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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४५६

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एकचक्रा-एकचारी ४५५ अाजकल पारामें लोग कहते, कि पञ्चपाण्डव जननी उक्त वर्णना पढ़नेसे समझते-महाभारतके समय कुन्तीके साथ उसो स्थानमें जा कर रहे। वहां वक एकचक्रा नगरी वेत्र कोयग्रहवाले राजाके अधिकारमें राक्षसका वास स्था, जिसे भीमने मार डाला। सुतरां रहो, पीछे वक राक्षस उसे दवा बैठा। इस स्थानको महाभारतोता एकचक्रा नगरी-जैसा वर्तमान आरा नगरसे दक्षिण-पूर्व ५।७ कोस दूर समझ सजते हैं। यह प्रवाद बहुकालसे सुनते- 'बिता' या 'बेता' नामक एक अतिप्राचीन क्षुद्र ग्राम विशेषतः पहले यहां नरमांसभक्षक राक्षस रहते थे। है। यह ग्राम भगवान्गनके ठोक उत्तर पाचपर चीना परिव्राजकको वर्णना पढ़नसे यह बात पुनपुन नदी किनारे अवस्थित है। यहां प्राचीन समझ पड़ती है। बौद्ध स्तपका निदर्शन मिलता है। (Archeological वर्तमान आराका दूसरा प्राचीन नाम चक्रपुर है। Survey of India, Rept. Tol. VIII p. 19.) इसके पाव पर ही बकरी नामक एक क्षुट्र ग्राम पड़ता बोध होता-बौद्दोंके अभ्यस्थानसे पहले यहां हिन्द्र है। यहांके लोगोंको विश्वास है-इसी बकरी ग्राममें ! गजावोंका राजत्व रहा। यह 'बिता' या 'बेता' ग्राम .वक राक्षस रहता था। महाभारतमें भी लिखा- ही महाभारतोत वेत्रकोयग्रह-जैसा समझ पड़ता है।

  • . एकचक्राके निकट वक राक्षसका वास रहा।

इससे थोड़ी दूर पुनपुन नदी है। अपर पारपर "समोपे नगरस्यास्य वको वसति राक्षस:।" (आदिपर्व १८०१३) पाराके निकट दूसरा बिता ग्राम है। इससे अनुमान यहां ब्राह्मण कहा करते-भीम मङ्गलवारके दिन लगता-प्राचीन वेत्रकीय राज्य पुनपुन नदीके पूर्व- वक राक्षसको मार चक्रपुर लाये थे। इससे चक्र- पारसे वर्तमान प्रारा नगर तक विस्तृत था। -पुरका नाम आरा पड़ गया। एकचत्वारिंश ( स० त्रि०) इकतालीसवां, जो इक- महाभारतके पाठसे समझा गया, कि एकचक्रा तालीस की जगह पड़ता हो। नगरोसे अनतिदूर वेत्रकोयगृह नामक एक नगर एकचत्वारिंशत् (सं० वि०) इकतालोस, चार दहाई और एक एकाई रखनेवाला, ४१ । "वेवकीयग्रहे राजा नायं नयनिहास्थितः । एकचर (सं० पु.) एकः सन् चरति, एक-चर उपायं तं न कुरुते यवादपि स मन्दधोः ॥ पचाद्यच् । १ गण्डक, गैंड़ा। २ सर्पादि हिंस्रक अनामयं जनस्वास्थ येन स्वादद्य शाश्वतम् । ए दह क्यं न नं बसामो दुर्वलख ये । जन्तु, सांप वगैरह खूखार जानवर। (त्रिक) विषये नित्यमुहिग्ना: कुरामानामुपाश्रिताः । ३ एकाको विचरण करनेवाला, जो अकेला घमता ब्राह्मणा: कस्य वास्तव्याः कस्य वा छन्दचारिणः ॥" हो। ४ एक ही अनुचर रखनेवाला, जिसके दूसरा (आदि १६रा-११) साथी न रहे। ५ साथ-साथ चलनेवाला।६ इस नगरसे अनतिदूर वेत्रकोयगृहमें एक राजा गोलमें रहनेवाला। रहते हैं। वह नहीं समझते-न्याय किसको कहते एकचरण (सं० पु.) एकश्चरणो यस्य, बहुव्री० । हैं। वह नितान्त अबोध हैं। इस नगरपर उनका १एकपदविशिष्ट मनुष्य, एक पैरका आदमौ। २ जन- कुछ भी यत्न नहीं। वह ऐसी कोई चेष्टा भी नहीं पदविशेष, एक बसती। (त्रि०) ३ एकपदविशिष्ट, करते, जिससे हमारा भला हो। हम अनामयके पात्र | एक पैरवाला। हैं। किन्तु अकर्मण्य दुर्बल राजाके राजत्वमें पड़ हम एकचर्या (सं० स्त्री०) एकस्य चर्या, चर भावे क्यप्- सर्वदा ही उद्विग्न रहते हैं। नतुवा ब्राह्मणों को क्या टाप। एकाको गमनको अवस्था, अकेले चलनेको किसीको बात सुनना और किसीके इच्छाधीन बन हालत । चलना पड़ता है? एकचारी (स• त्रि.) एकः सन् चरति, एक-चर-

  • चार शब्द मालग्रहका एक नाम है। .

| णिनि। १एकाकी विचरण करनेवाला, जो अकेला