पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

एड़का-एत ४४३ हड़का (सं• स्त्री०) एड़कस्य स्त्री, टाप । मेषी, सम्बोधन, गुज़ारिश, तकरीर। २ नैपुण्य, मुस्तैदी। भेड़। ३ नामधाम, सरनामा, ठिकाना। ' रड़काख्य, एड़क देखो। एढ़ा (हिं. वि०) श्राव्य, बली, ताकतवर। . एड़गज (सं० पु.) एड़ो मेष एव गजो यस्य भन्न एण (सं० पु.) एति द्रुतं गच्छतोति, इ बाहुलकात् कलात्। १चक्रमदक, चकवंड़, चकौड़िया। इसका ण।१ हिरण, हिरना।२ कृष्णमृगविशेष, करसायल। संस्कृत पर्याय चक्रमदै, प्रपुबाट, दद्रुघ्न, मेषलोचन, इसका मांस कवाय, मधुर, हृद्य, बस्थ, धारक, रुचि- पद्मट, चक्र और पुन्बाट है। (Cassia Tora) यह कर और रक्त, पित्त, कफ तथा वातको दूर करनेवाला कट पड़ता और वायु, कफ, कुष्ठ, त्वग्दोष, गुल्म, है। (मधु त, मावप्रकाश ) विशेषतः ज्वरमें एएका मास । उदररोग एवं पर्श को नाश करता है। चक्रमदं देखो। प्रशस्त रहता है। (चक्रपाणि) यह मृग छष्णवर्ण होता २ वन्य एला, जंगली इलायची। है। चक्षु सुन्दर और पद खवं रहते हैं। ज्योतिषमें रड़गजा (सं० स्त्री०) एड्गज देखो। मकरको एण कहते हैं। एडमूक ( सं० वि० ) एडवत् मूकश्च, कर्मधाः । एषक (सं० पु.) एण स्वाथै कन्। १ हरिख, १ वधिर, बहरा, जिसे सुन न पड़े। २ वाक्श्रुति- हिरना। २ कृष्णसार, करसायल। वर्जित, बहरा और गूगा, जो कहसुन न सकता हो। एणतिलक (सं.पु.) एणो मृगतिलकमिव यस्त, ३ शठ, प्रतारक, बदमाश, पाजी। बहुव्री०। मृगाङ्क, चांद। एडहस्त्री (सं० पु०) चक्रमर्द, चकौड़िया । एणदृक् (सं० वि०) एणस्य दृगिव दृक् चक्षुर्य स्त्र, एडिटर (अं० पु०= Editor ) लेखक, मोहतमिम बहुव्रौ०। १ मृगनेत्र, आइ चश्म । (पु.) २ मकर लम्न। तबा, तरमीम करके छापनेवाला। एणभृत् (सं. पु.) एवं विभति, एण-भृ-क्लिप एडिटरी (हिं० स्त्री० ) लेखकका कार्य, मोहतमिम- तबाका ओहदा या काम। एणाजिन (स० ली.) एपस्य पजिन चर्म,ह-तत। एडी (हिं० स्त्री०) पाणि, एड़। . मृगचर्म, मृगछाला। एडौकांग (अं० पु० = Aid-de-camp ) सेनापतिका एशोदाह (सं० पु० ) एक प्रकारका सन्निपात सहायक, फौजके अफसरका मुसाहिब। यह सेना- ज्वर। पतिके आदेशका प्रचार करता है। समय लगने पर एणोपचन (स. को०) एसौ पचते अत्र, पच- सेनापतिकी ओरसे पत्र व्यवहार और शरीर रचकका लुपट । १ देशविशेष, एक मुल्क। २ जातिविशेष, कार्य भी एडोकांगको ही करना पड़ता है। कोई लोग। जो लोग अवध्य स्त्री-पशुको हत्या कर एडक (सली०) ईड़-छक पृषोदरादित्वात् इस्वः । उल कादयश्च । उप ॥४१। १ अन्तर्गत अस्थि, भीतरी एखोपद (सं• त्रि.) एण्याः पादाविव पादौ अस्व, हड्डी। २ अन्तर्गत कठिन द्रव्य, भीतरको कड़ी बहुव्री०। मृगौकी भांति पद रखनेवाला, जो हिर- चौज। ३ अस्थि-जैसे कठिन द्रव्यसे निर्मित भवन, नीकी तरह पैर रखता हो। (पु.) मण्डलि सर्प, जो मकान् हड्डी जैसी कड़ी चौजसे बना हो। (वि.) कौड़ियाला सांप। ४ वधिर, बहरा। एणोपदी (सं. स्त्री०) असाध्य लतामेद, किसी- एड़क, एडुक देखो। किस्मका जहरीला क्रीड़ा। "एड कान् पूजविश्वन्ति वनविष्यन्ति देवताः।” (भारत, वन १९०६३) एत (स• वि.) आ-इन-त । १ भागत, पाया एडोक, एडुक देखो। हुआ। २ नानाविध वसंयुक्त, रंगदार, जिसमें कई एडेस (० पु० = Address) १ अभिसवाषण, | सरहके रंग रहें। (पु.) पा सम्बक, एतीति,