उमौचन्द '३७५ न सकेगा और बोझ ढोनेके लिये कोई घोड़ा या वैल : नवाबने ससैन्य आते समय अग्रहीपमें सुना-अंगरेज दे न सकेगा। चन्दननगरपर चढ़ने का उद्योग कर रहे हैं। उन्होंने लाइबने यह हाल देख रणजित् रायसे परामर्श फ्रान्सोसिघोंके साहायार्थ रूपया और एक दल सैन्य लिया । उन्होंने नवाबको पत्र लिखनेके लिये भेजा। फिर अमीरचन्दसे नवाबने पुलवाया- कहा। सुहृदभावसे पत्रका उत्तर देते भी उनको अंगरेज सन्धिके नियमादि मानने को प्रस्तुत हैं या फौज कलकत्ते पर झपटनेसे न रुकी। फिर री नहीं। अमोरचन्दने उत्तर दिया-अंगरेज किसी फरवरीको सन्ध्याकाल नवाब अंगरेजोंके प्रतिनिधिसे प्रकार सन्धि न तोड़ेंगे। बात चीत करनेपर स्वीकृत हुये। किन्तु उक्त समय शिराजने इनकी बातपर पाखस्त हो कहला पर प्रादेशका कोई पत्र पहुंचा ज था। दूसरे दिन भेजा हमने पहले जो फोज भेजो वह फान्सोसियों के सवेरे देखा गया-नवाब नगरके उत्तरांशमें लोगोंका साहाय्यार्थ नहीं। अंगरेजोंने भी उत्तर दिया- द्रव्यादि लूट रहे हैं। हम नवाबको सम्मति भिन्न फ्रान्सीसियोंसे न लडेंगे । सराठा-खाईको उत्तर सीमापर अमीरचन्दके किन्तु लाइबने सोचा-चन्दननगर पर आक्रमण बागमें नवाबकी फौजने आश्रय लिया था। मिष्टर मारना एकान्त आवश्यक है। इसलिये नवाबका वाटसन और क्राफटन अंगरेजांकी ओरसे नवाबके साथ निषेध रहते भी उन्होंने फान्सीसियोंके विरुद्ध फौज मिलने गये। पहले उन्होंने राय-दुर्लभसे मुलाकात बढ़ायो। उस समय अमोरचन्दने अंगरेजोंका की। उन्होंने अंगरेजोंसे अस्त्र रख देने को कहा। विशेष स्वार्थ साधन किया था। इन्होंने नवाबके हिन्दू किन्तु अंगरेजोंके राजी न होने पर वह भरे दरबारमें सेनापतियोंसे कह दिया था-आप अंगरेजोंसे न नवाबके पास ले गये। अल्प-विस्तर कथा वार्ताके लडियेगा। २४ वौं मार्चको अंगरेजोने चन्दननगर पर बाद अंगरेज लौटने लगे कि अमीरचन्दने इङ्गितसे अाक्रमण किया। फिर नवाबने उसो समय सुना- बताया-तुम्हारे पकड़ लेने का परामर्श आया है। हमें राज्यच्य त करने के लिये पठानों को फौज बातो इससे उन्होंने नवाबकी अनुमति न ली और चुपके है। उनके भयको परिसोमा न रही। उन्होंने चुपके छावनीकी राह पकड़ी। लाइव और वाटसनको समाचार दिया-चिर दिन परिशेष प्रमोरचन्द और रणजितायका मध्य आपसे मैवी रखनेको हमारी एकान्त इच्छा है। स्थतासेटवौं फरवरीको एक सन्धि हुई। नवाबने अल्प दिनके मध्य हो अंगरेजोंने सुना-प्रधान सन्तोषके चिह्नकी तरह आडमिरल वाटसन और कर- सेनापति मौरजाफर नवाबके आचरणसे बहुत विरक्त नल लाइबको वस्त्रादिका उपहार पहुंचाया। उसी हो गये हैं। लाइबने वाटसन साहबको कहला भेजा, दिन अमीरचन्दने अंगरेजांका सही किया हुआ पत्र कि उस सुयोगमें मौरजाफरके साथ उन्हें बन्धुत्व नवाबका सौंपा, किन्तु क्लाइवने इनसे कहा था, बढाना आवश्यक है। नवाबसे अनुरोध कर हमें चन्दननगर पर चढ़नेको इधर कितने ही हिन्दू सभासद नवाबको राजा- अनुमति दिला दौजिये। फिर नवाबका कोई निषेध च्युत करने के लिये चुपके चुपके साजिश चलाते थे। पत्र न मिलनेसे १६ वौं फरवरीको क्लाइव फ्रान्सी अमौरचन्द भी उन्हीं में रहे और वाटसन साहवको सियोंके विपक्षमें चले गये। किन्तु मानसोसियोंने ठीक कच्चा-पक्का समाचार देते गये। उसी समय पर तारतम्य लगा नवाबका निषेधपत्र २३ वौं अपरेलको इन्होंने नवाबके लत्ती नामक पहुंचाया। एक सेनापतिको अपने दलमें मिलती देखा था। उसने अमौरअन्दके शेष व्यवहारसे सन्तुष्ट हो अंगरे- | बतलाया-'नवाबने बङ्गालसे अंगरेजों को निकालनेके जौने.उन्हें वाटसन साहबको सहकारितामें लगाया।' लिये कल्पना की है। किन्तु अनेक प्रधान-प्रधान
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