पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४८८

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एमनकल्याण-एरण्ड ४४० एमनकल्याण (हिं. पु०) रागविशेष। यह एमन : कुटिलाकार सो हस्तियों, विवस्त्र स्त्रियों, बैठे बुद्दों, और कल्याण के योगसे बना है। - वनदेवतावोंके मुखों और अन्य कल्पना-चातुर्यों के एमनी (सं. स्त्री०) श्रीरागको स्त्री। चित्र हैं। दबकर बैठे तीन सिंहोंके चित्र भी देखने एरंड खरबूज़ा (हिं० पु०) पपीता, रेड खरबूजा। योग्य हैं। उनके सम्मुख एक स्तम्भ और एक मन्दिर एरंडसफेद (हिं० पु.) बागबरड़ा, मागलो। खड़ा, जो आधा भूमिमें गड़ा है। घंटेको चोटी, एरंडी (हिं० स्त्री०) वृक्षविशेष, तुगा, आमी। यह २ फीट ऊंची कुरसीको साधे हैं। कुरसीपर दो मत्थ वाली चतुभुज मूर्ति खड़ी है। इस स्तम्भपर पत्र एवं काष्ठ चमड़ा सिझाने में लगता है। जो शिलालेख मिला, उससे मगधके गुप्तवंशीय राजा एरक (स. क्ली) १ णविशेष, पतवार। किसी। बुधगुप्तका पता चला है। नागका नाम। एरण्ड (सं० पु.) एरति वायुम, प्रा-दर अण्डच् । एरका (सं. स्त्री०) तणविशेष, एक घास। इसका वृक्षविशेष, रेडका पेड़। ( Ricinus communis) संस्कृत पर्याय-गुन्द्रमूना, शिम्बो, गुन्द्रा और शरी इसका संस्कृत पर्याय-व्याघ्रपुच्छ, गन्धर्वहस्त, उरुबुक, है। एरका शोतल, शुक्रवर्धक, .चक्षुके लिये हित-1 रुबुक, चित्रक, चक्षु, पञ्चाङ्गुल, मण्ड, वर्धमान, व्यड़- कारो, वायुकोपक और मूवच्छ, अश्मरी, दाह बक, रूबुक, बुक, अमण्डा, पामण्ड, व्यड़म्बन, काण्ड, . तथा रक्तपित्तनाशक है। (राजनिघण्ट) चक्रदसके। तरुण, शुक्ल, वातारि ओर दीर्घपत्रक है। (राजनिघण्ट) टीकाकारने एरका-का पथ पतवार लिखा है। एरण्ड खेत और लोहित भेदसे विविध होता है। एरङ्ग (सं० पु.) एरति सम्यक् भ्रमतीति, प्रा-ईर - प्रामण्ह, चित्र, गन्धर्वहस्त, पञ्चाङ्गुल, वर्धमान, दीर्घ- अङ्गच । मत्स्य विशेष, एक मछलो। यह मधुर, दण्ड, अदण्ड, वातारि, तरुण और रुबुक खेत सिग्ध. विष्टम्भी, खानेसे पट फलानेवाला, थोतल और एरण्ड के बोधक हैं। उरुबू, रूबू, व्याघ्रपुच्छ, चञ्च गुरुपाक होता है। (भावप्रकाश ) और उत्तानपत्रक शब्द रक्त-एरण्डके वाचक हैं। एरङ्गी (स. स्त्री०) एरा देखो। ___ भारतवर्षमें प्रायः सत्र ही एरण्डवृक्ष उत्पन्न एरण ( एरन)-मध्यप्रान्तके सागर जिलेका एक ग्राम। होता है। बाजारमें दो प्रकारका एरण्डवीज मिलता यह पक्षा. २४° ५३. उ० और ट्राधि० ७८.१५ है-छोटा पौर बड़ा। छोटे वौजसे उत्तम तैल पू०पर, सागर नगरसे ४८ मील पश्चिम अवस्थित है। निकलता और औषधके व्यवहारमें लगता है। बड़े एरन राजा भरतके चैत्यसम्बन्धो कीर्तिस्तम्भके लिये वोजका तेल भारतवासी प्रदीपमें जलाते हैं। प्रसिद्ध हैं। एरनमें विष्णु भगवान्को एक वराहमूर्ति एरण्ड का पत्र वातघ्न, कमि एवं भूवक्तच्छ्रनाशक है। उच्चता १० फोट है, शरीरपर अनेक क्षुद्राक्कति और पित्तरक्त-प्रकापक है। कच्चे पत्ते से गुल्म, वस्ति- बनी हैं। उन मूर्तियों के कुरते छोटे और टोपियां ऊंचौ शून, कफ, वात, कृमि, और सप्तविध वृदिरोग हैं। कण्ठके चारो ओर बाजेवालोंकी मूर्तियां खुदी हैं। दूर होता है। एरण्ड का फल अतिशय उष्ण, कटु, जिह्वाके अग्रभागपर एक मनुष्य खड़ा है। वक्षःपर अम्ना होपक और गुल्म, शूल, वायु, यकृत, लोहा, शिलालेख है। दाइने दांतसे वाहुके पास एक स्त्रो उदर तथा पर्श रोगनाशक है। एरण्ड को मज्जामें लटक रही है। वराहको एक और चतुभुज देव भो उक्त सकल गुण मिलते हैं। वह भेदक और खड़े हैं। वह १२ फोट ऊंचे हैं। कटिमें मेखला वातले म जन्य उदररोगनाशक होती है। पड़ी है। शिर पर ऊंचो टोपी लगो है। योवासे! एरण्डको अरबोमें 'खिरबा' और फारसोमें 'वेद- पाददेश तक समलङ्कत माला लटक रही है। इस अनोर' कहते हैं। हकीमोमें खेत और रक्त एरण्डके मूर्तिके सम्मुखीन स्तम्भोंपर यज्ञोपवीत बनाते मनुष्यों, | मध्य र एरण्ड ही अधिक फलदायक है। १० वीजों