पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४८९

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४४८ एरण्डक-एरण्डसप्तक का गदा मधुके साथ पीसकर खिलानसे जुलाबका| विषम ज्वर, हृद्रोग, पृष्ठशूल, गुयशूल, वातोदर,. काम निकलता है। सकल प्रकारका वातरोग लगने पानाह, गुल्म, अष्ठीला, कटिवेदना, आमवात और और स्त्रियोंके स्तन्यपान कराते समय स्तनमें अधिक | | वातरक्त प्रभृति रोगों में विशेष उपकार पहुंचता है। व्यथा उठनसे इसके वीजको पीसकर प्रलेप चढ़ानसे हकीमो मतसे पक्षाघात, खास, कास, शूल, विशेष उपकार होता है। पत्र में वीजकी भांति प्राध्मान, वात, उदरी और स्त्रियोंके आतंव रोगपर गुण रहते भी कुछ अल्प पड़ता है। किसीके अहि- एरण्डका तेल विशेष उपकारी है। फेन अथवा किसी प्रकारका विष खाने एरण्डरसके युरोपीय चिकित्सकोंके मतसे अजीर्णरोगमें व्यवहारसे वमन होने पर विषादि निकल जाता है। पाकस्थली और अन्त्रको व्यथा उठनेसे प्रत्यह आध युरोपीय चिकित्सकोंके मतमें एरण्डका वीज छटांक एरण्डका तेल पोनेपर बड़ा उपकार होता है। कट और भेदक है। रइल साहब कहते-बाइबिलमें कोष्ठव होनेपर एरण्डके तैलसे जैसा उपकार मिलता. इसे गोर्ड (Gourd) नामसे लिखते हैं। डाकर वैसा दूसरे किसी औषधसे नहीं। डाकर वायु एवं विलियमके कथनानुसार प्रफरीकाको स्त्रियां स्तनका उदरशूलपर भी एरण्डतेल प्रयोग करते हैं। दुग्ध बढ़ानेको इसका पत्रव्यवहार करते हैं। (Lancet, एरण्डतेलमूळ ( स० स्त्री०) मूर्छाद्रव्यभेद। इसमें Sept. 1850) किन्तु बम्बई अञ्चलमें एरण्डका पत्र मञ्जिष्ठा, मुस्तक, धान्य, त्रिफला, जयन्तीपत्र, बालक, . स्त्रियोंके स्तनदुग्धका सञ्चय घटानेको व्यवहृत होता वनखजूरी, वटशृङ्गा, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, नलिका, है। ( Dymock's Materia Medica of Western India, p. की, दधि और काजिकको हरिद्रादि पर्यायसे 579) युक्तप्रदेशवासी होलीको एरण्डका दण्ड उखाड़ पूर्ववत् मारते हैं। स्तूप होलीकाको अग्निमें फेकते हैं। एरण्डतैल देखो।... एरण्डद्वादश, एरण्डादशक देखो। एरण्डक (स० पु०) एरण्ड स्वार्थे कन् । एरण्डवृक्ष, एरण्डद्वादशक (सं० पु०) शूलरोगका एक औषध । रैड़का पेड़। इसमें एरण्डका वीज, एरण्डका मूल, वृहती, कण्ट- एरण्डज (सं.वि.)- एरण्डाज्जायते, एरण्ड-जन-ड। कारी, गोक्षुर, शालपर्णी, चकवंड, मुहपर्णी, माष- एरण्ड-वृक्षजात, रेड़के पेड़से निकला हुपा। (लो०) पर्णी, भेकपर्णी, सिंहीपुच्छी, तथा खगोड़का मूल २ एरण्डतैल, रेडीका तेल। १२।१३ रत्ती और यवक्षार ४ माशे पड़ता है। एरण्डतैल (सं० लो०) एरण्डवीजोत्पन्न तैलविशेष, एरण्डपत्रविटपा, एरपत्रिका देखो । रेडीका तेल। (Castor oil) यह तैल तीन प्रकारके | एरण्डपत्रिका (स. स्त्री०) एरण्डस्य पवमिव पत्र- उपायोंसे प्रस्तुत होता है-१ निष्कर्षण द्वारा, २ सिद्ध मस्याः, कन्-टाप् अत इत्वम्। ह्रस्व दन्तीवृक्ष, छोटी कर और ३ सुरासारके प्रयोगसे। निष्कर्षण करनेसे | दांतो। संस्कृत पर्याय-लघुदन्ती, विशल्या, उदुम्बर- जो तैल हाथ लगता, वही भली भांति परिष्कार | पर्णी, एरण्डफला, शीघ्रा, श्येनघण्टा, घुणप्रिया, वारा- . ठहरता है। शिशुवोंके लिये यही अधिक उपकारी है। हाडी, निकुम्भ और मकूलक है। एरण्डके तैलमें ७४°०० भाग कारबन, १०.२० भाग | एरण्डपत्री, एररूपविका देखो। हाइडोजन और १५७१ भाग अक्सिजन रहता है। एरण्डफला, एरण्डपविका देखो। वैद्यशास्त्रके मतसे एरण्डका तैल तीक्ष्ण, उष्ण, एरण्डमूल (स० क्लो०) एरण्डशिफा, रेडीको जड़। दीपन, पिच्छिल, गुरु, वृष्य, वयःस्थापक, त्यक्-स्वास्थ्य | एरण्डवीज (स० लो०) एरण्ड फल, रेडीको गहर। कर, शान्तिजनक, शुक्रदोषनिवारक, ईषत् कषायरस, | एरण्डशिफा (स. स्त्री०) एरण्डमूल देखो सूक्ष्म, योनिशोधक, पामगन्धि, खाटुरस, स्वादुपाक, | एरण्डसप्त, एरसप्तक देखो। तित, कट और भेदक होता है। इसके व्यवहारसे । एरण्डसप्तक (सं. पु०) शूलरोगका एक औषध ।