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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३७

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इन्दुवदना-इन्दूर तथा पद्मरसको भावनासे २ रत्तो प्रमाण वटिका । नानाजातीय होता है। देशभेदसे भिन्न-भिन्न प्रकार- बनाये। पामलकोके रस या क्वाथसे प्रत्यह प्रात:- का इन्दूर देख पड़ता है। भारतवर्षमें प्रायः पचास काल एक वटिका खाना चाहिये। इस औषधक | प्रकारका इन्दूर होता है। उसमें जिस जिस इन्दूरको सेवनले कर्णनासादिका रोगसमूह, नाना प्रकार वातज संख्या अधिक आती,उसकी बात नोचे लिखी जाती है। व्याधि और बोस तरहका प्रमेह दूर हो जाता है। १ जङ्गली चहे या घुस ( Mus bandicota )के इन्टुवदना (सं० स्त्री०) छन्दः विशेष, चौदह अक्षर | गात्रका ऊपरी भाग कुछ-कुछ पिङ्गलवर्ण लगता, और चार चरणका एक छन्द । “इन्दुवदना भजस: सगुरु बीच-बीच दो-एक काला-काला बाल भी रहता युग्म:" (हत्तरबाकर) जिस छन्दःमें एक भगण, एक और नोचेका अंश धूसर देख पड़ता है। लाङ्गल जगण, एक संगण, एक नगण और शेषमें दो गुरु व्यतीत देहका पन्द्रह और लाङ्गलका प्रायतन अक्षर रहता, उसे सब कोई इन्दुवदना कहता है। तरह इञ्च बैठता है। इस जातिको स्त्रोके बारह स्तन इन्दुवल्लिका, इन्दुवल्ली देखो। होते हैं। सिंहल, भारतवर्ष, मलय और अष्ट्रेलियामें इन्टुवल्ली (स० स्त्री०) इन्दोली, ६-तत्। १ सोम- यह बहुत देख पड़ता है। जङ्गली चहा दीवार में लता। २ गुडची, गुचे। ३ सोमराजी, बाकची। गड्डा बना घरका अनिष्ट बहुत करता और उद्यानको ४ यवानी, अजवायन। भी विस्तर क्षति पहुंचाता है। इसका प्रधान इन्दुवार (सं० पु०), इन्दोः वारः, ६-तत् । नीलकण्ठ खाद्य अन्न और शाक है। ताजकोक्त वर्षलग्नसे तीसरे, छठे, नवें और बारहवेंको २ काला चहा ( Mus rattus)-इसकी ऊपरी छोड़ अन्यस्थान, समस्त ग्रहगणका अवस्थानरूप | धूसर और निचलौ दिक् पांशुवर्ण होती है। देहका योग-विशेष। आयतन प्रायः सात इञ्च बैठता और लाङ्गल तदपेक्षा इन्दुव्रत (सं० लो० ) इन्टुलोकार्थं व्रतम्, शाक-तत्।। भी बड़ा निकलता है। फिरङ्गियोंके कथनानुसार चान्द्रायण, चन्द्रलोक प्राप्त होने के लिये किया जाने काला चूहा युरोपसे जहाज द्वारा इस देशमें पाया वाला व्रत। इसमें एक पक्ष वो मास पर्यन्त प्रति | है। क्योंकि जहां जहां जहाज आकर ठहरता, वहां- दिन कुछ-कुछ भोजन घटाते चले जाते हैं। इन्दव्रत वहां यह बहुत देख पड़ता है। किन्तु हमें काला- करनेसे चन्द्रलोक मिलता और सर्वपाप मिटता है। चहा एतद्देशीय ही मालम देता है। महर्षि मन्टुशकला (सं० स्त्री०) सोमराजी, बाकची। सुश्रुतने सम्भवत: काले चहे को हो कृष्ण वा महाकृष्ण इन्दुशफरी (सं० स्त्री०) अश्मन्तक वृक्ष । मूषिक कहा है। इन्दुशेखर (सं० पु०) इन्दुः शेखर यस्य, बहुव्री०। ३ दंशक इन्दूर ( Mus decumanus)-ऊपरसे महादेव, इन्टको मस्तकपर धारण करनेवाले शङ्कर। पांशुयुक्त कपिलवर्ण और बीच-बीच पीला होता है। इन्दुशेखररस (सं० क्लो० ) औषध विशेष, एक दवा। छोटे-छोटे कानोंमें पोलो धारियां पड़ी रहती हैं। शिलाजतु, अभ्र, रससिन्दूर, प्रवाल, लौह, स्वर्णमाक्षिक एवं हरितालको समभागमें एकत्र मिला भृङ्गराज, अर्जुनत्वक, निसिन्धु, वासक, स्थल पद्म, पद्म तथा कुर- थोके रसको भावना देते हुये मटर-जैसी वटिका बना ले। इसके सेवनसे गर्भिणीका ज्वर, श्वास, कास, शिरदुःख, रक्तातिसार, ग्रहणोरोग, वमन, क्षुधामान्य, पालस्य और दौर्बल्य दूर होता है। निम्नभाग पांशुवर्ण है। यह चूहा भारतवर्ष में प्रायः इन्दूर (सं० पु०) मूषिक, चूहा । इन्दूर या चूहा ' सर्वत्र ही रहता है। पारस्य वा ईरानमें भी शायद RORN