पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४००

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उशीरासव-उषसुत ३६४ पौनेसे अरुचि, अतिशय वेदनायुक्त विवह धम्म, ज्वरा- उषणा (स. स्त्री०) उवण-टाप् । १ पिप्पली, पीपर। तिसार और रक्तातिसार प्रभृति रोग प्रशमित होते हैं। २ शुण्ठी, सोंठ। ३ चविका। ' उशीरासव (सं० क्लो०) आसव विशेष, एक दवा। उषणादिचूर्ण (सं० लो०) चूर्णादिविशेष, एक बुकनी। उशीर, वाला, पद्ममूल, गाम्भारोत्वक, नीलोत्पल, मरिच, पिप्पलीमूल, मूस्तक, अतिविषा, वासकत्वक, प्रियङ्ग, पदुमकाष्ठ, लोध्र, कुड़, मनिष्ठा, दुरालभा, गोक्षुर, बृहतो, कण्टकारी, यष्टिमधु, मूर्वामूल, अर्के, चिरायता, उदुम्बरत्वक, राठी, क्षेत्र-पापड़ा, ब्राह्मणयष्टिका, मोचा, वंशलोचन और यवचार पटोलपत्र, काच्चनत्वक,अमरूदकी छाल, तथा मोचरस बराबर एक साथ कूट-पीस कपड़ छान करनेसे यह पाठ-आठ तोले, द्राक्षा १६० तोले, धायके फूल १२८ चूर्ण बनता है। उषणादिचर्ण एक मासा जलके साथ तोले, चौनी ढाई सेर, मधु सवा छह सेर और जल खानेसे लोहितज्वर, विस्फोटक, रोमान्तिका, जीर्णज्वर, पाठ सेर किसी नतन पात्र में डाल मुंह बांध कर एक और मसूरिका रोग अच्छा हो जाता है। महीने रख छोडे। फिर इस आसवको उपयक्त मात्रामें उषत् (सं० पु.) यदुवंशीय एक राजा। सेवन करनेसे रक्तपित्त प्रमह प्रभृति अनेक रोग विनष्ट पिताका नाम सुयन्न और पुत्रका थिनेयु था। होते हैं। इस आसवको रखनेका पात्र प्रथमतः उषतौ (स० स्त्री०) उष-श-डोष आगमविधेरनित्य- जटामांसी और मरिच चूर्ण द्वारा धूपित कर लेना त्वात् नुमभावः। अमङ्गलवाक्य, नामवार ज़बान्, चाहिये। जिस बातसे दूसरेका दिल दुखे । “ययास्य वाचा पर उदिजत उशीरिक (सपु०) उशीर-छन् । किसरादिभ्यः छन्। न तां वदुषतौं पापलोक्याम् ।" (भारत, भादि ११८७८) पा ४४५३। १ उशौरका व्यवसायी, खसका रोजगार उषद्गु (सं० पु.) यदुवंशीय एक राजा। यह करनेवाला। (त्रि.) २ उशीर सम्बन्धीय, खसका स्वाहि राजाके पुत्र थे। बना हुआ। उषट्रथ (सं० पु०) पुरुवंशीय एक राजा। यह उशौरी (सं० स्त्री०) उथौर स्वल्पाथे डोष । छोटे तितिक्षुके पुत्र और उशौनरके भ्राता थे। (हरिवंश ३१४०) केशे। इसका संस्कृत पर्याय मिषि, गुण्डा, अखाल, उषप (स० पु०) ओषतीति, उष दाहे कपन् । नौरज और शर है। यह मधुर एवं शीतल और पित्त, उषिकुटिदलिकचिखजिभ्यः कपम् । उण श१४२। १ पग्नि. आम । दाह तथा क्षयरोगनाशक है। (राजनिघण्ट) २ सूर्य। ३ चितावृक्ष, चीतका पेड़। उशेन्य (सं० वि०) वश-केन्य । कन्याथै तवैकेन केन्यकेन्यत्वनः। उषवुध् ( स० ० ) प्रत्यूषमें उठनेवाला, जो पा ।।१४। कमनीय, खूब सूरत, चाहाजाने काविल । तड़के जागता हो। “भाये माबोरशे न्यो जनिष्ठा" (ऋक दाशर) उषध (सं० पु०) उषधि बुध्यते, उषस्-बुध-क। उष् (धात) सक. भ्वा० पर० सेट। इसका अर्थ | १ अग्नि, आम। “सूर्यस्य रोचनादिवान् देवा सषर्बुधः। (ऋक दहन और वध करना है। १।१४९) २ रक्तचिता, लालचीत । ३ बालक, बच्चा। 'उष (सं० पु० ) उष-क । १ क्षारमृत्तिका, खारी उषस् (सं० लो०) भोषति हिनस्तात्वन्धकारमिति, मट्टी। २ प्रभात, सवेरा। ३ रात्रिका शेष समय उष-असिप्रत्ययः स च कित्। उष: कित्। उच, १२३३॥ रातका आखिरी वक्त। ४ कामी, शहबतपरस्त । प्रत्यषकाल, सवेरा, तड़का। “घासीदासननिर्वाय: प्रदोपार्चि- ५ गुग्ग ल, गूगुर। (क्की.) पांएज लवय। | रिवोषसि ।' (रघ १२॥१) उषङ्ग (सं० पु०) संहारकर्ता महेश्वर। उषसी (सस्त्री.) उष दिवसं स्यति विनाशयति, उप- 'उषण (स..की.) उष बाहुलकात् क्युन् वा।। सो-क-डीप। सन्ध्याकाल, शाम। १ मरिच, मिर्च। २ शण्ठी, सोंठ। २ चविक । उपसत (सं० पु.) पांशज लवण, लोनी मट्टीका ४ पिप्पलीमूल, पिपलमूल । नमक।