उल्लेखन-उशौक ३६७ अनुभावक और विषयके भेदानुसार एक वस्तुका "उबटो मम्मटव कैयटयेति ते वयः । बहुप्रकार वणन आनेसे उल्लेखालङ्कार होता है। कैयटो भाष्यटीकाकटुक्टो वैदभाष्यकृत् ॥” (भक्तिमा० ३१८ पृ०) ४ वर्णन, बयान्। सुनने में आया है कि ऋग्वेदीय शौनकप्रातिशाख्य- उल्लेखन (सं० लो०)१ वमन, क ।२खनन, खोदाई। भाष्य लिखने बाद उवटने ऋगभाष्य बनाया था। "सम्मान नोपाञ्जनेन स्कैनोल्ले खनेन च । उवना (हिं.क्रि. ) उदित होना, निकल पाना। गवाञ्च परिवासन भूमिः गयति पञ्चभिः ॥” ( मनु ५।१२४) उवनि (हिं स्त्री०) उदय, उठान, निकास । ३ उच्चारण, तलक फुज। उशङ्गव (सं० पु०) नृपतिविशेष, एक राजा। उशत् (सं० वि०) वश-शट। आकाङ्घाकारी, "भासपचतिथीनाञ्च निमित्तानाञ्च सर्वशः। खाहिशमन्द, चाहनेवाला ! उल्लेखनमकुर्वाणो न तस्य फलभाग् भवेत् ॥” (तिथ्यादितत्त्व) उशती (सं० स्त्री०) वश-शट-डीप सम्प्रसारणम् । कीर्तन, गवाई। ५ निर्देश, देखाई। चित्र. १ काहिणी, चाहनेवाली । २ अमङ्गलवाक्य, कारी, मुसब्बरी। बुरी बात। उल्लेखनीय, (स.वि.) उल्लेख्य देखो। उशधक (वै. त्रि) अभिलाष रखने और दहन उल्लेख्य (स. त्रि.) उत्-लिख-यत। उल्लेख योग्य, करने वाला। (सायण ) लिखने लायक। उशना (वै० अव्य०) अभिलाषसे, खुशीमें, जल्द । "तदेतत् सिद्धये मन्त्र' द्वारोब्लेख ददामि ते।” (कथासरित्) । उशनाः (सं० पु०) वश कान्तौ कनसि सह्यादि- उल्लोच (स० पु०) ऊर्ध्व लोच्यते, पथवा ऊर्ध्व त्वात् सम्प्रसारणम्। बशे: कनसिः। उप ४।१२७। दैत्यगुरु लोचति, उत्-लोच-धज। चन्द्रातप, तम्बू, चंदोवा।। शुक्राचार्य। उल्लोप्य (सं० लो०) उत्-लुप-यत्। गौतविशेष, एक "खातायोशनसः पुत्राश्चत्वारोऽसुरयाज काः ।" (भारत, आदि) गाना। शक देखो। उल्लोल (स'• पु०) उल्लोडीति, उत्-लोड-णिच-अच् । उशवा ( पु०) वृक्ष विशेष, एक पेड़। इसका वृहत्तरङ्ग, बड़ी लहर।। मूल रक्तशोधक है। खन् बिगड़नेसे प्रायः लोग उत्व, उल्व देखो। . उशवा पीते हैं। . उल्वण, उल्वण देखो। उशाना (वै स्त्री०) वश-चानश् । ताच्छोलावयोवचन- उवट-प्रसिद्ध वेदभाष्यकार। इन्होंने शुक्लयजुर्वेदको शक्तिषु चानश् । पा श२।१२९ । पर्वतजात यज्ञीय ओषधिविशेष, काखशाखाका भाष्य और ऋगवेदीय 'यौनकप्राति होममें लगनेवाली एक पहाड़ी बूटी। “तदेयोशाना नामी- शाख्यभाष्य' नामक ग्रन्थ बनाया है। यजुर्वेदमन्त्रभाष्य, षधिजायते।” (शतपथब्रा० ३।४।१।३) पढ़नेसे समझते हैं कि उवट वचटके पुत्र और आनन्द ! उशिक (स.नि.) उश्यते, वश-नि:-कित । वशः पुरके अधिवासी थे। यथा- कत् । उण २।७। १ कमनीय, चाहा जाने काबिल, "आनन्दपुरवास्तव्यवचटाख्यस्थ सूनुना।। उम्दा। २ मेधावी, होशियार । (निघण्ट, २०१५) (पु०) मन्त्रभाष्यमिद कृत्स्न पदवाक्य : सुनिश्चितः।” ३ अग्नि, आग। ४ वृत, घो। (स्त्री०) ५ कक्षि- किसीके मतानुसार ई० एकादश शताब्दीमें भोज- वान्को माता। राजके समय यह अवन्तिनगरमें विद्यमान रहे। उशित (सत्रि.) अभिलषित, चाहा हुआ। भविष्यभक्तिमाहात्मा नामक संस्कृत ग्रन्थमें लिखते हैं उशी ( स० स्त्री०) वश-ई सम्प्रसारणम्। अभिलाष, कि उवट काश्मीर देशमें रहते और मम्मट तथा कैयट- खाहिश । के समसामयिक थे। . : उशौक, उशिक देखो। Vol III. 100
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