पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४६९

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एकविंशतितम-एकशः एकविंशतितम (स. त्रि.) एक-विंशति तमट ।। वृक्ष नहीं रहता, उस स्थानको सब कोई एकवृक्ष विंशत्यादिभास्तमडन्धतरस्वाम् । पा ५।२।५५ । इक्कीसवां । । कहता है। २ एकमात्र वृक्ष, अकेला पेड़। एकविंशतिधा (स. अव्य.) एक विंशति प्रका-एकहत् (सं. स्त्री०) एकधैव वर्तते, वृत कर्तरि रार्थे धा। संख्यायां विधाथै धा। या ५।३।४३। एक विंशति विप तुगागमः। १ एकरूप वर्तमान, एकजैसा हाल । प्रकार, इक्कीस गुना। एकधा वर्तते पत्र, आधारे क्किप । २ स्वर्गलोक। एक एकशिवत् ( स० वि० ) एक विंशस्तोम-सम्ब- धैव वर्तते, भावे क्विप । ३ एकरूप प्रावर्तन, एक- धीय। जैसा घुमाव । एकविंशस्तोम (सं. पु०) एकविंशश्चासौ स्तोमश्च, एकवृन्द (सं० पु०) सुश्रुतोल कण्ठगत मुखरोग कर्मधा। एकविंशति मन्त्र परिमित सामवेदोक्त । विशेष, गलेकी एक बीमारी। कण्हके मधा गोला- पृष्ठ्यादि नामक एक स्तव । कार, उन्नत एवं दाह तथा कण्डू विशिष्ट जो एकविध (सं. त्रि.) एक विधा प्रकारोऽस्य, बह शोथ उठता, उसका नाम एकवृन्द पड़ता है। यह बी. इस्वः। एकप्रकार, साधारण, मामूली। कठिन-स्पर्श, गुरु और अपाको होता है। इस एकविलोचन ( स० त्रि०) एक विलोचनं चक्षुर्यस्य, रोगमें प्रथमतः किसी उपायसे रक्त मोक्षण कराना बहुव्री०। १ काना। (पु.) २ जनपद विशेष, एक चाहिये। फिर दारु हरिद्रा, नीम तथा शाल- बसतो। ३ कुवेर। एकपिङ्ग देखो। ४ काक । (लो०)। | वृक्षको छाल और इन्द्रयव आध आध तोला प्राध ५ एक आंख। सेर जलमें पका आधपाव रहनेसे क्वाथको सेवन कराते एकविषयी ( स० त्रि.) एको विषयोऽस्यास्तीति, हैं। अथवा कुटकी, अतीस, देवदारु, निर्विषी, मोधा इनि। १ एकमात्र विषय में आसक्त, जो सिर्फ एक ही तथा इन्द्रयव चार-चार पाने आधसेर गोमूत्र में पका बात पकड़े हो। २एकमात्र विषयविशिष्ट, जो सिर्फ आध पाव रहनेसे पिलाते हैं। (क्लो०)२ एकराशि। एक ही बातका हो। एकवृष (सं० पु.) एकोऽहितोयो वृषः, कर्मधा। एकवौजपत्रिक ( स० वि०) अश्रोत्पत्तिके समय एक वृष, अनोखा बैल। (त्रि०) एको वषो यस्य, केवल एक पत्र देनेवाला, जो कोपल फटते वक्त सिफ बहुव्री। २ एकमात्र वृष रखनेवाला, जिसके एक एक ही पत्ती देता हो। अंगरेजीमें इसे 'मनोकटि- ही बैल रहे। लिडन' Mono-cotyledon ) कहते हैं। . | एकवेणि, एकवेणी देखो। एकवीर (सं० पु० ) १ वृक्ष विशेष, एक पेड़। इसका एकवेणी ( स० स्त्री०) एकीभूता संस्काराभावेन संस्कृत पर्याय महावीर, सकद्दौर और सुवीरक है। जटावत् संहतिप्राप्ता वेणी:, कर्मधा० । १ प्रोषित- यह मदकारक, अतिशय उष्ण एवं कटु होता और भकाको वेणी, वियोगिनीको लट। २ प्रोषित वेदना, वात, कटिपृष्ठाचित वातव्याधि तथा पक्षा भर्ट का, अपना खाविन्द गरमुल्कमें रखनेवाली घातको नाश करता है। (राननिघण्टु ) औरत। एकवीरा ( स० स्त्री० ) वधयाकर्कोटी, कड़वी ककड़ी। एकवेश्म (सं० लो०) एकेनवाधिष्ठितं वेश्म गृहम्, यह तिक्त, अति उष्ण एवं वातघ्न होती और पक्षाघात कर्मधा। एकमात्र प्राणोके रहनेका गृह, जिस तथा पृष्ठकटौ शूलको दूर करती है। (वैद्यक निघण्ट) | घरमें एकसे ज्यदा आदमी न रहें। एकवीराकल्प (स.पु०) तन्त्रविशेष। इसमें वीरा-एकव्यक्सायो (सं० पु.) एकमात्र व्यवसाय करने चारको आराधा देवताका रहस्य उक्त है। वाला पुरुष, जो शख स वही रोजगार करता हो। एकवृक्ष (सं० पु०) एको वृक्षोऽत्र बहुव्री०। १ स्थान-एकव्रात्य (सं० पु०) प्रधान वा मुख्य व्रात्य । विशेष, एक जगह। चार कोसके बीच जहां दूसरा | एकशः (सं० अव्य०.) एक-एक, अकेले।