सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उमापति-उमा बाढे उमापति-१ पाकयज्ञनिर्णय ग्रन्थके रचयिता। यह उमापतिधर मिश्च-सस्कृतके एक प्राचीन ग्रन्थकार। धर्मदेवके पुत्र और चन्द्रचड़के पिता थे। २ दीप- यह गोड़ाधिप विजयसेनको सभाके एक रत्न रहे प्रकाशटिप्पन नामक ग्रन्थ-रचयिता। पिताका नाम और विजयसेनके प्रशस्ति रचा था। विजयसेनके पुत्र प्रेमनिधि था। ३ पथ्यापथ्यविनिश्चय ग्रन्थके रच वल्लालसेनने ही बङ्गालके ब्राह्मणों और कायस्थोंमें यिता। यह तपनके पिता, नरसिंहसेनके पितामह कुलमर्यादा डाली थी। बल्लालसेनके पुत्र का नाम और विश्वनाथ सेनके प्रपितामह रहे। ४ करुणा- लक्ष्मणसेन था। उनके प्रासादके फाटकपर लिखा था- कल्पलता भक्ति ग्रन्थके रचयिता। ५ प्रतिष्ठाविवेक "गेवर्धनय शरणौ जयदेव उमापतिः । और शुद्धिनिणय ग्रन्थके रचयिता। ६ रत्नमालाटीकाक कविराजश्व रबानि समिती लक्षणस्य च " ( कविराजप्रतिष्ठा) रचयिता। ७ वृत्तवार्तिक नामक ग्रन्थ के रचयिता। जयदेवने गीतगोविन्दके चौधे श्लोक में इनका उल्लेख ८ हठप्रदीपिकाटिप्पण ग्रन्थके रचयिता। किया है। उमापति उपाध्याय-प्रदाॉयदिव्यचक्षुः ग्रन्यके रच- उमा वाई-गायकगड़के खांडेराव सेनापतिको विधवा यिता। इनके पिताका रत्नपति और माताका नाम पत्नी। पौलानी गायकवाड़के वधका समाचार सुन रत्नावती था। इन्होंने बदला लेने की ठहरायी थी। कुछ फौज जोड उमापति त्रिपाठी-एक विख्यात पश्चिमभारतीय पण्डित। और पोलाजौके पुत्र कांताजी कदम तथा दामाजी इन्होंने बाल्यकालमें काशीमें रइ विद्या पढ़ी थी। गायकवाडको साथ ले वह अहमदाबाद पर चढ़ी। पोछे अयोध्या में जाकर त्रिपाठी वास करने लगे थे। किन्तु सिवा नौवराज नामक राजपूत-जेताको मारनेके संस्कृत और हिन्दी भाषाके इन्होंने अनेक ग्रन्थ बनाये मराठे कुछ न कर सके और राजो हो गये। ८० थे । दोहावली और रत्नावलो प्रभृति पुस्तक प्रसिद्ध हैं। हजार रुपया अहमदाबादके खजाने से न मिलने पर १८७४ ई में इनका स्वर्गवास हुआ। जीवन मद खान का बन्दो रखने को बात उहरी। मरा- उमापति दत्त-एक सस्कृत वैयाकरण। यह जुमर ठोंने रसूलाबाद लूट एक अच्छा पुस्तकालय बिगाड़ नन्दीक समसामयिक थे। गोयौचन्द्र और सुषेणने डाला था। फिर उमा-बाई बड़ा देको बढ़ौं। किन्तु इनका वचन उद्दत किया है। शासक शेरखान् बाबी लड़ने को तैयार हुये। उस उमापति दलपति-केशवपण्डितके आश्रयदाता। उक्त पर इन्होंने उन्हें लिखा-हमने अभी महाराज सन्धि पण्डितने प्रहादचम्प लिखा था और उसे दलपतिक की है, हमें वेरोक टोक निकलने का अधिकार है। नामपर उत्सर्ग किया। बाजीरावने स्वर्गीय नवम्बकरावके नाबालिग लड़के उमापतिधर उपाध्याय-संस्कत और मैथिल भाषामें यशोवन्तगवको सेनापतिका उपाधि प्रदान किया था। 'पारिजातहरण' नामक नाटक ग्रन्थ के रचयिता। यह उस समय उमाबाई उनको रक्षक बनौं। पोलाजी दरभङ्गा-जिलेवाले और परगनके कोइलख ग्राममें गायकबाड़ गुजरातके शासक हुये थे। उन्हें सेना- रहते थे। हिन्ट्रपति हरिदेव वा हरिहरदेवको राज पतिको पारसे मालवे तथा गुजरातमें पेशवाक स्वत्वोंको सभामें इनका बड़ा सम्मान था। उमापतिधरने लिखा रक्षा रखना और अपने शासनाधीन राज्यका आधा है-हिन्द्रपतिकी तलवार यवनों के जङ्गलको काट कर भयानक अग्निकी तरह जला डालती है। साजन आव जिवनकिय काजे । पडु नोहि दिन करू अपयश जग भरु सधन पारिय लाजे । (ब) कोकिल अलिकुल कलरव आकुल करहु दहहु दुहु काने । । ॐ इनकी कविताका उदाहरण नीचे देखिये- शिशिर सुरभि जत देह दहहु तताहनहु मदन पंचयाने । "सहस्र पूर्णशशि रचहु गगन वसि निशि वासर देवो नन्दा। सुकवि उमापति हदि होय परसन मान होवत समधाने । भरि वरिसह विस बहडु दिवा मलय समौरण मन्दा । सकल नृपतिपति हिन्दूपति जिठ महेसरि देव विरमाने । २१॥"