ऋ ऋ (म पु०) १ स्वरवणेका सप्तम अक्षर। इव, ऋक रस (स० वि०) व्रश्च-त, पृषोदरादित्वात् वलोपः। दीर्घ और त भेदसे यह तीन प्रकारका होता है। किन, कटा हुआ। उच्चारण स्थान मूर्धा है। लिखनको प्रणालीमें अवं| ऋक्थ (सं.ली.) ऋच स्तुतौ थक। पातदिवचिरि- देशपर एक वक्र रेखा दक्षिण जायेगी और वामदिसे चिसिचिमास्था। उप रा १ धन, दौलत । २ व आरम्भ कर एक त्रिकोणाकृति बनाने में आयेगी। ज़र । ३ उत्तराधिकारसूत्रसे मिलनेवाली जाति फिर दक्षिण दिकको अधोगामो रेखा पडेगो। मात्रा प्रभृतिको सम्पत्ति, जो जायदाद वरासतसे हामिल हो। पराशक्ति-जैमो विख्यात है। उसमें ब्रह्मा, विष्णु और ऋकथहर (सं.त्रि.) ऋकथं हरति, ऋथ-ह- महेश्वर अवस्थान करते हैं। ऋकारका तन्त्रोक्त नाम अच् । अंशभागो, हिस्सेदार, वरासतसे माल पाने वाला। पूर. दीर्घ मुबी. रुद्र, देवमाता, त्रिविक्रम, भारभूति, ऋक्ष (सं० पु. लो.) ऋष्-स-कित्। सुब्रश्चिकत्यषिमा: क्रिया, करा, रोचिका, नासिका, धृत, एकपादशिरः, कित्। उप श६६। १ नक्षत्र, सितारा। माला, मगडना, शान्तिनी, जन, कण, कामलता, “जौद्रा गःखे के हा रोषाचिन्म प्रायः समाधानः । मेधः, निवृत्ति, गणनायक, गहिणी, शिवदतो, पूर्ण रेसघाखापोऽन: कृयज्यंठा इत्याचोनिङ्गः (ज्योतिष वेदाङ्ग-१८) . गिरि और सप्तमो है। (वर्णोद्धारतन्त्र ) २ धातुका । २ राशि । (रघ १२।१५) अनबन्ध-विशेष । "ऋचड्यङ्गख ।" (कविकल्पद्रुम) ३ स्वर्ग, युरोपके ज्यातिष शास्त्र में ऋक्ष नामक स्वतन्त्र राशि बिहिश्त । तपन । (स्त्री०) ५ देवमाता अदिति। है। नाम उर्सा मेजर ( Ursa major ) रखते हैं। (अव्य) हास्य परिहास, बोलो ठोलो। ७ निन्दा, यह उत्तर राशियां में एक समझा जाता है। इस छी-छो। ८ वाक्य, बात। ८ प्राप्ति, हासिल। १० राशिमें सात तारा रहती हैं। विशेषता यह वाक्यविवति। (धातु) म्वा० पर० सक० अनिट् । पड़ती-इसमें कितनी ही हितारा और नौहारिका ११ गमन करना, जाना। १२ प्राप्त होना, पहुँचना। लगती है। लगती है। - " गती प्रापणे च।" (कविकल्पद्रुम) पदा० पर० स० अनिट् । । ऋक्ष-अच। ३ पर्वत विशेष. एक पहाड़। यह १३ गमन करना, चलना। "ऋ इरल गत्याम् ।" (कविकल्पद्रुम) सप्त कुलाचलके मध्य पड़ता है। कुलाचल देखो। इस जुही० पर० स० अनिट । १४ गमन करना, चन पर्वतके मध्य नर्मदा नदो प्रवाहित है। पड़ना। "ऋ रलि गत्याम् ।" (कविकल्पद्रुम) स्वा० पर० सक. "ऋक्षवन्त गिरिश्रेष्ठमध्यास्त नर्मदां पिवन्। अनिट । १५ हिंसा करना, मारना। "ऋ रन हिंसने ।' सर्वाणामधिपतिध यो नामेष यूथपः।” (रामायण दा३१०) (कविकल्पद्रुम) इसी ऋक्षवान् पर्वतको प्राचीन पाश्चात्य ऐतिहा- ऋक् (सं० स्त्रो०) ऋचन्ते स्तूयन्ते अनया देवाः, सिक टलेमिने औक्षेटन' (Ouxeuton ) लिखा है। ऋच-क्किए। १ ऋग्वेद। इसको शाखा एकविंशति वर्तमान विधा पर्वतका दक्षिण-पूर्वाश पहले ऋक्ष, है। २ ऋग्वेदोक्त मन्त्र। ३ स्तुति, तारीफ़ । ४ पूजा, ऋक्षवान्' इत्यादि नामसे पुकारा जाता था। ... परस्तिश । (त्रि०) ५ तप्त, गर्म। “नर्मदाकूलमेकाको नगरी मृत्तिकावतीम् । ऋक्छस् (म अव्य०) ऋक्रास्। अक्। .... . ऋचवन्त' गिरि जिल्ला शक्तिमन्यामुवास ह।" (हरिवंश २६।१५)
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४२४
दिखावट