पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४९

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इन्द्रजाल गोक्षुरका वीज निसिन्धुके रसमें बांटकर तीन या | पद्मकेशर शीतल जलमें पीसकर पौनेसे पीड़ा छूटती सात दिन सेवन करनेसे वन्धमा गर्भवती होती है। है। अथवा क्षीरकाकोली, बला और अनन्तमूलको काकवन्धया-चिकित्सा-रविवारको पुष्थानक्षत्र में दुग्धमें रगड़कर पीना चाहिये। अखगन्धाका मूल महिषौके टुग्धमें बांटकर ४ तोले | । चतुर्थ मास श्खेत उत्पल, मृणाल, गोक्षुर और परिमाण सात दिन खानेसे काकवन्धमाको गर्भ रह | केशरको दुग्धमें बांटकर सेवन करनेसे गर्भस्राव रुकता जाता है। है। अथवा यष्टिमधु,रास्ना, श्यामालता, ब्राह्मणयष्टिका मृतवत्सा-चिकित्सा-कृत्तिकानक्षत्र में पूर्वमुख हो | और अनन्तमूल गोदुग्धमें पीसकर पीना चाहिये। पौतघोषा लताका मूल जलके साथ पीस दो तोले पञ्चम मास पुनणवा, काकोलो, तगर तथा नीलोत्- परिमाण खानेसे मृतवत्सा दोष दूर होता है। पल अथवा वहतो, कण्टकारी, उडुम्बर, कायफल, दाडिमका मूल दुग्धके साथ बांट पौने और निज | दारुचीनी और गव्यघत दुग्धके साथ पीसकर खानसे पतिसहवास करनेसे मृतवत्सा दीर्घायु पुत्र प्रसव उपकार होता है। करती है। षष्ठ मास सिता, होबेरका मूल एवं प्राखुमज्जा ___ महिला, यष्ठिमधु, कुष्ठ, त्रिफला, शकरा, मेदा | शीतल जल में बांट गोदुग्धके साथ अथवा गोक्षुर, लता, क्षारयुक्त भूमिकुष्माण्ड, काकोली, अश्वगन्धा शोभाजनवीज, यष्टिमधु, पृश्चिपर्णी तथा बला दुग्धमें मूल, यमानी, हरिद्रा, क्षौरकाकोली, श्वेतचन्दन, दारु पीसकर पौनसे गर्भ नहीं गिरता। हरिद्रा, हिङ्गल, कटुकी, नीलोत्पल, कुमुद एवं ____सप्तम मास पद्मका काष्ठ एवं मूल, शृङ्गाटक और द्राक्षाको दो-दो तोले ले चार सैर वृतमें पकायिये और नीलोत्पल टुग्धमें बांटकर सेवन करना चाहिये। पाकके समय शतमूलौका रस तथा दुग्ध छः-छ: सेर अथवा किशमिश, शृङ्गाटक और पद्मका केशर गोटुग्ध- डात दीजिये। नियमपूर्वक पकाकर इस घतको जो के साथ सेवन करनेसे गर्भस्राव रुक जाता है। नारी पोती है, वह सुन्दर पुत्र प्रसव करती है। अल्पायु अष्टम मास यष्टिमधु, पद्मकाष्ठ, विभौतक, विको. सन्तान और केवल कन्या प्रसव करनेका दोष इस तसे रणमूल, मुस्तक, नागकेशर, गजपिप्पली और छट जाता है। योनि एवं रजोदोष और गर्भस्रावमें नौलपद्म बांटकर टुग्धके साथ खिलानेसे गर्भ- यह विशेष उपकार पहुंचाता है। इसके पानसे प्रजा साव नहीं होता। अथवा विल्व मूल, कपित्थ, तथा आयुद्धि और ग्रहदोषको शान्ति होती है। वृहती और शमौकाठ सहित टुग्ध पकाकर देना इसे फलघृत कहते हैं। यह अति आयुष्कर है। वैद्य चाहिये। इस वृतमें खेत कण्टकारी भी डालनेकी व्यवस्था देते नवम मास गोरक्षतण्डलका वोज और ककोल हैं। जङ्गली वैरकी प्रागसे इसे पकाना पड़ता है। मधु सहित पीस लेप करनेसे वेदना दूर होती है। गर्भस्राव-चिकित्सा-प्रथम मासके गर्भस्रावपर अथवा यष्टिमधु, श्यामालता, अनन्तमूल और चोर- पद्मकेशर और रक्तचन्दन समभाग गोदुग्धके साथ बांट काकोली सहित दुग्ध पकाकर खिलाते हैं। कर खानसे दोष दूर हो जाता है। अथवा यष्टिमधु, दशम मास सिता, अङ्गर, किशमिश, मधु और देवदारु, शरवीज और क्षारकाकोली गोदग्धमें पीस | नीलपा गोटुग्ध सहित खिलानेसे गर्भसाव रुकता है। कर पीनेसे गर्भस्राव रुकता है। अथवा केवल दुग्ध पकाकर ही दे सकते हैं। यष्टिमधु द्वितीय मास नीलोत्पल, पद्ममृणाल, यष्टिमधु और ] और देवदारु टुग्ध सहित देनेसे भी उपकार होता है। कर्कटशृङ्गी गोटुग्धके साथ बांट कर पीनेसे वेदना ___ मधु, वासक, रक्तचन्दन, सैन्धव और महेन्द्रवीज मिटती है। गोदुग्धमें बाँटकर खिलानेसे सर्वप्रकार गर्भस्रावदोष वतीय मास रक्तचन्दन, तगर, कूट, मृशाल और | नष्ट होता है।