पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४४८

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ऋषितीर्थ ऋषिखर ऋषितोथ (सं० पु.) काठियावाड़का एक तीर्थ । ऋषिलोक (सं० पु०) ऋषीणां लोकः, ६-तत् । - (प्रभासखर २२८।२।११) सप्तर्षिगणको अवस्थितिका स्थान, ऋषियोंको दुनिया। ऋषितोया ( स० स्त्री०) जूनागढ़के निकट बहनेवालो काशीखण्डके मतमें यह स्थान शनिलोकसे जवं और एक क्षुद्र नदी। इसी नदीके उपकूलपर प्रभासखण्डोक्त ध्रुवलोकसे अधः अवस्थित है। उजतनगर है। उन्नतनगर देखो। ऋषिवदन, ऋषिपडून देखो। ऋषित्व (सलो०) ऋषिको अवस्था वा नियमावली। ऋषिवह (सं० वि०) ऋषिको वहन करने या ले ऋषिदेव (सं त्रि.) किसी बुद्ध का नाम । जानेवाला। ऋषिद्दिष् (वै त्रि०) उत्तेजित कविसे देष रखनेवाला। ऋषिवानर-एक संस्क तज्ञ पण्डित। इन्होंने 'बन्धहेतू- ऋषिपञ्चमी (सं० स्त्री.) ऋषीणां सप्तर्षीणां पञ्चमी, दयविभङ्गटोका' बनायौ थो। तत्। व्रतविशेष। यह व्रत भाद्र शुक्लपञ्चमीको ऋषिश्चाद ( स० क्लो०) ऋषिभिः कर्तव्यं थाइम्, होता है। सप्तषियों की प्रतिमा बनाकर पूजी जाती। मध्यपदलो। ऋषियोंका कर्तव्य श्राद्ध । इसमें है। पूजाके बाद अक्कष्टभूमिजात शाकमात्र खानेका कार्यको अपेक्षा पाडम्बर अधिक रहता है। विधान है। इसी प्रकार सात वत्सर पर्यन्त यह व्रत "अजायुहे ऋषिश्राद्धे प्रभाते मेघडम्वर । किया जाता है। फिर अष्टम वर्ष सप्त कलसस्थित दम्पत्योः कलह चैव बढारम्भे लघुक्रिया ॥” (उवट ) प्रतिमामें सप्तर्षियोंको पूज यथाविध मन्त्रद्वारा १०८ ऋषिश्रेष्ठ (सं० पु.) १ पुण्डरीक वृक्ष, कमलका तिलोंका होम करना पड़ता है। अन्तको ब्राह्मण पेड़। २ ऋदि। भोजन देना चाहिये। ऋषि श्रेष्ठा (स. स्त्री०) १ ऋद्धि। २ वृद्धि। यह ऋषिपट्टन (स० लो०) वाराणसीस्थित बौद्धोंका एक एक ओषधि है। पवित्र स्थान। (अवदानशतक ७६) सारनाथ देखो। ऋषिषह ( वै० त्रि.) ऋषिको उत्तेजित करनेवाला। ऋषिपुत्रक (स० पु.) दमनवृक्ष, देवनेका पेड़। यह शब्द सोमका विशेषण है। ऋषिप्रशिष्ट (सं० त्रि०) ऋषियोंको शिक्षा पाये हुआ। ऋषिप्रोक्ता (सं. स्त्री०) ऋषिभिः प्रोक्ता भैषज्याय ऋषिषाण (वे० वि०) १ ऋषिद्वारा आकर्षित। इति शेषः, ३-तत्। माषपर्णी वृक्ष। माषपर्णी देखो। । २ ऋषिहारा पूजित। (सायण) ऋषिबन्धु (स पु०) ऋषिः बन्धुरस्य, बहुव्री। १ शरभ नामक ऋषि । २ ऋषिमित्र। (त्रि०) ३ ऋषिवंशीय । ऋषिषेण (सं० पु०) पुराणोक्त एक राजा। ऋषिमना (वै.पु०.) ऋषेमन-इव मनोऽस्य, मध्य- ऋषिष्ट त (सं० त्रि०) ऋषिभिः स्तुतः, पार्थ वात् पदलोपी०। ऋषिके न्याय सर्वार्थदी, जो ऋषिको। पत्वम्। १ ऋषिगण द्वारा स्तव किया हुआ। (पु.) तरह सब मतलब समझता हो। २ अग्नि, भाग। ऋषिमुख (सं० क्लो० ) किसी ऋषिके बनाये मण्डलका ऋषिसत्तम (स० पु०) सबसे उत्तम ऋषि, जो आरम्भ। सबसे अच्छा ऋषि हो। ऋषियन (सं० पु. ) ऋष्य द्देश्यको यज्ञः, मध्यपद- ऋषिसर्ग (सं० पु०) ऋषीणां सर्गः, ६-तत्। ब्रह्माके लो। गृहस्थके कर्तव्य पञ्चयज्ञ के मध्य एक यन्न। आदेशानुसार ऋषियोंको सृष्टि । अध्ययन मात्र ही इस यन्नमें करना चाहिये। मनुके ऋषिसृष्टा (सं• स्त्री.) ऋद्धि, एक जड़ी। मतसे यह पञ्चयन्न एहस्थगणको अवश्य पालनीय हैं- ऋषिस्तोम (सं० पु०) एक दिवस-साध्य बन्न विशेष । “ऋषियन देक्य भूतयज्ञश्च सर्वदा। इसमें ऋषियोंका स्तव होता है। तृयज्ञ' पिढयशव वधाशक्ति न हापयेत् ॥” ( मनु धार०) ऋषिवर (वै० पु.) ऋषिभिः सूर्यते स्तूयते, ऋषि-