक्षकसैन्यको नदपर अवस्थित है। इसी नामका इस जगह एक मारापीटा। १५२८ और १८२८ को अधिकतर उप प्रस्तरमय शिवमन्दिर भी बना है। यह एक द्रव उठा था। किन्तु कपतान माकिनटशने अति पवित्र तीर्थस्थान हैं। कितने ही यात्री घाया-जाया परिश्रमकर १८३४ ई में यह अशान्ति मिटा दी थी। करते हैं। सुनने में आता है-महादेवने जो भस्म उमात्तर-लहसुर राज्यका एक ग्राम। यह अक्षा | अपने मस्तक में लगाया था, उसोसे यह होप बनाया १२.४१०“और ट्राधि० ७६ . ५६४० पू०पर अव गया है। उमानन्दकै मन्दिरको सेवाके लिये ३४५६ स्थित है। पहले यहां विजयनगरके राजावों को राज एकर निष्कर और १८५७ एकर आधे करको भूमि धानी थी। १६१३ ई०में महिसुरके अधिपतिने उन्हें लगी है। हरा इसे अपने अधिकारमें कर लिया। इस स्थानका उमापति (सं० पु०) १ शिव, पार्वतीके पति । आय चामराजनगरके देवमन्दिरको सेवामें लगता है। मिथिलाके एक प्रसिद्ध कवि। यह विद्यापतिके उमाद (हिं.) उन्माद देखो। समसामयिक और राजा शिवसिंहके सभासद थे। उमाद-गुजराती बंनियोंको एक हो। ई० चतुर्दश शताब्दी में उमापति विद्यमान थे। . '