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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४३९

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ऋतुकालौन-ऋतुमती समय, मौसमका मौका। २ स्त्रीके रजोदर्शनको ऋतुपरिवर्त (सं० पु.) ऋतूनां परिवर्तः, ६-तत्। प्रथम रात्रिसे षोड़श रात्रि पर्यन्त, औरतोंके महीनेको एक ऋतुके बाद दूसरे ऋतुका आगमन, मौसमका सोलह रात। ऋतुमती देखो। ! अदलबदल। ऋतुकालीन (सं० त्रि०) ऋतुकालस्य इदम्, ईन् । ऋतुपरीक्षा (सं. स्त्री०) प्रार्तव परीक्षा, मौसमी ऋतुकालसम्बन्धीय, मौसमके मौके से सरोकार रखने- जांच। ऋतुके समय योनिका कण्डयन, अङ्गको वेदना वाला। श्रादिलक्षण वद्यको देखलेना चाहिये। (अविस हिता) ऋतुगण (सं० पु. ) ऋतुसमूह, मौसमोंका जखीरा। ऋतुपर्ण (सं० पु०) एक राजा। ऋतपर्ण देखो। ऋतुगमन (संलो०) ऋतुके समयका स्त्रीसम्भोग, ऋतुपर्याय ऋतुपरिखत देखी। महीना पानेसे औरतके पास जानेका काम। ऋतुपा (वै० पु.) ऋतून् पाति रक्षति ऋतुषु सोम ऋतुगामी (सं० त्रि०) ऋतौ गच्छति, ऋतु-गम-णिनि। पिवति ऋतुभिः देवैः सह सोमं पिवतोति वा, ऋतु-पा- ऋतकालपर सङ्गत होनेवाला, जो महीना होनेसे विप्। १ वर्षेपालक इन्द्र। (त्रि.) २ नियत औरतके पास जाता हो। समयपर सोम पीनेवाले। ऋतग्रह (सं० पु०) ऋतूनां ग्रहो यत्र, बहुब्रो । ऋतुपात्र (व. लो०) अश्वत्थ प्रभृति काष्ठनिर्मित यज्ञविशेष, ऋतुको शुद्धिके लिये किया जानेवाला यन्न। यज्ञीय पात्रविशेष, ऋतुवोंके तर्पण करनेका पात्न । ऋतुचर्या (सं० त्रि.) ऋतुका आचरण, मौसमका "तस्मादश्वत्थे ऋतुपावे स्यातां काश्मय्यमयत्वे व भवतः ।" काम। ऋतुकालीन कर्मको ऋतुचर्या कहते हैं। (शतपथब्रा० ४।३।।४) जैसे वसन्तमें भ्रमण, ग्रीष्ममें दिवाशयन, वर्षा में अङ्ग. ऋतुपाप्त (सं० त्रि.) ऋतु तद्योग्यः पुष्यानि रागमन, शरत्में विदेशगमन, और हेमन्त तथा | प्राप्तोऽनेन । १ फलपुष्यादि उत्पन्न, फला-फला । शिशिरमें अग्नितपन प्रशस्त है। .. २ फलमात्रके भोजनसे जीविकानिर्वाह करनेवाला, ऋतुजित् (सं० पु०) मिथिलाराजवंशीय जनक राजा। जो सिर्फ फल खाकर काम चलाता हो। यह कुशध्वजके परवर्ती सप्तम पुरुष थे। ऋतुमत् (स. त्रि.) ऋतु-मतुप । ऋतुयोग्य- ऋतुथा (सं० अव्य.) १उचित वा नियत समयपर, फलपुष्यविशिष्ट, जी मौसमी फलफल रखता हो। मुनासिब या मुकरर वक्त से । (साथण ) २ समय समय- १ नियत समयपर उपस्थित होनेवाला, जो बंधे ,पर, कभी-कभी। (विशुपु० ५॥१३) ३ क्रमशः, ठीक वक्त पर पाता हो। (लो०) २ वरुणका उद्यान तौरपर। ४ भिन्न प्रकारसे, अलग-अलग। या बाग। ऋतुदान (सं० लो०) ऋतुकालका स्त्रीप्रसङ्ग, महीन- ऋतुमती (सं. स्त्री०) ऋतुरस्या अस्तौति, ऋतु- पर पारतकी मोहबत। यह पुत्रीतपत्तिके लिये किया छ। ऋतयुक्ता स्त्री, जो औरत हैजसे हो। जाता है। संस्क त पर्याय-रजस्वला, स्त्रीधर्मिणी, पर्वी, पात्रयो, ऋतुधर्म (स• पु.) ऋतूनां धर्मः, ६-तत्। ऋतु- मालिनी, पुष्पवती और उदक्या है। (अमर) वैद्यकोक्त गणको अवस्था, मौसमको हालत । लक्षणके अनुसार ऋतुमतीका मुख किञ्चित् स्फोत ऋतुधामा (सं• पु.) १ हादश मनुकालीन इन्द्र।। एवं प्रसन्न रहता, और मुखके मध्य तथा दन्तमें अधिक "रुद्रपुवस्तु सावर्णो भणिता हादशो मनुः । लेद जमता है। कुषिदेश, चक्षुदय और केशपाश ऋतुधामा च तवे न्द्रो भविता मणमै सुरान् ॥” (विष्णुपु० २।३२)| शिथिल पड़ जाता है। बाहु, स्तन, नितम्ब, नाभि, २ विष्णु। जरु, जधन और कटिदेश फड़कता है। यह सङ्ग- ऋतुपति (सं० पु.) ऋतूनां पतिः श्रेष्ठः, ६-तत्। मेच्छु, प्रियभाषिणी और हर्ष तथा प्रौत्सुक्यशालिनी १ वसन्त ऋतु, मौसम-बहार। २ अग्नि, पाग। । देखाई देती है। (चरक ) महर्षि सुश्रुतने कहा है- मतप-हौष