पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४५३

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४५२ ए-एडौ नासिक और निरनुनासिक भेदसे विविध, फिर उदात्त, | नौलपीत, गजानन, कामिनी, विश्वपा, काल, नित्या,. अनुदात्त तथा स्वरित भेदसे विविध रहता है। काम शुद्ध, शुचि, कती, सूर्य, धैर्योत्कषि णी, एकाकी और धेनुतन्त्रके मतसे लकार पूर्णचन्द्रतुल्य, पञ्चदेव एवं दनुजप्रसू है। प्राणात्मक, तीन गुण तथा तीन विन्दु विशिष्ट, चतुर्वर्ग ____ पाणिनि लुकारका दीर्घत्व नहीं मानते । किन्तु प्रद और परम कुण्डली है। इसको लिखनप्रणालीमें वार्तिक सूत्रके अनुसार आवश्यक स्थलपर लकारके रेखा इस लकारके क्रोड़ तुल्य लगती है। इस रेखा | स्थानमें लकार लगा लेना पड़ता है। “लु ति ल वा।" को वैशावी कहते हैं। फिर इस रेखामें दर्गा. वाणी (वातिक) इसलिये तन्त्र और मुग्धबोध-व्याकरणमें और सरस्वती रहती हैं। (वर्णोद्धारतन्त्र ) तन्त्रशास्तोक्त | स्वीकृत लकार विरुद्ध नहीं ठहरता। नाम कमला, हर्षा, हृषीकेश, मधुव्रत, सूक्ष्मा, कान्ति, (अव्य०)२देवनारी। इनार्यात्मा। ४ माता। वामगण्ड, रुद्र, कामोदरी, मुरा, शान्तिकृत, स्वस्तिका, (स्त्री०) ५ दैत्यस्त्री। ६ दनुजमाता। ७ कामधेनु- शक्र, मायावी, लोलुप, वियत्, कुशमी, सुस्थिर, माता, I माता। (पु.) ८ सर्व। ८ महादेव । ए-१ स्वरवर्ण का एकादश अक्षर। इसके उच्चा- ५ अनुग्रह, मेहरबानी। ४ अामन्त्रण, न्योता, बुलावा । रणका स्थान कण्ठ और सालु है। एकार दोघ एवं ५ श्राह्वान, पुकार । प्लुत तथा अनुनासिक एवं निरनुनासिक भेदसे विविध (पु.) एति प्राप्नोति सर्व विश्वम्, इण -अच् । और उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित भेदसे त्रिविध होता ६ विष्णु । है। कामधेनुतन्त्रके मतसे यह परम, दिव्य, ब्रह्म- (हिं सर्व०) ७ यह । विष्णु-शिवात्मक, रञ्जिनी-कुसुमतुल्य, पञ्चदेवमय, एच (हिं० स्त्री०) १ न्यनता, कमी। २ विलम्ब, देर। पच्चप्राणात्मक, विन्दुनयविशिष्ट, चतुर्वर्गप्रद और परम ३ जमीन्दारोंके अमदनी देने का महाजनी नियम । कुण्डली है। लिखनको प्रणालौमें वामदिक्से एक एंचना (हिं.क्रि.) १ रेखा निर्माण करना, सतर कुञ्चित रेखा दक्षिण दिक्को जा अधोगत पड़ती, फिर खींचना। २ लिखना, खोंच देना। ३ निकालना। वहांसे वाम दिक्को चलती है। इस रेखामें अग्नि, ४ फांसी देना। ५ शुष्क करना, सुखाना। ६ लेना। महादेव और वायु रहते हैं। (वर्णो हारतन्त्र) एकारका ७ रखना। ८ लगाना। तन्त्रशास्त्रोक्त नाम वास्तव, शक्ति, झिण्टा, सोष्ठ, भग, एचपेंच (हिं० पु०) १ पार्वत, हेरफेर। २ वक्र- मरुत्, सूक्ष्मा, भूत, अर्धके शो, ज्योत्स्ना, श्रद्धा, प्रमर्दन, । गति, टेढ़ी चाल। भय, ज्ञान, कषा, धौरा, जङ्घा, सर्व समुद्भव, वहि, एंचाताना (हिं० वि०) वक्रदृष्टि, तिरछा देखने- विष्णु, भगवती, कुण्डली. मोहिनी, वस, योषित, वाला। “सौपर फुल्ला हज़ार पर काना सवा लाखपर ए'चाताना।" आधारशक्ति, त्रिकोणा, ईश, सन्धि, एकादशी, भद्रा, (लोकोक्ति) पद्मनाभ और कुलाचत है। वीजवर्णाभिधानमें वाम | एंचातानी (हिं० स्त्री०) १ युद्ध, लड़ाई। २ कठि- गण्डान्त,मोक्षवीज, विजया और प्रोष्ठ कई नाम अधिक नता, मुश्किल । ३ खींचखांच, धर-पकड़। लिखे हैं। शिक्षाके अनुसार यह सन्धिका अक्षर | एड, एड देखो। लगता और अकार तथा इकार मिलनेसे बनता है। एंडाबेंडा (हिं. वि.') उच्चनीच, उलटपुलट । २ धातुका अनुबन्ध विशेष । “ए: सिचि अद्धः। एंडी (हिं. स्त्री०) कोट विशेष, एक कौड़ा। (कविकल्पद्रुम) यह रेशमका कौड़ा एरण्डके पत्र भक्षण करता है। (अव्य० ) ३ स्म ति. याट। असूया, नाखुशी।। पूर्ववत तथा पासाम इसका निवासस्थान है। नव-