३०६ उमौचन्द कर्मचारी उनसे लडनेको तैयार हैं। इसलिये नवा. जाफरने एक सन्धिपत्र बनाया। उसमें लिखा था- बके पटने जाने पर अंगरेज सरशिदाबाद ले सकेंगे। अंगरेज एक करोड़, हिन्द्र ३. लाख, अग्मनि हम भी अंगरेजोंको यथोचित साहाय्य देनेपर प्रस्तुत लाख और अमीरचन्द ३० लाख रुपया पायेंगे। किन्तु हैं। किन्तु मुरशिदाबाद जीतने पर उन्हें, हमीको अंगरेज हाकिमोंने इस पत्र में काट छांट लगा अपने नवाब बनाना पडेगा। अमीरचन्दने सेनापतिको लिये ३० लाख रुपया बढा दिया। हिन्दुवों को तोसकी यह बात कन्कत्तेकै अंगरेज हाकिमोसे कही। जगह २० लाख अरमनियों को दशको जगह ७ लाख, क्लाइव इस प्रस्तावपर सम्मत हुये। उधर वाटस साह- सिपाहियों को साढे २२ लाख और दूसरे नौकरोंको बने मीरजापरको भी मिला लिया। अन्तको स्थिर भी इसी हिसाबसे रुपया मिलना ठहरा। केवल हुआ-मुरशिदाबाद जीतने पर मीरजाफर हो अमौरचन्दके नाम ही शून्य पड़ा। लाइब प्रभृति नवाब नंगे! फिर मौरजाफरने वाटम साहबको सबने परामर्श किया-'अमोरचन्द बड़े धते हैं। कहला भेजा-'इस साजिश की बात अमोरचन्दके उनके साथ भी वैसी ही चालाकी न करनसे काम कान में न पड़े। क्योंकि सुननेसे वह विचाट खड़ा न बनेगा! वह हमे डरा रुपया लेना चाहते हैं। कर सकते हैं। वाटस साहब मीरजाफरको बात इस दोषके लिये उन्हें होशियारीसे धोका देना चाहिये। मानते भीमीरचन्दसे उक्त विषय बताने पर वाध्य फिर दो पत्र लिखे गये-एक सफेद और एक हुये। इन्होंने सोचा-'हमारा अदृष्ट अच्छा नहीं। लाल। सफेदमें मीरजाफरको सन्धिका हाल था। मीरजाफर के नवाब बननेसे वाटस साहबका ही भाग्य उसपर अडमिरल वाटसन और कमिटीके सभ्यगणने अगेगा। अमीरचन्दने अंगरेजोंसे कहला भेजा, हस्ताक्षर किये। लाल कागज़ अमौरचन्दको देनेके 'नवाके खजाने में जितना रुपया हो, उसमें सैकड़े लिये रहा। किन्तु इसपर वाटसन साहब और पौछ पांच रुपया और जितना जबाहरात हो, उसका कमिटी के सभ्य गणने अपनी सही न दी थी। केवल चतुर्थाश हमें देना पड़ेगा। यदि आप यह बात न लाइबने ही हस्ताक्षर किये। फिर क्लाइबने मानेंगे, तो हम साजिशको नवाबके सामने खोल देंगे।' सोचा-शायद अमीरचन्द बाटसन साहब की सही न • अमौरचन्दको अभिसन्धि व्यक्त होते ही वाटस | देख यह पत्र लेनेसे हिचकेंगे। इससे उन्होंने साहव वगरह अतिशय चिन्तामें पड़। उन्होंने लुसिङ्गटन नामक किसो कर्मचारीसे वाटसन साहबके कलकत्तेकी कौन्सिलको लिख भेजा-'अमीरचन्द बड़े हस्ताक्षर बनवा दिये। हतभाग्य अमीरचन्दने वाटसन खराब आदमी हैं। उनकी दो चालाकियां मालम साहब और क्लाइबको सही देख लाल पत्र ले लिया । हुई हैं। एकबार उन्होंने रायदुर्लभके साहाय्यसे नवा उधर घोरतर साज़िश होने लगो। नवाबको भी बके खजाने का कितना हो रुपया मोरजाफरको सौंप- उसका आभास मिल गया। अंगरेजोंने नवाबको नेकी चेष्टा की थी। फिर नवाबने जब अंगरेज सेना- सन्तुष्ट रखनेके लिये स्काफटन नामक एक व्यक्तिको ध्यक्षों को पारितोषिक देने के लिये विस्तर अर्थ दिया. नियुक्त किया। उनसे नवाबको मालूम हुआ था- तब उन्होंने रणजित् रायसे मिल उसे आत्मसात् कर अंगरेज चिरकाल हमारे मित्र बने रहेंगे और कोई लिया। दोनोंके हेलमेलसे यह काम होते भी अमीर अनिष्ट न करेंगे। चन्दने रणजितायको कौड़ी न देखायो । उन्हें . ऐसे सङ्कटके समय अमौरचन्द भी घबरा गये। पाशा हुयो-कहीं अंगरेजोंको खबर न लग जाये। इन्होंने अच्छोतरह समझ लिया था-'अंगरेजोको इसौम रणजित रायका संसव तोड़नेके लिये उन्होंने हमारा विश्वास नहीं, वह अनायास ही धोका दे गवावी आदेश भी निकलवाया था।' देंगे।' अमीरचन्दने कौशलके साथ नवाबको सुझाया- फिर अपरापर कार्योंसे वाटस साहब और भौर-1 फान्सोसी और अंगरेज मिलकर शीघ्र ही प्रापसे
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३७७
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