ऊ ( दीर्घ ) संस्कृत तथा हिन्दी स्वरवर्णका षष्ठ पहिये की धुरीमें लगती है। इससे पहिया सटा अक्षर। इसका उच्चारणस्थान ओष्ठ है। वर्णोद्धार रहता और धुरको कोलको रगड़से कटा नहीं करता। तन्त्र में लिखा है-जकारका रूप इख उकारसे प्रायः ऊंधन (हिं स्त्री०) निद्रागम, झपकी। मिला है। और विशेषता. यई है, कि ऊकारके घना (हिं.कि.) निद्रागम होना, आंख झपकाना। नीचे एक दूसरी वक्र रेखा नोचेको तरफ अधिक ऊंच, ऊंचा, (हिं०) उच्च देखो। जाती है। समस्त रेखामें यम, अग्नि और वरुण अव- ऊंचाई, उच्चता देखो। स्थित हैं। ऊर्ध्वगत मात्राको लक्ष्मी वा सरस्वती कहते ऊंचे (हि.) उच्चकैः देखो। हैं। इसका तन्त्रोक्त नाम-ऊ, कण्टक, रति, शान्ति, ऊंछ (हिं पु०) राग विशेष । क्रोधन, मधुसूदन, कामराज, कुजेश, महेश, वामक- जंछना (हि क्रि०) बाल झाड़ना, कंघी करना। णक, अर्थोश, भैरव, सूक्ष्म, दोघ घोणा, सरस्वती, ! ऊंट (हिं० ) उष्ट देखो। । विलासिनी, विघ्नकर्ता, लक्ष्मण, रूपकषि णी, महा- ऊंट कटारा (हिं० पु०) उष्ट्रकण्टक क्षुप, एक विद्येश्वरी, यष्ठा, षण डोभू, और कान्यकुनक है। पौदा। इस झाडीमें कांटे होते हैं। पत्र भी दीर्घ २ धातुका अनुबन्ध विशेष । “अस्तवेटकः।” (कैवि० दु)। एवं कण्टकाकार हैं। शाखा चुभनेवाले तन्तुओंसे (अव्य) वेज-क्विप । १ सम्बोधन-ए! ओ ! अरे! युक्त रहती हैं। यह प्रस्तरमय तथा अनुरा भूमिमें २ वाक्यारम्भ-हां! कहिये! ३ दया-रहम-राम उपजता है। उष्ट्रका यह प्रिय खाद्य है। इसका राम! ४ रक्षा हिफाजत-त्राहि नाहि! (पु.) मूल जल में रगड़ कर देनेसे गणिोको सुख प्रसव होता अवति रक्षति, अव-क्विप-जट । ज्वरत्वरस्रिव्यऽविमवान- है। किसी-किसौके मतानुसार ऊंटकटारा बल- पधाया। पा ६ । ४ । २०। ५ महादेव । ६ चन्द्र । ७ रक्षक, बध क भी ठहरता है। मुहाफ़िज़। ऊंटकटोरा, टकटारा देखो। ऊना :(हि.क्रि.) उदय होना। निकलना। ऊंटगाड़ी (हिं. स्त्री०) जंटके सहारे चलनेवाली जाबाई (हिं०वि०) निरर्थक, बेफायदा। गाड़ी। इसमें प्रायः दो खण्ड होते हैं। रात दिनमें अख, इक्षु और ईख देखो। जंट गाड़ी ३० कोससे कम नहीं चलती। ऊंग ऊ'देखो। ऊंटवान् (हिं पु०) उष्ट्रसञ्चालक, ऊंटको हकि- ऊंगना (हिं० पु) पशुरोग विशेष, चौपायोंकी नेवाला। एक बीमारी। इस रोगमें पशु कुछ नहीं खाता- जड़ा (हिं पु०) १ पात्र विशेष, एक बरतन। पीता। शरीर शीतल लगता और कान बह चलता है। इसमें रुपया पैसा ओर गहना-गोठ भर भूमिके मध्य जंगा (हिं. पु.) अपामार्ग, लट जोरा। गाड़ते हैं। २ तहखना, चहबच्चा। (वि.) ३ गभीर, जंगी (स्त्री०) मा देखो। .. . गहरा। जंघ (हिं० स्त्री०) १ निद्रावेश, नौंदका दौरा, ऊंदर, इन्दुर देखो। झपको। २ शण सूत्रको बनो एक मेडुरो। यह ऊंधा, औधा देखी। Vol - III. 103
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४१०
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