पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४०६

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- उधारति उपोष जातो. है। : उभयको : तापमानयन्त्रसे . देखने घर सङ्गमाहो, सूस । (वि.) २ तीक्ष्णवीर्य, गर्म तारु १६४. से. पर्यन्त ताप मिलता है। ....: . रखनेवाला। ३ बलवानं, ताकतवर - थाना जिलेके भिवन्दी तालुकमे प्रायः १५० उष्ण उष्णवेताली (स. स्त्री. ) एक देवी। . . कुण्ड हैं। उनमें कितने ही थाना जिलेको वैतरणी उष्णा (स. स्त्री०) उष्यते वध्यते यया, उष वधे नक्- नदीके निकट पड़ते हैं। उक्त कुण्ड अतिप्राचीन : टा। १ चयरोग, तपेदिक। २ सन्ताप, गरमौः। कालसे तीर्थ की तरह प्रसिद्ध हैं। पिण्डी पर्वतके ३ पित्त, सफरा। पास अर्जुनकुण्ड है। उसमें १३ ताप रहता है। उष्णांशु (सं० पु०) उष्णा अंशवो यस्य, बहुव्रीः । कितने ही क्षुद्र क्षुद्र भी उष्णप्रस्रवण हैं। उनके कर्दमसे सूर्य, आफताब। धूम उठता है। सिन्धु प्रदेशमें अनेक उष्ण प्रस्रवण उष्णागम (सं० पु.) उष्णः प्रागमो यत्र। ग्रीन- हैं। उनमें मञ्च इदके निकट भीलगिरिके शिखर काल, गरमौका मौसम। देशपर एक अतिशय उत्तप्त प्रस्रवण है। उसके जलमें | उष्णाभिगम, उचामम देखो। हाथ डाल नहीं सकते। सिन्धु प्रदेशके लयो नामक उणालु (सं० वि०) उष्ण-आलु। ग्राममें तप्त गन्धकके कई प्रस्रवण हैं। उत्ताप सह्या करने के लिये असमर्थ,जो गरमी बरदाश्त पन्जाबके उत्तरांशमें हिमालय पर्वतके पास पाती। कर न सकता हो। २पातपलान्त, गरमोसे घबराया नदी किनार मणिकर्ण नामक तीर्थ है। इस पर्वतमय हुआ। ३ शीतलप्रिय, जिसे ठण्डक अच्छी लगे। . प्रदेशमें पनेक उष्ण प्रस्रवण देख पड़ते हैं। हम "उचालुः शिशिर निषादति वरोम् लालवाले शिखी।” (विक्रमोर्वशी) समझते हैं, कि वे सकल पवित्र प्रस्रवण ही पूर्व | उष्णासह (सं० पु.) उष्ण पातप प्रासयते यत्र, कालमें उष्णोगङ्ग नामसे प्रसिद्ध थे। . उष्ण-पा-सह-अच् । १ हेमन्तकाल, जाड़े का मौसम । • "पां हुई च पुण्याखा' भगुनच पर्वतम् । (नि.)२ उत्ताप सहन सकनेवाला, जो गरमी बर- उचीमाच कोन्ते य सामात्यः समुपस्प श" (भारत,वन १३५ १०) | दाश्त कर न सकता हो। मणिकर्णके लोग उष्ण प्रस्रवणके नापसे रन्धनकाय उष्णिक् (सं० स्त्री.) उत्-सिह-क्विप। सप्ताक्षर छन्दो- चलाते हैं। उन्हें जलाने के लिये काष्ठका प्रयोजन नहीं विशेष, सात अक्षरका एक छन्द । “गायवाधिमनुष्टच ।" पडता। | (कन्दोमवरी) यह छन्द तीन प्रकारका होता है-. ...काश्मोरके उत्तर लाधक प्रदेशमें अनेक क्षुद्र उष्ण- मधुमती, कुमारललिता और मदलेखा। प्रस्रवण हैं। चट्टग्राममें चन्द्रनाथ गिरिपर सौताकुण्ड उष्णिका (सं० स्त्री०) अल्पमत्रमस्याम्, अब अल्यार्थ नामक एक पवित्र प्रस्रवण है। पूर्व कानसे यह कुण्ड हिन्दुवों और बौद्धोंके पवित्र तीर्थस्थानको तरह प्रसिद्ध । निपातनात् अनशब्दस्य उष्णादेशः, टाप् प्रत-इत् । यवागु, महेरौ। है। इस कुण्डसे धम निकलता है। उष्णिमा (सं० पु०) उत्ताप, गरमी। . उष्णरश्मि (सं० पु०) उष्णा रश्मयोऽस्य, बहुव्री. उष्णोगङ्ग (सं० लो०) उष्णोभूता गङ्गा यत्र । भृगु- १ सूर्य, आफताव। २. अकंवक्ष, अकोड़े का पेड़। पर्वतस्थ तीर्थविशेष । (भारत, वन १३५ १०) उच्चप्रस्व पण देखो । उष्णरुचि, उपरश्मि देखो। | उष्णोष (स.पु.ली.) उष्णां ईषते हिनस्ति, उष्ण- उष्णुवारण (स० पु. लो०) उष्णं पातपं वारयति, ईष-क। १ शिरोवेष्टन, पगड़ी, साफा। वैद्यकके उष्ण-व-णिच-ल्य। छत्र, छाता। ) मतसे उष्णोषका धारण कान्तिजनक, केशवर्धक, . "यदर्थमभोवमिवोच्चवारणम् ।” (कुमार पौत-उष्ण-निवारक, प्रतिश्याय तथा उष्णवाष्य (सं० पु.) १ तप्तवाष्प, गर्म भाप । २ अशु, अस्।ि | शिरःशूलप्रशमक और वर्ण-तेज-बल-वर्धक है। एचबीय (स.पु.) उष्णं वीर्य यस्य, १ शिशुमार, । २ मुकुट, ताज। ३ चिङ्गविशेष । .... Vol IIL 102