ऋधवार-ऋश्यद ४४३ ऋधवार (व.वि.) १ अपना ऐखय बढ़ानवाला, ऋभुक्षा (सं० पु०) ऋभुक्षः स्वर्ग: वचं वा अस्त्वस्थ, जो अपना माल बढ़ा रहा हो। २ यथाभिलषित ऋभुक्ष इनि-'आ' प्रादेशः। पथिमल्य भुचामात् । पा ७११८५ । सम्पत्तिशाली, मनमानी दौलत रखनेवाला। (मायण) १इन्द्र। २मरुत्। ३ ऋभु। ४ तीन ऋभुवों में पहले ऋभु। ऋधुक् (सं० त्रि०) न्यन, कम, छोटा। ऋभुक्षी (सं० पु.) ऋभुक्षः स्वर्ग: वर्च' वा अस्यास्ति, ऋनिया, ऋनी (हिं.) ऋणो देखो । । ऋभुक्ष-इनि। इन्द्र।। ऋक् (धातु) तुदा. पर० सक. सेट। “ऋक श दाने ऋभुक्षीन् (सं० त्रि०) ऋभुक्षीव पाचरति, ऋभुक्षिन्- लाध हिसानिन्दाजो।" (कविकल्पद्रुम) १ दान करना, देना। किप-दोघः। अनुनासिकम्य कि ब्झ तो: डिति। पाह। ।। १५ । २प्रशंसा करना, तारीफ, बताना। ३ हिंसा करना, इन्द्र के न्याय आचारविशिष्ट, जो इन्द्र की तरह काम- मारना। ४ निन्दा करना, बुराई बताना। ५ युद्ध काज करता हो। करना, लड़ना। ऋभुमत् (वै० वि० ) १ चतुर, होशियार । २ ऋभु- ऋबोस ( व लो०) ऋ-अच् पृषोदरादित्वात् साधुः। सम्बन्धीय। ३ अतिशय दीप्त, दूर दूर तक चमकने- १ पृथिवी, जमीन्। २ पृथिवीस्थ अग्नि, जमीन की वाला। (मायण ) भाग। ३ सन्धि, दराज। ___ ऋभ्व (दै० त्रि०) अरुभूरस्य, पृषोदरादित्वात् ऋभु ( स० पु०) अरि देवमातरि अदितो भवति, साधुः। १ अरसे उत्पन्न, रान्से निकला हुआ। ऋ-भू-डु। १ देवता। २ मेधावी, पाकिल। ३ यन. २ आक्रामक, हमलावर। ३ व्याप्त, भरा या दूातक देवता। ४ देवगण विशेष। यह वैवस्वत मन्वन्तरके फेना हुआ। ४ चतुर, होशियार। . देवता हैं। ५ सुधन्वाके पुत्र। ऋक् संहितामें ऋभु ऋम्वन् (वै० त्रि.) १ आक्रामक, हमलावर । शब्द इन्द्र, अग्नि और आदित्य के नामान्तर रूपसे २ अतिशय प्रदीप्त, दूरदूर तक चमकने वाला। (साब घ) व्यवहृत हुआ है। पुराणमतसे ऋभु ब्रह्माके पुत्र हैं। ऋभ्वस्, जभवन देखो। इन्होंने तपोबलसे विशुद्ध ज्ञान लाभ किया था। पुल- ऋम्फ (धातु) तदा० पर० स० सेट मुचादि। स्त्य पुत्र निदाघ इनके शिष्य रहे। पौराणिक मतसे वध करना, मार डालना । यह चार कुमारों में एक थे। आङ्गिरसगोत्रीय सुध- ऋलक (सं० पु.) वादिन विशेष बजानवाला, बाके तीन पुत्र रहे। यह तोनों वेदमें 'ऋभवः' एक बाजेवाला। अर्थात् ऋभुगण कहे गये हैं। प्रत्येकका पृथक नाम ऋल्लरी (स० स्त्रो०) वादिन विशेष, एक बाजा। श्म ऋभुक्षा (ऋभु), श्य विभु और श्य वाज था। श् (धातु) सोत्र पर० स० सेट् । १ गमन करना, भाष्यकार सायणाचार्य के मतसे ऋभुगण सूर्यमण्ड लमें जाना। २ स्म ति करना, सोचना । रहते और सूर्यके रश्मिरूपसे चमकते हैं। ऋक्- ऋश्य (सं० पु० ) ऋश-क्यप। १ मृगविशेष, एक संहिताको देखते ऋभुगण अतिशय कार्य कुशल रहे। हिरन । यह चित्रित वा खेतवर्ण पदविशिष्ट होता इन्होंने इन्द्र के रथ और अश्वगणको शोभान्वित किया है। मांस कषाय, मधुर, वातघ्न, पित्तन, हय, तीक्ष्ण था। उससे सन्तुष्ट हो इन्द्रने इनके पितामाताको और वस्तिशोधन है। (सुश्रुत) पुनयौवन दिया। मोक्षमूलर साहबने वैदिक ऋभु ऋश्यक (सं० लो०) ऋग्य-कः । बुञ्छप कठेति । पारा८० । और प्राचीन यूनानी देवता अफियस (Orpheus) मृगसन्निकष्ट देशादि, जिस देश में चित्रित मृग रहे। में सादृश्य स्थापन करनेको चेष्टा लगायो है। ६ एक २ हिंसा, शिकार। मुनि। ७ एक निकृष्ट जाति। ८ सैन्यभेद। ऋश्यकेतु (सं• पु:) विश्वकेतु, अनिरुक्ष । ऋभुक्ष (सं० पु०) ऋभवः क्षिपन्ति वसन्ति यत्र, ऋभु-ऋश्वद (स. पु०) ऋय हिंसां ददाति, ऋश्य-दा-क । चि-ड। १ स्वर्ग, बिहिश्त । २ वच्च । ३ इन्द्र। | कूप, महा। इसमें हिरनको फांसकर पकड़ते हैं।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४४४
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