पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४४७

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गायका जनना ऋषिक-ऋषितर्पण होते हैं-महर्षि, परमषि, देवर्षि, ब्रह्मर्षि, श्रुतषि, पृषोदरादित्वात् दीर्घः। १ ऋषिपुत्र, ऋषिके लड़के। राजर्षि और काण्डषि । प्रत्येक मन्वन्तर सप्तर्षि - २ ऋषियोंके राजा। (लो०) ३ लताविशेष, एक बेल । गणका नाम इसप्रकार है-वायम्भुव मन्वन्तरमें ऋषिका (सं० स्त्री०) नदी विशेष, एक दरया। मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्ता, पुलह, क्रतु और ऋषिकुल्या ( स० स्त्री०) ऋषीणां कुल्या कृत्रिमाल्य- वशिष्ठ ; खारोचिष मन्वन्तरमें अर्ज, स्तम्भ, प्राण, | सरित् इव । १ गङ्गा। २ ऋषियोंका कृत्रिम जला- दत्तोलि, ऋषभ, निश्चर तथा चावीर; उत्तम मन्वन्तरमें शय । ३ तीर्थविशेष। ४ सरस्वती। ५ भारतवर्ष को वशिष्ठके प्रमदादि सप्तपुत्र ; तामस मन्वन्तरमें ज्योति एक नदी। “स एष देशप्रवर उत्कलाख्यो हिजोत्तमाः । र्धामा, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वलक एवं पौरव ; ऋषिकुलयां समासाद्य दक्षिणोदधिगामिनीम् ॥” (उत्कलखण्ड ६५०) रैवत मन्वन्तरमें हिरण्यरोसा, वेदश्री, अर्ध्वबाहु, यह नदी उत्कलके गुमसर और गजामप्रदेश में वेदबाहु, भूधामा, पर्जन्य तथा वशिष्ठ; चाक्षुष प्रवाहित है। आजकल इसे ऋषिकुलिया कहते हैं। मन्वन्तर में सुमेधा, विरजा, हविमान, उन्नत, मधु, । भूमाकी पत्नी और उदगीथको जननी। अतिनामा और सहिष्णु; वर्तमान वैवखत सन्वन्तरमें ऋषिवत् (सं० त्रि.) १ उत्तेजना देनेवाला, जो अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, भरद्वाज | भड़काता हो। २ उपस्थित होनेवाला, जो अपनी एवं कश्यप ; सावणि क मन्वन्तरमें गालव, दीप्तिमान, शकल देखाता हो। (सायण ) परशुराम, अश्वत्थामा, कप, ऋष्यशृङ्ग तथा व्यास ; ऋषिगण (सं० पु.) ऋषिसमूह, ऋषियोंका अण्ड। दक्षसावर्णिक मन्वन्तरमें मेधातिथि, वसु, सत्य, ऋषिगिरि (स.पु.) मगधदेशीय पर्वतविशेष, विहारका । ज्योतिष्मान्, द्य तिमान, सरल एवं हव्यवाहन; ब्रह्म एक पहाड़। यह पर्वत क्षुद्र और राजग्रहके निकट सावणिक मन्वन्तरमें आप, भूति, हविष्मान्, सुक्कतो, | अवस्थित है। सत्य, नाभाग और वशिष्ठके पुत्र अप्रतिम ; धर्म- “एष पार्थ महान् भाति पगुमानित्यमम्बु मान् । सावर्णिक मन्वन्तरमें हविष्मान, वरिष्ठ, ऋष्टि, आरुणि, निरामयः सुवैश्माल्यो निवेशो मागधः यमः ॥ निश्चर, अनध एवं विष्टि ; रुद्रसावर्णिक मन्वन्तरमें | वैभारो विपुल: शैलो वराहो वृषभत्तथा । छु ति, तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोरति तथा तपो- रथा ऋषिगिरिस्तात प्रभाय त्यकपञ्चमाः ॥" (भारत, सभा २०७०) धृति ; देवसावर्णिक मन्वन्तरमें तिमान्, अव्यय, ऋषिगुप्त (स• पु०.) बौद्धविशेष । तत्त्वदर्थी, निरुत्सुक, निर्मोह, मुतपा एव निष्पकम्प ; षिग्राम ( स० क्लो०) वीरभूमके अन्तर्गत एक प्राचीन इन्द्रसावणिक मन्वन्तरमें अग्नीध्र, अग्निवाहु, शुचि, ग्राम। यह मानसेपी नदीके तटपर अवस्थित है। मुक्त, माधव, शक और अजित। __ “मानसेपी नदीपाश्चे गङ्गायाश्चोत्तरेऽपि च । ___मार्कण्डेयपुराणके मतसे इन्द्रसावर्णिक मन्वन्तरका | ऋषिस'चकं ग्रामञ्च स्थापयिष्यति यवतः ॥” (भ० प्रमखण्ड ५७।१०२) नाम 'भौत्य' है। पुराणान्तरमें उक्त सप्तर्षियोंके नाम- | ऋषिचोदन (वै० त्रि०) ऋषिको उत्तेजित करनेवाला, पर भी मतभेद पड़ता है। जो गानेवालेका हौसला बढ़ाता हो। ज्योतिषशास्त्रको देखते वशिष्ठकी पत्नी अरुन्धतीके ऋषिजाङ्गल (स० पु०) ऋक्षगन्धा देखो। साथ वर्तमान मन्वन्तरके सप्तर्षि मघा नक्षत्रपर अव- ऋषिजाङ्गलक (स.पु.) ऋक्षगन्धा देखो। स्थान किया और सघाके उदयमें उदित हुआ करते हैं। ऋषिजाङ्गलको, ऋक्षगन्धा देखो। काशीखण्ड शनिलोकके जल और ध्रुवलोकके अधो- | ऋषिजाङ्गला, ऋचगन्धा देखो। देशमें इनको अवस्थिति बताता है। ऋषिजाङ्गलिका, ऋक्षगन्ध देखो। -३ वेद । ४ किरण । ५ भृगु प्रभृति महर्षि सन्तान । ऋषितर्पण (सं० क्लो०) ऋषीणां तर्पणम, इ-तत्। इषिक (म. पु.) ऋषः पुत्रः, ऋषि संज्ञायां कन्, । ऋषियों के उद्देश्यसे दी जानेवाली जलानलि।