पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३८

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इन्टूर इसका उपद्रव बढ़ गया है। पहले यह इन्दर विला- और सिंहलमें देख पड़ता है। भारतवर्ष हो इसकी यतमें न रहा। आजकल जहाज द्वारा वहां भी जा संख्या अधिक रहती है। लम्बे-चौड़े मैदान या रेतीली पहुंचा है। इस इन्दूर के प्रवेशसे विलायतका काला जगह पर यह प्रायः गते खोदा करता है। गर्त चहा बिलकुल ध्वस जैसा हो गया है। यह सब कुछ जमीनसे दो-तीन फोट ही नीचे पड़ता और मध्यमें खाता है। कबूतर, छोटो-छोटी मुर्गी और चिड़ियेके कोई एक फुट प्रशस्त शुष्क तृणयुक्त वासस्थान अण्डे खाना इसे बहुत अच्छा लगता है। रहता है। यह चहा शस्य, वीज, तृण और वृक्षमूल ४ नेपाली चहा-केवल नेपालमें ही होता है। खाता है। इस जातिको स्त्री एक काल आठसे बीस ऊपरी भाग पिङ्गलवर्ण रहता और बीच-बीच लाल | पर्यन्त बच्चे देती है। रङ्ग झलकता है। लोम बहुत कोमल होता है। महर्षि सुश्रुतने अट्ठारह प्रकारके इन्दुरका उल्लेख देह और लाङ्गलका आयतन प्रायः छः इञ्च बैठता है। किया है,- ५ पेड़का रहा-ऊपरसे देखने में पिङ्गलवर्ण रहता, “लालन: पुवक: कृष्णो हसिरचिकिरस्तथा। निम्नभाग सादा होता और बीच-बीच काला धब्बा कुकुन्दरीलसचे व कषायदशनोऽपि च ॥ पड़ता है। भारतवर्षमें अनेक स्थानपर यह मिलता कुलिङ्गशाजितश्चेव चपल: कपिलस्तथा । कोकिलोऽरुणसङ्गच महाकास्तथेन्टुरः ॥ है। देहका आयतन प्रायः माढ़े सात इञ्च बैठता और श्वे तेन महता साधकपिलेनाखुना तथा। लाङ्गुल कुछ उससे भी अधिक निकालता है। यह मूषिकच कपोताभस्तथैवाष्टादश स्म ताः ॥" अधिकांश पड़पर रहता और किसी-किसी स्थानपर (सुश्रुत कल्पस्थान ६०) कड़ी बरगेमें गड्डा खोद घुस जाता है। अर्थात् इन्दूर अष्टादश प्रकारका होता है-१ लालन, ६ सादे पेटका चहा (Mus niviventer)-इसका २ पुत्रक, ३ कृष्ण, ४ हंसिर, ५ चिक्किर, ६ छुछुन्दर, देह प्रायः सात इञ्च पर्यन्त और लाङ्गल उससे भी | ७ अलस, ८ कषायदशन, ८ कुलिङ्ग, १० अजित, अधिक बड़ा होता है। नेपाल और पूर्ववङ्गके घर- ११ चपल, १२ कपिल, १३ कोकिल, १४ अरुणसङ्ग, घर यह देखने में आता है। १५ महाकृष्ण, १६ खेत, १७ महाकपिल और ___ ७ पहाड़ी चूहा ( Mus homourus)-इसका | १८ कपोत। सुश्रुतने उपरोक्त अट्ठारहो प्रकार इन्दूर- ऊपरी भाग पिङ्गलवर्ण होता, बीच-बीच काला रङ्ग | के विषकी बात यों कही है,- झलकता और निम्न अंश सादा रहता है। देह और १ लालनके विषसे लालाथाव, हिक्का और वमनका लाङ्गलका आयतन साढ़े तीन इञ्च बैठता है। वेग बढ़ता है। इसमें नटशाकका कल्क मधुके साथ इस जातिको स्त्रोके पाठ स्तने निकलते हैं। यह | सेवन करना चाहिये । पञ्जाब और पूर्ववङ्ग के मध्य समुदय हिमालय प्रदेशमें २ पुत्रकके विषसे शरीर अवसन्न एवं पाण्डुवर्ण रहता है। पड़ जाता है। पीछे चुहिये-जैसी ग्रन्थि भी निकलती ८ चिक्किर इन्टुर-वङ्गदेश और युक्त प्रदेशके स्थान है। इसमें शिरीष और इङ्गदीको पत्थरपर पीसकर स्थानपर रहता है। इसके गात्रसे छछंदरकी तरह मधुयोगसे खिलाते हैं। दुर्गन्ध उठता है। छछू'दर देखो। ३ कृष्ण इन्दुरके विषसे सचराचर-विशेषत: मेधा- ८ खेतका चहा (Gerbillus Indicus)-इसका | च्छन्न दिन रक्तवमन होता है। इसमें शिरीषफल ऊपरी भाग देखने में मृगशावकके गात्र-जैसा होता. और कुष्ठरस किंशुक भस्मयोगसे पिलाना चाहिये। दोनो पाखं काला रहता और निम्न अंश सादा लगता ४ हंसिके विषसे अन्नमें विराग, जुम्भण, शरीर- है। मस्तक तथा देह एकत्र सात और लाङ्गल पाठ लोमाञ्च और दन्तहर्षण होता है। रोगीको पहले इच्च बैठता है। यह चहा भारतवर्ष, अफगानस्थान | वमन कराके पारग्वधादि पिलाते हैं। Vol. III. 10