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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४७०

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एकशत-एकशैल एकशत (सतो .) १ एक सौ एक, १०१। (वि.)| राजमहसे अयोधा पाते समय इस ग्राममें पहुंचे थे। २ एकशत संख्यायुक्त, एक सौ एकवां। यह स्थान स्वाणुमती नदी किनारे अवस्थित है। एकशतक (सं.वि.) एकशतं परिमाणमस्य, एकथत "एकशाचे स्थासमती पिमते गोमती नदौम् ।” (रामायण २७१८) कन्। १ एकशत परिमाणविशिष्ट, सौ रखनेवाला। एकशिखा (सं. स्त्रो०) पाठा, निरविसी। (को०) स्वार्थे कन्। २ एकशत. सौ, १००। एकशितिपाद (सं० पु०) एकः शितिः कृष्णः पादो- एकशततम (सं० वि०) एकाधिकशत संख्याविशिष्ट, स्य, बहुव्री०। अश्वविशेष, एक खोड़ा। इसका एक सौ एक रखनेवाला। एक पैर सफेद रहता है। इसे पश्वमेध यन्त्रमें वरुण एकशतधा (सं० अव्य.) एकशत-धा। १ एकशत- देवताके उद्देश्यसे चढ़ाते हैं। प्रकार, एक सौ एक तरहसे। २ एक सौ एक गुना। एकथोर्ष (सं.वि.) एक ही स्थानको पोर मुख एकशफ (सं० पु.ली.) एकः शफः खुरो यस्य, घुमाये हुया, जो उसी जगहको तर्फ मुंह फेरे हो। बहुव्री०। १ अख, घोड़ा। २ एक खुर जन्तुमात्र, एकशोससमाचार (सं. वि.) एक ही प्रकारसे फटे खुर न रखनेवाला कोई जानवर। खर, अश्व, जीवन अतिवाहित करनेवाला, जो वही चाल-चलन अखतर, गौर, शरभ और चमरोको एकशफ कहते हैं। रखता हो। (भावप्रकाश) | एकशुङ्ग (सत्रि०) एकमात्र कोशयुक्ता, सिर्फ एक एकशफचौर (क्लो० ) अविभागखर पशुका दुग्ध, खोल रखनेवाला। फटे खुर न रखनेवाले जानवरका दूध। यह उष्ण, एकशृङ्ग (सं० पु०) एक शृङ्गयस्थ, बहुव्री०।१ विष्णु । लघु, वातहर, साम्ल, ईषत् लवण और जड़ताकर होता | वायम्भ व मन्वन्तरमें अकालप्रलय मानेसे विष्णने है। (वाभटटौका हेमाद्रि) एकशृङ्गविशिष्ट मत्साका रूप धारण किया था। एकशरण (सं० लो०) एकमात्र आशा, अकेली (कालिकापुराण ३२ १०) २ गण्डक, गड़ा। ३ एक शृङ्गका पनाह। यह शब्द प्रधानतः देवताके लिये प्रयुक्त पश, जिस जानवरके एक हो सोंग रहे। ३ पिढगण होता है। विशेष। एकशरीर (सं० वि०) एकमात्र शरीर वा रजसे एकशृङ्गा (सं० स्त्री०) पिटमणको एक कन्या। यह सम्बन्ध रखनेवाला, जो उसी खू नका हो। मस्तिष्कसे उत्पन्न हुई थीं। एकशरीरान्वय (सं० पु०) सगोत्रता, सपिण्डता, एकशृङ्गी-बौद्धशास्त्रोक्त एक ऋषिकुमार। काश्यपके कुराबत, बिरादरी। वौर्य और हरिबीके गर्भसे ऋष्यशृङकी तरह इनका एकशरीरारम्भ (सं० पु.) पिता और माताके संयोगसे भी जन्म हुआ था। मस्तकपर एक शृङ्ग रहनेसे यह सगोत्रताका प्रारम्भ, मा बापके मेलसे कराबतका नाम पड़ा। काश्वपराजको कन्चासे एकशृङ्गका विवाह हुआ। बोधिसत्त्वावदान कल्पलताके मतसे एकशरीरावयव (सं० पु. ) सगोत्र, सम्बन्धी, कराबती, यही बुद्ध थे। (नलिनी अवदान ) रिश्तेदार। एकशेष (सं० पु.) एकः शेषोऽवशिष्ठो यस्थ, बहुव्री। एकशरीरावयवत्व (सं.क्लो०) सगोत्र सम्बन्ध, करा १ इन्हसमास विशेष। इस समासमें दो या दो से बतो रिश्ता। अधिक शब्दों में केवल एक रहता और द्विवचन वा एकशाख (सं० पु०) एका शाखा यस्थ, बहुव्री इवः। बहुवचन लगता है, जैसे-माता च पिता च पितरौ। १ वेदको तुल्य शाखावाले ब्राह्मण। २ एक शाखा- एकः शेषः मूलमस्य । २ एक मूलयुक्त वृक्षविशेष, विशिष्ट वृक्षादि, एक डालका पेड़ वगैरह। जिस पेड़के एक ही जड़ रहे। एकशाल (स.पु०) ग्रामविशेष, एक गांव। भरत 'एकशेल (सं.को.) बरालका प्राचीन नाम। Vol. III 118