पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४५५

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४५४ एककोष्ठि-एकचक्रा इससे शरीर कृष्ण और अरुण पड़ जाता है। एककुष्ठ असुर। महाभारतमें इस असुरका नाम प्रतिविधा असाध्य होता है। (मत्रत) लिखा है। (भारत, सभा ६७।२२) . एककोष्ठि (सं० त्रि.) एककोष्ठ चूर्णमय आधार पर एकचक्रवर्तिता (सं० स्त्री०) एक चक्रवर्तिनो भावः, अवस्थान करनेवाला, जो एक ही कोठेमें रहता हो। एक-चक्रवर्तिन-तल। समग्र पृथिवीका शासनकर्ट त्व, शिरःपदी, कटल मत्स्य, अर्गोनट, बेलेम, नाइट, कुल ज़मीन् की सलतनत । भूमण्डलके एकचक्रको अक्टोपस प्रभृति प्राणो एककोष्ठि हैं। तरह राजत्व करने का भाव वा धर्म एकचक्रवर्तिता एकक्षीर (सं.ली.) एक ही धात्रीका दुग्ध, उसी कहाता है। अन्ना वर्ग रहका दूध। एकचक्रवर्ती (सं० पु०) समग्र पृथिवोका शासन- एकगम्य ( स० त्रि.) एकत्येन गम्यः, एक-गम-यत् । कर्ता, तमाम मुल्कका बादशाह। एकमात्र लभ्य, अकेला मिलनेवाला। २ एकमात्र एकचक्रा (सं. स्त्री०) महाभारतोक्त एक प्राचीन निर्विकल्पक ज्ञान द्वारा प्राप्त होनेवाला। नगर। जतुरटहदाहके बाद पञ्च पाण्डव कुन्तीको एकगाछी (हिं. स्त्री०) केवल एक वृक्षद्वारा निर्मित ले गुप्त भावसे गङ्गा तीर गये थे। वहांसे नौकापर नौका, जो नाव एक ही पड़से बनी हो। . बैठ वह गङ्गा पार हुये और क्रमागत दक्षिणाभिमुख एकगुरु (सं• पु० ) एको गुरुय॑स्य, बहुव्री० । सतीर्थ, चलने लगे। फिर वह एक गभीर अरण्यमें पहुंचे एक हो उस्तादका शागिर्द। थे। इसो वनमें भीमने हिडिम्ब नामक राक्षसको एकगुरुक, एकगुरु देखो। मारा। उसके बाद नाना स्थान अतिक्रम कर एकग्राम (सं० पु.) एकश्चासौ ग्रामचे ति, कर्मधा। पञ्चपाण्डव व्यासदेवको आज्ञासे एकचक्रा नगरोमें अभिन्न ग्राम, वही गांव। राक्षसके घर जा बसे। (भारत, आदि १४६-१५७ १०) . एकग्रामीण (सं० त्रि.) एकस्मिन् ग्रामे भवन, एक ___अब देखना चाहिये-एकचक्रा कहां है। एक- ग्राम-खञ्। एक ही ग्रामका अधिवासी, जो उसी चक्रा नगरी पर बहुत दिनसे गड़बड़ उठ रहा है। कुछ . गांवमें रहता हो। बङ्गाली कहते-एकचका मेदिनीपुर जिलेमें गढ़वेता एकग्रामीय (स० वि०) एक-ग्राम-छ। गहादिभ्यश्च । पा ग्रामके निकट रही, जहां आज भी वक राक्षसको हड्डी । १३८ । एकग्रामवासी, उसी गांवका बाशिन्दा। .. पड़ी है। फिर पश्चिमाञ्चलके लोग इस नगरीको एकचक्र (सं० लो०) एक चक्र यस्य, बहुव्री०। अवस्थिति शाहाबाद जिले में बताते हैं। मीमांसा १ हरिग्रह वा शुम्भपुरी नामक एक पुरी। करना आवश्यक पाता, किसका मत प्रकत देखाता है। “एकचक्र इरिग्रह शुम्भपुर्यथ वर्तनि ।” (विकासशेष २।१।१२) चीना परिव्राजक युअन् चुयङ्गने अपने भ्रमण- यहां हरिग्रह और शम्भ एकचक्रका पर्याय-जैसा वृत्तान्तमें लिखा, कि गाज़ीपुर (चेन चु) से महासार राहोत हुआ है। (मो-हो-स लो) नामक ग्रामको उनका जाना हुआ अध्यापक विलसन प्रभृति कुछ पाश्चात्य पण्डितों के था। इस ग्रामके आगे पहुंच कर उन्होंने सुना-यहां मतसे शुम्भ ( एकचक्रा)-का वर्तमान नाम सम्बलपुर पहले एक नरभोजी राक्षस रहा, जिसके उत्पातसे है। किन्तु यह बात ठीक नहीं। वर्तमान सम्बल- सबको विपद्ग्रस्त होना पड़ा; बुद्धदेवने फिर उसे पुर महाभारतको एकचक्रा नगरी कैसे हो सकता है। शासन किया। . एकचक्रा देखो। उक्त महासार ग्रामका वर्तमान नाम मासार है। (त्रि.) २ एकाको विचरण करनेवाला, जो अकेले वह शाहाबाद जिले में पारा नगरके निकट अवस्थित घमता हो। ३ एकमात्र राजविशिष्ट, जो उसी है। अतएव सहज ही अनुमान करते, कि चौना सलतनतमें हो। (पु.) ४ सूर्य देवका रथ। ५ एक| परिव्राजक महासार ग्रामसे पारा नगर पहुंचे थे।