१४२ एटा-एड़कघृत सुलतान बल्बन्ने उनके अत्याचारकी बात सुनी।। है। जलवायु शुष्क और स्वास्थ्यकर है। किन्तु उन्होंने स्वयं पटियाली जा और जङ्गलमें बड़ी फौज | ग्रीष्म ऋतुमें प्रायः प्रत्यह बालू और धूलिका तूफान नमा व्यवसायको राह खोली थी। १५ वीं शताब्दीको भाया करता है। ज्वर और शीतलाका प्रकोप रहता बार बार मुसलमानोंका अाक्रमण पड़ते समय एटेको और कभी-कभी हैजा भी जोर पकड़ता है। बड़ी दुर्दशा हुयी और दोनों ओरको मार सहना २ युक्तप्रान्तके एटा जिलेको तहसील। यह काली पडी। अकबरने इसे अपने कनौज, कोयल और नदोसे पश्चिम पड़ती है। निम्रगङ्गा नहरको तीन बदाय के सरकारोंमें मिलाया तथा मैनपुरीके कट्टर शाखा सींचका काम देती हैं। भूमिका परिमाण हिन्दुवोंसे लड़नेको अड्डा बनाया था। फिर अन्तको ४८१ वर्गमौल है। ऐटा पर लखनऊके नवाबका अधिकार रहा । - ३ युक्त प्रान्तके एटा जिलेका प्रधान नगर। यह १८०१-२ ई०को उन्होंने अन्य देशके साथ इसे भी अक्षा० २७. ३३५.“उ• तथा ट्राधि० ७८.४१ अंगरेजोंके हाथ सौंपा। १८४५ ई०को एटेके इधर २५“पू० पर काली नदीसे ·मील पश्चिम अवस्थित सधर परगनोंको अराजकता पर सरकारको दृष्टि पड़ी है। पहले यह छोटासा गांव था, किन्तु १८५६ ई०को थी। इससे पटियाली में एक डिपुटी कलेकर और पटियालोसे कचहरी वगैरह उठ आनेपर शहर बन जाइण्ट मजिष्ट्रेट रख गया। फिर १८५६ ई०को गया। दिलसुख रायका मन्दिर बहुत ऊंचा है। हेड क्वाटर एटा गांवमें उठ आया। इसी एटा गांवके तालाबको शोभा देखकर जी प्रसन्न हो जाता है। नामपर जिला भी. एटा कहाया है। १८५७ ई.को नगरसे उत्तर संग्रामसिंह चौहानका किला है। इसे अलीगढ़से बलवेका समाचार पाते ही यहांको सारी बने कोई ५०० वर्ष बीते। संग्रामसिंहके वंशज पहले फौज चुपके चल हुई थी। कासगंजको रचाके लिये राजा कहाते और किलेके पास-पास हुकूमत चलाते बड़ी चेष्टा को गयो, किन्तु सफलता न मिली। थे। किन्तु सिपाही विद्रोहके समय राजा धामड़- उस समय एटाके राजा धामड़ सिंह जिलेके दक्षि सिंहके अस्त्र उठाने पर सरकारने उनका माल यांशमें स्वतन्त्र शासक बन बैठे। किन्तु फरुखाबादके असबाब सब छीन लिया और उन्हें राज्यसे निकाल नवाबने उन्हें मार भगाया और कुछ मासके लिये| बाहर किया। नगरमें मट्टोके मकान बहुत हैं। अपना अधिकार जमाया था। १५वौं दिसम्बरको एठ ( स. धा० ) म्वा० आत्म. सक० सेट । जनरल पौधेडको फौजने विद्रोहियोंपर आक्रमण मार _ "एठा वाधने ।" (कविकल्पद्रुम.) वाधा डालना, रोकना, कासगंजको उहार किया। १८७८-७८ ई.को रोग छेड़ना। और दुर्भिक्षका प्रावल्य रहा। इस जिलेमें कितने ही एड (सं० पु०) इल स्वप्ने अच, डलयोरैक्यम्, अथवा कान्यकुल ब्राह्मण जमीन्दार हैं। सैकड़े पोछे ७० प्रा-ड़-घञ्। १ मेषविशेष, किसी किस्मका भेड़ा। पादमी खेतीके सहारे रहते हैं। मन्दिर और मस- (वि.) २ वधिर, बहरा, जिसे सुन न पड़े। जिद बहुत कम हैं। टिड्डी अधिक निकलती है। (हिं. स्त्री.) पाणि, एडौ। . वर्षा में बाढ़से भी बड़ी हानि होती है। १८६०-६१ | एड़क (स• पु०) एड़ स्वार्थ कन्, इल खुल वा। ई०को दुर्भिक्षके समय लोगोंने घासपात खाकर प्राण १ पृथ-शृङ्ग मेष, भेड़ा। २ वनच्छगल, जंगली बचाया था। उत्तरांशमें चीनी तैयार होती है। सनको बकरा। ३ बणविशेष, पतेर। ४ मजिष्ठा, मजीठ। रस्मी और बोरी बनती है। सोरोंमें प्रतिवर्ष गङ्गा एड़कघृत (स. क्ली.) एड़ककै नवनीतसे उस्थित सानका मेला लगता है। एटासे शिकोहाबादको भड़के सक्खनका घी। यह बुद्धिके पाटव और पक्की सड़क गई है। कासगंज और डंडवारगंजसे बलको बढाता है। पति गुरु होनेसे समारोंको प्रति वर्ष नाव पर लाद कर माल बाहर भेजा जाता | एड़कघृत खाना न चाहिये। (राजनिघण्ट)
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४८३
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