पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३९७

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उल्लाल-उल्लेख किन्तु अब एक ही लगता है। किसी-किसीके कथना- ३ चित्रित, रंगा हुआ। ४ उत्क्षिप्त, उठाया हुया। नुसार उल्लायमें तीन अङ्क और इक्कीस शिल्पकाङ्ग पड़ते ५ पूर्व कहा हुआ, जो पहले बताया जा चुका हो। हैं। उल्लास्यके मध्य 'देवीमहादेव' नामक संस्क त उल्लिङ्गित (स० वि०) परिचित, पहचाना हुआ, ग्रन्थ प्रसिद्ध है। जो समझा जा चुका हो। उल्लाल (सं० पु०) छन्दोविशेष। इसके प्रथम एवं उल्ली (सं० स्त्री०) पलाण्ड, प्याज। तृतीयमें पन्द्रह और द्वितीय तथा चतु पादमें तेरह उल्लु (सं० त्रि०) उत्-लु-क्विए। उत्पाटनकारी, मात्रा लगती हैं। उखाड़ डालनेवाला। उल्लाला (हिं० पु०) छन्दोविशेष। इसके हरएक उल्लुञ्चन (सं० लो०) उत्-लुचि-ल्य ट । १ केशोत्- चरणमें केवल तेरह मात्रा लगती हैं। पाटन, बालोको नोच खप्तोट। २ उन्म लन, उखाड़। उल्लास (सं० पु०) उत्-लस्-घञ्। १ अन्य विशेष- “पादकैश्विक करोल्ल चने च पणान् दश।" ( याज्ञवल्क्य २.२१७): का परिच्छेद, किसी किताबका बाब। २ आल्हाद, ३ केशकर्तन, बालको कटाई। खुशौ। ३ प्रकाश, रौशनी। उल्लुण्ठन (सं० लो०) उत्-लुठि-ल्युट । निज अभि-. "सौहित्यवचनोल्लाससहासप्रतिभादिक्कत् ।" ( साहित्यदर्पण) प्राय छिपा अन्य प्रकारसे मनोभावका प्रकाश, अपना ४ उद्गमन, उठान। मतलब छिपा दूसरीतरहसे दिलको हालतका इजहार। "नभोविलसिभिः सेनारक्षौराशिमिरुद्धः । उल्लुण्ठा (सं० स्त्री०) व्याजस्तुति, बोली-ठोली। . सपचभूभृदुल्लासशक्षां कुर्टन् शतक्रतोः ॥” (कथासरित् १४।१८) उल्लू (स• त्रि.) १ कतंन करनेवाला, जो काट ५ उज्ज्वलता, सफेदी। ६ वृद्धि, बढ़ती। ७ काव्या- डालता हो। (हिं० पु०) २ उलक, चुग़द। यह लङ्कार विशेष। इसमें उपमा वा उपरोधसे किसी पक्षी दिनमें अंधा रहता है। वर्ण धूसर है। विषयको प्रधान बनाते हैं। शिर वर्तुल तथा चक्षु प्रदीप्त रहता है। उल्लू कई तर- उल्लासक ( स० वि०) आल्हादकारी, जो मजा हका होता है। किसीके शिर पर शिखा उठी रहती करता हो। है। फिर किसौके पक्ष पदको अङ्गलितक पहुंचते उन्लासन (स क्लो० ) १ नधाने या कुदानका काम। हैं। उच्चता ५ इञ्चसे २ फोट पर्यन्त है। चञ्चु कुटिल रहती है। किसौके पक्ष कर्णके समीप जपर चढ़ २ दीप्ति, चमक। उल्लासित (स. त्रि०) पाल्दादित, खुश, जो फूला जाते हैं। पक्ष मृदु, किन्तु पद कठोर होते हैं। उल्ल न समाया हो। दिनको गुप्त रहता और रात्रिको देख पड़ता है। यह उम्लासी (स. त्रि.) उत्-लस्-णि नि। १ उल्लास- मांसाशी पक्षी है। कोटपतङ्गादिसे अपना जीवन निर्वाह करता है। शब्द बड़ा भयानक है। उल्ल प्रायः युक्त, खुशी मनानेवाला। २ प्रभाविशिष्ट, चमकदार। ३ आल्हादित, खुश। निर्जन स्थान में निवास करता है। भारतमें इसका उल्लिखत् (सं० वि०) १ उत्लोण करनेवाला, जो शब्द तथा ग्राममें वास अशुभ माना गया है। मांससे खौंच या घसीट रहा हो। २ रेखा खींचनेवाला, जो उच्चाटनादि प्रयोग किया करते हैं। पृथिवी पर किसी लकौर निकाल रहा हो। ३ चित्रकारी करनेवाला, जातिके लोग इसे भच्य नहीं बताते। इसका मांस जो मुसब्बरी कर रहा हो। ४ वहन करनेवाला, जो| पित्तल, भ्रान्तिकारक और वातप्रकोपन होता है। उठा रहा हो। ३ मूख, बेसमझ। उल्लिखित (सं० वि०) उत्-लिख-त। १ उत्कीर्ण, उल्लेख (स० पु.) उत्-लिख-घञ् । १ कथन, कहाई। २खनन, खोदाई। ३ अलङ्कारविशेष । खुदा हुआ। २ सनुक्त, बारीक किया हुआ। "कचिद भेदादग्टहीतयां विषयायां वथा क्वचित् । "बट्रे व यन्नौलिखिती विभावि।” (रषु १६॥३२) एकखानेकपोझेखो यः स उल्लेख उच्यते ।" (साहित्वदच १०म परि).